Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
४०५
महापउमकुमरकहा
कम्मस्स कारणाई, कम्मादाणाणि पन्नरस ॥ २१८ ॥ इह सच्चित्ताहारो, संबद्धो तेण तेण तह मीसो ।।। दुप्पक्को तुच्छोसहिभक्खणमिइ चयसु आयारे ।। २१९ ॥ भोगोवभोगसन्ना, जे सत्ता मारिऊण पाणिगणे । पोसंति समप्पाणं तान वि अप्पा न सासइओ ॥ २२० । भोगोवभोगनियम, पाणच्चाए वि जे न भंजंति ।। ते तियसनिवहपुज्जा होति महापउमकुमर व्व ॥ २२१॥ तथाहि :फालिह-मणिमय-साला विमाणमाणा समाणगिहमाला ।। अकलंकसीलमहिला महिला नामेण वरनयरी ।। २२२ ।। पररायकित्ति काणण-निम्मूलण-मत्त-कुंजरायारो ।। गिरिकुंजरो वियरिऊ, राया रिउकुंजरो तत्थ ॥ २२३ ॥ सव्वंगचंगदेहा, भुवणत्तय-तरुणि-पत्त-जयरेहा ॥ निय पियनिबद्धनेहा, वम्महरेहा पिया तस्स ।। २२४ ।। सुमिणंतरम्मि वियसिय-पंकियसहसंहमणहरं वयणे ।। पविसंतं पउमसरे, पेच्छइ संतत्थ हरिणच्छी ।। २२५ ।। पुट्ठो इमाए राया सुयजम्म, कहइ हरिसपडिहत्थो ।। निसमिय निय पियवयणा वियसियनयणा इमा जाया ॥ २२६ ॥ समयम्मि सा पसूया, वियसियनवकमलगब्भसमवनं ।। तणयं लक्खणलक्खियममन्त्रलायन्नसंपुन्नं ॥ २२७ ।। दासीजनवित्रत्तो, तत्तो कारेइ नियपुरे राया ॥ वद्धावणयं जणमणनयणाण महूसवायंतं ॥ २२८ ॥ पउमसरदसणाओ, नामं विहियं पसत्थदियहम्मि ॥ ऊसवपुव्वं रना, तस्स महापउमकुमरो त्ति ॥ २२९ ।। तो पंचहिं धाइहिं, लालिज्जतो पवड्ढए कुमरो ।।। नंदणकाणणरोवियचंदणाण विडवि व्व सो कमसो ।। २३० ।।
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530