Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 456
________________ चंद्रलेहाकहा ४२७ निरवज्जजोगजुत्तो, सहलं सामाइयं तस्स ॥ ४९७ ॥ एसा केवलिमेरा एयं तत्तं तिलोयसारमिणं । जइणा वा गिहिणा वा समभावो जमिह कायव्वो ॥ ४९८ ॥ माणसतणुवयणाणं, दुप्पणिहाणं च आयरच्चाओ। सइपब्भंसो य इमो, अइयारे चयसु सामइए ।। ४९९ ।। तित्थयरा चउवीसं, नवहलिणो चक्किणो य दस संखा ।। अन्ने दमदंताई, दिटुंता जइ वि सामइए । ५०० ।। तह वि उवएसविसओ न अत्थि पुणरुत्तय त्ति वरनायं ॥ अवलंबिय साहिस्सं, दिटुंतं चंदलेहाए ।। ५०१ ।। सिरिखंडसंडमंडियसिहरो, सिहरीण सेहरो अस्थि ।। नामेण मलयसेलो, रयणसिला सहसरमंणिज्जो ।। ५०२ ।। निज्झरण-सलिल-धारा-निवाय-सद्देहि वित्थरंतेहिं ।। सेस गिरीणं मज्झे, जयपडहे पायडंतो व्व ।। ५०३ ।। एला-लवंग-कयली-लवली हरएसु खयर-मिहुणेहिं । तित्थंकराण चरियं, अणवरयं गिज्जए जत्थ ।। ५०४ ॥ कुसुमसरो वि अणंगो जस्स य वाएण वाउलो भुवणं ।। लीलाए जिणसयलं, किं भणिमो तस्स मलयस्स? ॥ ५०५ ।। मलयमहागिरिसिहरे, वसइ तहिं कीरमिहुणगं एगं ।।। निब्भरनेहेन बद्धं नव-किसलय-सच्छहच्छायं ।। ५०६ ॥ विज्जाहरेण केण वि कोऊहलतरलिएण तं मिहुणं ।।। तत्थ वसंतं गहियं, पढमे च्चिय बालकालम्मि ॥ ५०७ ।। अइगरुयकोउहल्ला, सिक्खवियं तेण तं कला सयला ॥ छदंसणाण तत्तं, जाणवियं तहय नीसेसं ।। ५०८ ॥ हेममयपंजरगयं, सुयमिहुणं गिण्हिऊण सो खयरो ।। सव्वत्थ भमइ सयलं, तव्विरहे मन्नए सुन्नं ।। ५०९ ।। तस्स खयरस्स जोगा, तं मिहुणं गुणसमुद्दपारीणं ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530