Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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चंद्रलेहाकहा
४२५
दिवसंतरम्मि राया, देवी मग्गं नियच्छमाणो सो॥ सचिवेहिं कहिय सव्वं, तत्तो पडिबोहिओ कमसो ॥ ४७४ ।। पत्तो निरत्थएणं, उवएसेणं जहेस वायालो ।।। मरणं अन्ने वि तहा, अणत्थदंडेण पावंति ।। ४७५ ।। पावोवएसहिं सप्पयाणवज्झाणपमुहमिह तत्तो।। जिणवयणगहियतत्तो, अणत्थदंडं विवज्जेसु ॥ ४७६ ।। इत्यनर्थदंडे वाचालकथा ।। गाथा ५५०५ ॥ सामाइए चंदलेहा कहा सावज्जजोगवज्जण-पुव्वं मण-वयण-काय-सुद्धीए ।। सिद्धिसुहमीहमाणो, कुज्जा सामाइयं निच्चं ॥ ४७७ ॥ भणियं च :सामाइयम्मि य कए समणो इव सावओ हवइ जम्हा ।। एएण कारणेणं, बहुसो सामाइयं कुज्जा ।। ४७८ ।। सासय-पय-सोक्खाणं, सच्चंकारो समप्पिओ सच्चं ।। मा एत्थत्थे कहमवि, संदेहं कुणह कइया वि ।। ४७९ ॥ एत्तियमित्तं सारं, गिहत्थधम्मस्स हंत, सव्वस्स ।। अंसो एस जिणेहि, जइ-जण-धम्मस्स निद्दिट्ठो ।। ४८० ॥ सिक्खावयाणमाइमवयस्स सामाइयस्स पन्नविओ ।। सामाइयं त एसो, एयक्खरत्थो समासेण ।। ४८१ ।। आयो लाभो भन्नइ, समस्स सामस्स अहव आयो जो ।। सो जस्स कज्जमेयं, सामाईयं बुहा बिंति ।। ४८२ ।। खवइ निरग्गलचित्तो, पुग्गलपरियट्टएहिं जं जीवो ।। कम्मं सममणभावो मुहुत्तमित्तेणं तं खिवइ ।। ४८३ ।। इह चेव मोक्ख-सोक्खं, इमेण जज्जरतरेण देहेण ।। जइ महसि कह वि तत्तो, धरिज्ज चित्तम्मि समभावं ॥ ४८४ ॥ मित्तेसु अमित्तेसुं, धणम्मि निहणम्मि हारखारम्मि ।।
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