Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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4. प्रत्याख्यानविधि-प्रत्याख्यान की आवश्यकता
स्तवनविधि 6. जिनभवन निर्माणविधि-जिनभवन निर्माण में होने वाली हिंसा के पक्ष में
हरिभद्र तर्क
जिनबिम्ब प्रतिष्ठाविधि-प्रतिष्ठाविधि के आगमिक एवं लौकिक आधार 8. जिनयात्रा-विधि – जिनयात्रा और जैनधर्म की प्रभावना का प्रश्न (स) सम्यग्ज्ञान का स्वरूप -
पंचज्ञान 2. प्रमाण, नय निक्षेप 3. भेद-विज्ञान (द) सम्यक्-चरित्र - 1. मुनिधर्म 2. श्रावक धर्म (इ) तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
1.
तृतीय अध्याय : पंचाशकप्रकरण में श्रावक धर्म
226-384 आचार्य हरिभद्र के अनुसार श्रावक का स्वरूप और उसके कर्त्तव्य - (अ) श्रावक के द्वादश व्रत__ अहिंसाणुव्रत
सत्याणुव्रत अचौर्याणुव्रत स्वपति-संतोषव्रत परिग्रह-परिमाणव्रत दिशा-परिमाणव्रत
भोगोपभोगपरिमाणव्रत 8. अनर्थदण्डविरमव्रत 9. सामायिकव्रत
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