Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji

Previous | Next

Page 12
________________ मैं इस शोध-प्रबन्ध के टंकण के लिए राजा जी ग्राफिक्स के श्री शिरीष सोनी की भी आभारी हूँ। साथ ही प्रूफ संशोधन का कार्य श्री चैतन्य जी सोनी ने पूरी प्रामाणिकता से किया है। अतः उनके प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करना भी मेरा दायित्व है। इसके साथ ही मैं ज्ञात, किन्तु विस्मृत एवं अज्ञात उन सभी व्यक्तियों के प्रति भी आभार प्रकट करती हूँ, जिनका साहित्य एवं सहयोग मेरे इस शोधकार्य को पूर्ण करने में सहायक रहा है। इति ..... -साध्वी कनकप्रभाश्री Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 683