Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुराण ॥३॥ - ज्ञानार्णव है ज्ञान मय, नमूं ध्यानका मूल । पद्मनन्द पच्चासिका, करे कर्म उन्मूल ॥ २७ ॥ यत्याचार विचार नमि, नमूं श्रावका चार । द्रव्य संग्रह नय चक्रफुनि, नमूं शांति रसधार ॥ २८ ।। आदि पुराणादिक सबै, जैन पुराण बखान । बन्दूं मन बचकाय कर दायक पद निर्वाण ॥ २६ ॥ तत्व सार आराधना, सार महारस धार । परमातम परकाश को, पूजू बारम्बार ।। ६० ॥ वन्दू विशाखाचारिजे, अनुभव के गुण गाय । कुन्द कुन्द पद धोक के, कहूं कथा सुखदाय ||३|| कुमन्द चन्द अकलंकनमि. नेमिचंद्र गुण ध्याय । पात्र केशरी को प्रणमि. समत भद्र यशगाय ॥३२॥ अमृत चन्द्र यति चन्द्र का, उमास्वामि को बन्द । पूज्य पाद को कर प्रणति, पूजादिक अभिनन्द ॥३३॥ ब्रह्मचर्यव्रत बन्दि के, दानादिक उरलाय । श्रीयोगीन्द्र मुनिन्द्र को, बन्दूं मन वचकाय ॥ ३४ ॥ बन्दू मुनि शुभ चन्द्र को, देवसेन को पूज । करि बन्दन जिनसेन को, जिनके जग सों दूज ॥३५॥ पदम पुराण निवान को, हाथजोड़ि सिरनाय । ताकी भाषा वचनिका, भायूं सब सुखदाय ॥३६॥ पद्म नाम बल भद्र का, रामचन्द्र बलभद्र । भये पाठवें धार नर, धारक श्रीजनमुद्र ।। ३७ ॥ । पीछे मुनिसुव्रत्त के, प्रगटे अति गुण धाम । मुर नर वन्दित धर्ममय, दशरथ के सुत राम ॥ ३८ ॥ शिवगामी नामी मही, ज्ञानो करुणा वन्त । न्यायवन्त बलवन्त अति, कर्म हरण जयवन्त ॥ ३६॥ | जिन के लक्ष्मणा वीर हरि, महावली गुणवन्त । भ्रात भक्त अनुरक्त अति जैन धर्म यशवन्त ॥४०॥ चन्द्र सूर्य से वीरये, हरें सदा पर पीर । कथा तिनों की शुभ महा, भाग गौतम धीर ॥४१॥ । नी सबै श्रेगिक नुपति, धीर सरधा मन मांहि । सो भाषी रविषगाने, यामे संशय नाहि ॥४२॥ For Private and Personal Use Only

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