Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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डोनमः सिष्टुभ्यः॥ अथ पद्मपुराण भाषा वचनिका
पण्डित दौलतराम कृत मङ्गलाचरण ॥ दोहा ।। चिदानन्द चैतन्य के, गुण अनन्त उरधार । भाषा पद्मपुराण की, भाषू श्रुति अनुसार ॥ १ ॥ पंच परमपद पद प्रणामि, प्रगामि जिनेश्वरबानि । नमि जिन प्रतिमा जिन भवन, जिनमारगउरानि॥२॥ भषभ अजित संभव प्रणमि, नमि अभिनन्दन देव । मुमति जु पद्मसु पार्श्व नमि, करि चन्दाप्रभुसेव ॥३॥ पुष्पदन्त शीतल प्रणमि, श्री श्रेयांस को ध्याय । वासपूज्य विमलेश नमि, नाम अनंतक पाय ॥४॥ धर्मशांति जिन कुन्थु नमि, और मल्लि यश गाय । मुनिसुव्रत नमिनेमि नमि, नभि पार्श्वके पाय ।।५।। वर्द्धमान बरबीर नमि, सुरगुरुवर मुनि वंद । सकल जिनंद मुनिन्द नमि, जैनधर्म अभिनन्द ॥६॥ निर्वाणादि अतीत जिन, नमोनाथ चौबीस । महापद्म परमुख प्रभू, चौबीसों जगदीश ॥१॥ होंगे तिन को बांदिकर, द्वादशांग उरलाय । सीमन्धर अादिक नमू, दश दून जिनराय || विहरमान भगवान ये, क्षेत्र विहेद मझारि । पूजें जिन को सुरपती, नागपती निरधार ॥६॥ द्वीप श्राई के विषे, भये जिनेन्द्र अनन्त । होंगे केवलज्ञानमय, नाथ अनन्तानन्त ॥१०॥
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