Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 01
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 9
________________ नीति-शिक्षा-संग्रह लेकिन जब आप उसे कोई कला (हुनर ) सिखा देगें तो श्राप को उसे जीवन भर भोजन कराने का सा फल होगा / परन्तु इस वात पर विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वह हुनर या धन्धा ऐसा होना चाहिए. जिससे उसका जीवन-निर्वाह अच्छी तरह हो सके। सदा भिखारी बने रहने की अपेक्षा लुहारी सुतारी आदि के धन्धों में से कोई एक आध उपयोगी धन्धा भी श्रेयस्कर है / २२तुम आहार विहार में हर्ष और शोक के कामों में तथा ऐश और आराममें,हजारों रुपये पानीकी तरह वहा देते हो,और दूसरी तरफ तुम्हारे पड़ोसी के नन्हे 2 बच्चे भूख के मारे तड़फ रहे हैं,उन्हें सूखी रोटी का टुकड़ा भी नसीब नहीं होता / लेकिन तुम्हारा कर्तव्य. अपने को तथा अपने कुटुम्ब को सुखी बनाने में ही समाप्त हो जाता है / ऐसी हालत में भी तुम जीवदया तथा परोपकार की बड़ी 2 बातें बनाते हो। २२परोपकार तथा सेवा करनी चाहिए, लेकिन परोपकार तथा सेवा करके अपना बड़प्पन नहीं समझना चाहिए / २३पुस्तकों तथा शास्त्रों का अक्षर ज्ञान होना शिक्षा नहीं हैं,लेकिन चारित्र का विकास-धार्मिक भाव की जागृति-होना ही शिक्षा है / शिक्षामणि-माला. १खटमल तथा ठंडक का उपाय-गद्दी तकिया भरवाते समय रुई में थोड़ा कपूर डलवाने से गर्मी के दिनों में वे ठंढे रहेगें

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