Book Title: Nirvankalika
Author(s): Padliptsuri, Mohanlal Bhagwandas Jhaveri
Publisher: Nathmalji Kaniyalalji Mumbai

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Page 45
________________ Nirvanakalikr. 14 Jain Education Intal २/१६ वाएरिएण भरिअं अच्छि कणउरउप्पलरएण। फुकन्तो अवइ चुम्बन्तो कोसि देवाणम् ॥ ७६ ॥ [ वातेरितेन भृतमक्षि कर्णपूरोत्पलरजसा। फूरकुर्वन्नवितृष्णं चुम्बन्कोसि देवानाम् ॥ ] શબ્દ उप्पाइअदव्वाणं वि खलाणं को भाअणं खलो बेअ । पक्काई वि णिम्बफलाई णवरं काएहिं खज्जन्ति ॥ ४८ ॥ [उत्पादितद्रव्यानामपि खलानां को भाजनं खल एव । पक्कान्यपि निम्बफलानि केवलं काकैः खाद्यन्ते ॥ ] ३/५६ कं तुङ्गधणुक्खित्तेण पुत्ति दारद्विआ पलोएसि । उष्णामिअकलसणिवेतिअग्घकमलेण व मुद्देण ॥ ५६ ॥ [कं तुङ्गस्तनोत्क्षिप्तेन पुत्रि द्वारस्थिता प्रलोकयसि । उन्नामितकलश निवेशितार्घ कमलेनेव मुखेन ॥ ] ४/९३ जेत्तिअमेत्ता रच्छा णिअम्ब कह तेत्तिओ ण जाओसि । जं छिप्पइ गुरुअणलज्जिओसरन्तोवि सो सुहओ ॥ ९३ ॥ [ यावत्प्रमाणा रथ्या नितम्ब कथं तावन्न जातोऽसि येन स्पृश्यते गुरुजनलज्जापतोऽपि स सुभगः ॥] 1 ४१९४ मरगअसूईविद्धं व मोत्तिअं पिअइ आअ अग्गीओ । मोरो पाउसले तणग्गलग्गं उअअ बिन्दुम् ॥ ९४ ॥ [मरकतसूचीविद्धमिष मौक्तिकं पिबत्यायतमीवः । मयूरः प्रावृदका के तृणालतमुदकविन्दुम् ॥] For Private & Personal Use Only 136444445 Introduction. 14 www.jainelibrary.org

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