Book Title: Nirvankalika
Author(s): Padliptsuri, Mohanlal Bhagwandas Jhaveri
Publisher: Nathmalji Kaniyalalji Mumbai
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CMC
निर्वाण- नायवं बुद्धिमन्तेहिं ॥१५॥राया बलेण वटइ जसेण धवलेइ सयलदिसिभाए । पुण्णं वटइ विउलं सुपइट्ठा बिम्बप्रति. कलिका.
है जस्स देसंमि ॥ १६॥ उवहणइ रोगमारी दुभिक्खं हणइ कुणइ सुहभावे । भावेण कीरमाणा सुपइहाट ॥२५॥
सयललोयस्स ॥१७॥ जिणबिंबपइटुंजे करिति तह कारविंति भत्तीए । अणुमण्णन्ति पइदिणं सच्चे सुहभाइणो होति ॥ १८॥ दवं तमेव भणई जिणबिम्बपइट्ठणमि धण्णाणं । जं लग्गइ तं सयलं दोग्गइजणणं हवइ8 सेसं ॥१९॥ एवं नाऊण सया जिणवरबिम्बस्स कुणह सुपइह। पावेह जेण जरमरणज्जियं सासयं ठाणं| ॥ २०॥ ततो मुखोद्घाटनकं कृत्वा शान्त्यर्थ शान्तिबलिं क्षिपेत् । ॐनमो भगवते अर्हते शान्तिनाथस्वामिने सकलकलातिशेषमहासम्पत्समन्विताय त्रैलोक्यपूजिताय नमोनमः शान्तिदेवाय सर्वामरसुसमुहस्वामिसम्पूजिताय भुवनपालनोद्यताय सर्वदुरितविनाशनाय सर्वाशिवप्रशमनाय सर्वदुष्टग्रहभूतपिशाचमारिशाकिनीप्रमथनाय नमो भगवति जये विजये अजिते अपराजिते जयन्ति जयावहे सर्वसङ्घस्य भद्रकल्याणमङ्गलप्रदे
राजा बलेन वर्धते यशसा धवलयति सकलदिशिभागे । पुण्यं वर्धते विपुलं सुप्रतिष्ठा यस्य देशे ॥ १६ ॥ उपहन्ति रोगमारी दुर्भिक्षं तहन्ति करोति सुखभावे । भावेन क्रियमाणा सुप्रतिष्ठा सकललोकस्य ॥ १७ ॥ जिनबिम्बं प्रतिष्ठितं ये कुर्वन्ति कारयन्ति भक्त्या ।
R ॥२५॥ अनुमन्यन्ते प्रतिदिनं सर्वे सुखभागिनो भवन्ति ॥ १८ ॥ द्रव्यं तदेव भणति जिनबिम्बप्रतिष्ठाने धन्यानाम् । यद् लगति तत् सकलं
दुर्गतिजनकं भवति शेषम् ॥ १९ ॥ एवं ज्ञात्वा सदा जिनवरबिम्बस्य कुरुत सुप्रतिष्ठाम् । प्राप्नुथ येन जरामरणवर्जितं शाश्वतं है स्थानम् ॥ २०॥
१ वंधियमिति पाठान्तरम् ।
ACEBACCAS
-SACRECRUCAKA
SANA
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