Book Title: Nijdhruvshuddhatmanubhav
Author(s): Veersagar, Lilavati Jain
Publisher: Lilavati Jain

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Page 15
________________ सम्यग्दर्शन और आत्मानुभूति ... शुद्धोपयोग से ही ( शुद्धात्मानुभूति से ही) चतुर्थ गुणस्थान .. (अविरत सम्यग्दृष्टी गुणस्थान) प्रकट होता है। 1) शंका - क्या शुद्धात्मानुभूति से ही चतुर्थ गुणस्थान प्रकट होता है ? क्या शुद्धोपयोग से ही चतुर्थ गुणस्थान प्रकट होता है ? शुभोपयोग से चतुर्थ गुणस्थान क्यों प्रकट नहीं होता ? - उत्तर : समयसार गाथा नं. 201 और 202 की तात्पर्यवृत्ति में श्री जयसेनाचार्य कहते हैं कि- निर्विकल्प स्वानुभूति से चतुर्थादि गुणस्थान प्रकट होते हैं। परमाणुमित्तयं पि हु रागादीणं तु विज्जदे जस्स / ण वि सो जाणदि अप्पाणयं तु सव्वागमधरो वि / / 201 // अप्पाणमयाणंतो अणप्पयं चावि सो अयाणंतो। कह होदि सम्मदिट्ठी जीवाजीवे अयाणंतो // 202 // (आ. ख्या.) . “रागी सम्यग्दृष्टिर्न भवतीति भणितं" रागी (मिथ्यात्व और अनंतानुबंधी. जनित राग करनेवाला) जीव सम्यग्दृष्टि नहीं होता है, ऐसा कहते हैं। परमाणुमित्तयं पि य रागादीणं तु विज्जदे जस्स

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