________________ (38) देखो तत्त्वानुशासन श्लोक नं. 49 - सामग्रीतः प्रकृष्टया ध्यातरि ध्यानमुत्तमम् / स्याज्जघन्यं जघन्याया मध्यमायास्तु मध्यमम् // 49 // अर्थ - सकलसंयमवाले के पास उत्कृष्ट सामग्री रहने से उत्तम शुध्दात्मानुभूति है / देशसंयमवाले के पास मध्यम सामग्री रहने से मध्यम शुध्दात्मानुभव है और अविरत सम्यक्त्वी के पास जघन्य सामग्री होने से जघन्य शुध्दात्मानुभव होता है। . . . चतुर्थगुणस्थान में सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र तीनों हैं / देखो प्रमेयकमलमार्तंड - अ 2, सूत्र 12, पृष्ठ 245, . तथाहि यस्य तारतम्यप्रकर्षस्तस्य क्वचित्परमप्रकर्षः यथोष्णस्पर्शस्य, * तारतम्यप्रकर्षश्चासंयतसम्यग्दृष्ट्यादौ सम्यग्दर्शनादेरिति / / जिस वस्तुका तरतमरूप से प्रकर्ष होता है, उस का किसी में तो अवश्य परम प्रकर्ष होता है। जैसे उष्ण स्पर्श में तरतमता और प्रकर्ष दिखाई देता है। इसी तरह असंयम सम्यग्दृष्टि में सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र जघन्यरूप से हैं / वह रत्नत्रय ही आगे के गुणस्थानों में प्रकर्ष को बढता हुआ परम प्रकर्ष को प्राप्त होता है। इस के संदर्भ में देखो - क्षु. 105 मनोहरवर्णी ( सहजानंदवर्णी ) के परिक्षामुखसूत्र पर प्रवचन - (भाग 8, 9, 10, पृष्ठ - 292 ) “चौथे गुणस्थान में रत्नत्रय की छोटी अवस्था है, फिर ऊपर के गुणस्थानों में रत्नत्रय ऊँचा बढ जाता है।" इसलिये अविरत सम्यक्त्वी को शुध्दात्मानुभव है और मिथ्यात्वी को शुध्दात्मानुभव नहीं है। 19) शंका - प्रवाचनसार गाथा नं 14 में शुध्दोपयोग परिणत