Book Title: Nijdhruvshuddhatmanubhav
Author(s): Veersagar, Lilavati Jain
Publisher: Lilavati Jain

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Page 75
________________ चार्ट क्र.३ अनुभाव्य क्र विषय (भोग्य) मां ध्येय क ज्ञेय प्रमेय 1) जिध्रुव ज्ञानानंद ॥ॐ // अनुभव विषयि ध्यान ज्ञान (विचार) प्रमाण निजध्रुव ज्ञानानंद स्वभाव फल जाननेका फल ध्यानका फल ज्ञान का फल प्रमिति अतीन्द्रिय आनंद उपेक्षा (समभाव) 2) अशुद्धपर्याय अशुद्धपर्याय 3) एकदेशशुद्धपर्याय एकदेशशुद्धपर्याय 4) पुर्णशुद्धपर्याय (केवलज्ञानपर्याय) 5) धन पुर्णशुद्धपर्याय (केवलज्ञानपर्याय) धन 6) शरीर शरीर सम्यग्दर्शन वीतराग मिथ्यात्व, सराग विषमभाव मिथ्यात्व, सराग विषमभाव मिथ्यात्व, सराग विषमभाव मिथ्यात्व, सराग विषमभाव मिथ्यात्व, सराग विषमभाव मिथ्यात्व, सराग विषमभाव मिथ्यात्व, सराग विषमभाव मिथ्यात्व, सराग विषमभाव मिथ्यात्व, सराग विषमभाव मिथ्यात्व, सराग विषमभाव अनिष्ट (हान) इष्ट (उपादान) 7) ठंडास्पर्श ठंडास्पर्श 8) मीठारस मीठीरस 9) सुगंध सुगंध 10) नीलवर्ण नीलवर्ण 11) ध्वनि-शब्द ध्वनि - शब्द परमदव्मादो दुग्गई सद्दव्वादो हु सुग्गई हवई। इय णाउण सदव्वे कणहर्ड विरह इयरम्मि // 16 // मोक्षप्राभत परद्रव्यसे दुर्गती और स्वद्रव्यसे सुगती है, ऐसा जानकर स्वद्रव्यमें रति करो और परद्रव्यमे विरती करो। सहपरिणामो पूण्णं असूहो पावं ति भणियमण्णेस् / परिणामो णण्णगदो दुक्खक्खयकारणं समये // 181 ॥प्रवचनसार परके प्रती (तुसरोंके बारे में) शुभपरिणाम पुण्य है और परके प्रति (दसुरोंके बारे में ) अशुभपरिणाम पाप है / और जो परिणाम उसी समय दुःखक्षयका (संवरपुर्वक निर्जराकाशुद्धात्मानुभतिका परमानंदका निरांकुलताका) कारण है, ऐसा कहते हैं /

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