Book Title: Nijdhruvshuddhatmanubhav
Author(s): Veersagar, Lilavati Jain
Publisher: Lilavati Jain

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Page 74
________________ .... (60). की सुगमता है / खोटी करणी खोटा कर्म तो छोडणाजोग ही है; परंतु इस ग्रंथकू पढणेवाला मुमुक्षुकू कहता हुं के जैसे तुम खोटी करणी खोटा कर्म छोड दिया तैसे सुभ भला कर्म भली करणी भी छोडकरिकै इस पुस्तककू बांचणा / एकांत में यह पुस्तक अपणो आपही के संबोधन को है परकू संबोधनको मुख्य नहीं। कदाचित् कोई प्रकार है समज लेणा समजाणा, बिना समज मैं नहीं बोलणा / नहीं कहणा / जरूर इस ग्रंथके पढणेसैं मनन करणेसें मुमुक्षुकू स्वानुभव अंतरदृष्टि होवैगी / संसार जगत् में जिसकू स्वानुभव आत्मज्ञान नहीं वा ब्रम्हज्ञान नहीं उसका व्रत जप तप नेम तीर्थयात्रा दान पूजादिक है सो ब्रम्हज्ञानानी विना सर्व कच्चा है / जैसे रसोई में आटा दाल चनादिक चावल बीजनादिक हैं परंतु अग्नी विना सर्व कच्चा है / तैसेही आत्मज्ञान विना मुनीपणा क्षुल्लकपणा आदि सर्व कच्चा है। वास्तै हे मुमुक्षुजन वो स्वात्मानुभवकी प्राप्त की प्राप्ती के अर्थ इस ग्रंथकू अर एकांत में अपणे मनको मन में मनन करणापढणा बांचणा।"

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