________________ (52) “तत्राशुध्दनिश्चये शुध्दोपयोग कथं घटते इति चेत् तत्र उत्तरम्-शुध्दोपयोगे शुध्दबुध्दैकस्वभावो निजात्माध्येयस्तिष्ठति तेन कारणेन शुध्दध्येयत्वात् शुध्दावलम्बनत्वात्, शुध्दात्मस्वरूपसाधकत्वात् च शुध्दोपयोगो घटते।स च संवरशब्दवाच्यः शुध्दोपयोग: संसारकारणभूतमिथ्यात्वरागाद्यशुध्दपर्यायवदशुध्दो न भवति, फलभूतके वलज्ञानपर्यायवत् शुध्दोऽपि न भवति किंतु ताभ्यामशुध्दशुध्दपर्यायाभ्यां विलक्षणं एकदेशनिरावरणं च तृतीयमवस्थान्तर भण्यते।" . . अर्थ - प्रश्न - अशुध्द निश्चय में शुध्दोपयोग कैसे घटित होता है ? उसका उत्तर देते हैं कि - शुध्दोयोग में शुध्दबुध्द एक स्वभाव निजात्मा ध्येय ( ध्यान करने योग्य विषय ) है / इस कारण से ध्यान का विषय शुध्द होनेसे, शुध्द अवलम्बन होने से और शुध्दात्मस्वरूप का साधक होनेसे शुध्दोपयोग सिध्द होता है / संवर शब्द का वाच्य ( संवर शब्दके द्वारा कहा जानेवाला) वह शुध्दोपयोग मिथ्यात्वरागादि अशुध्दपर्याय के समान अशुध्द नहीं होता और केवलज्ञानपर्याय के समान पूर्ण शुध्द नहीं होता है; किन्तु अशुध्दपर्याय ( मिथ्यात्व सासादान मिश्र गुणस्थानवर्ती अशुध्दपर्याय ) और पूर्ण शुध्दपर्याय ( अहँत पर्याय अथवा सिध्द पर्याय ) इन दो पर्यायोंसे विलक्षण ( भिन्न ) एकदेश निरावरण तृतीय अवस्थान्तर कही जाती हैं। इसलिये अविरत सम्यक्त्वी में और देशविरत सम्यक्त्वी में और धर्मध्यानवाले भावलिंगी सकलसंयमी में भी शुध्दोपयोग है / उस शुध्दोपयोगसे (शुध्दात्मानुभूतिसे ) प्रथमोपशम सम्यक्त्व अव्रती गृहस्थ में प्रगट होता है / देखो पृष्ठ नं. 6 याने जाति अपेक्षासे अविरत सम्यक्त्वी में, देशविरत सम्यक्त्वी में और भावलिंगी - सकलसंयमी में शुध्दात्मानुभव ( शुध्दोपयोग) समान है। और मिथ्यात्व सासादान-मिश्रगुणस्थानों में अशुध्दोपयोग है / - समाप्त -