________________ परिशिष्ट श्री. क्षु. धर्मदास विरचित स्व जीवन वृत्तान्त ('स्वात्मानुभव मनन ' की 'प्रस्तावना') ." मैका सरीरकू क्षुल्लक ब्रम्हचारी धर्मदास कहनेवाला कहता है सो ही मैं मेरी स्वात्मानुभव की प्राप्त प्राप्ती भई सो प्रगट कर्ता हूँ। मैं के द्वारा मेरा सरीर का जनम तो सवाई जयपूर का राज में जीला सवाई माधोपूर तालुका बोलीगांव बपूई का है। खंडेलवाल श्रावग गोत्र गिरधरवाल चुडीबाल तथा गधिया का कुल में मेरो सरीर उपज्यो है। मेरा सरीर का पिता का नाम श्रीलालजी थो अर मेरी माता को नाम ज्वालाबाई थो अर मेरा सरीर को नाम धनालाल थो / अब मेरा सरीर को नाम क्षुल्लक ब्रम्हचारी धर्मदास है / अनुक्रम से गो सरीर को वय जब 20 वर्ष की हुई तब कारण पायकरिके मैं झालरा पाटण आयो तहां जैनका मुनी नगन श्री सिध्दश्रेणिजी ताको मैं शिष्य हुवो / स्चामी मैं * लौकीक वर्तनेम दीया सो ही मैं संवत् 1922 औगणीसे बाईसका संवत् मैं 1935 का साल पर्यंत कायक्लेस तप किया। . भावार्थ- 13 (तेरा) वर्ष के भीतर मैं 2000 ( दोय सहस्त्र) तो निर्जल उपवास किया / दो च्यार जैन मंदिर बणाया / प्रतिष्ठा कराई बहुरि समेदशिखर गिरनार आदि जैन का तीर्थ कीया / और बी भूसयन पठन - पाठ