________________ (56) " ध्याता पुरुषः यदेव सकलनिरावरणं अखंडैकप्रतिभासमयं अविनश्वरं शुभ्दपारिणामिकपरमभावलक्षणं निजपरमात्म्यद्रव्यं तदेव अहं इति भावयति, न खंडज्ञानरूपं इति भावार्थः / " .. ___ट) परस्पर निरपेक्ष द्रव्य-पर्यायात्मक जीवादि पदार्थ हैं, ऐसा आगमभाषा से जानकर, अध्यात्मभाषा से शुध्दात्मानुभूति के लिये आश्रय करने योग्य 'स्वद्रव्य ' है, ऐसी मान्यता असमीचीन है / वह जीव मिथ्यात्वी है। . इसकी आगमभाषा में गलत मान्यता है, क्योंकि, आप्तमीमांसा में कहा है - "मिथ्यासमूहो मिथ्या चेन्न मिथ्यैकान्ततास्ति नः / निरपेक्ष नयाः मिथ्या सापेक्षा वस्तु तेऽथकृत् // 108 // ठ) परस्पर निरपेक्ष द्रव्य-पर्यायात्मक जीवादि पदार्थ हैं, ऐसा आगमभाषा से जानकर, अधयात्मभाषा से शुध्दात्मानुभूति के लिये आश्रय करने योग्य पर्याय अथवा अन्य द्रव्य' है, ऐसी मान्यता असमीचीन है / वह जीव मिथ्यात्वी है / इसके लिये आधार आप्तमीमांसा श्लोक नं. 108 और उसकी अष्टसहस्त्री संस्कृत टीका और समयसार गाथा नं. 11 / ड) परस्पर निरपेक्ष द्रव्य-पर्यायात्मक जीवादि पदार्थ हैं, ऐसा आगमभाषा से जानकर , अध्यात्मभाषा से शुध्दात्मानुभूति के लिये आश्रय करने योग्य ‘स्वद्रव्य पर्याय ' है, ऐसी मान्यता असमीचीन है / वह जीव . मिथ्यात्वी है / इसके लिये आधार-आप्तमीमांसा श्लोक नं. 108, समयसार गाथा नं. 11 / इससे सिध्द होता है कि क्रमांक नंबर 'क' ही समीचीन है।