________________ (50). इससे यह अच्छी तरह सिध्द होता है कि स्वानुभूति से ही चतुर्थ गुणस्थान ( अव्रतीसम्यक्त्व गुणस्थान) प्रगट होता है; अन्यथा अनुपपत्ति है। जो बाह्यतः सर्वज्ञकथित 6 द्रव्य, 5 अस्तिकाय, 7 तत्त्व इत्यादि को ही सम्यक्त्व मानते हैं और स्वानुभूतिको नकार देते हैं, वे मिथ्यात्वी ( प्रथम गुणस्थानवर्ती) हैं। 24) शंका - मो.पा. टी. 21305 ये गृहस्था अपि सन्तो मनाग् आत्मभावनां आसाद्य वयं ध्यानिनाः इति ब्रुवते ते जिनधर्मविराधकायाः मिथ्यादृष्टयः ज्ञातव्याः। . इसका क्या अर्थ है ? उत्तर - जो गृहस्थ होते हुए भी जघन्य आत्मभावना (स्वात्मानुभूति) प्राप्त करके अपने को ' हम सप्तमादि गुणस्थानवर्ती ध्यानी हैं, ऐसा कहते हैं वे जिनधर्मविराधक मिथ्यादृष्टि हैं, ऐसा जानो। Sil जाना। इससे जो अव्रती गृहस्थ में जघन्य आत्मभावना ( स्वात्मानुभूति ) मानते हैं और जन्यों की याने देशव्रती सम्यक्त्वी की मध्यम स्वात्मानुभूति और भावलिंगी संयमी की सप्तमादि गुणस्थानक्रम से उत्कृष्ट, उत्कृष्टतर, उत्कृष्टतम स्वात्मानुभूति मानते हैं, वे मिथ्यात्वी नहीं हैं ( याने वे अव्रती गृहस्थ भी निश्चय सम्यक्त्वी हैं ) / याने जाति अपेक्षासे चतुर्थादिगुणस्थानवर्तियों की स्वानुभूति समान है। 25) शंका - मो.पा.टी. 2 / 305 / 9 ( भावसंग्रह-देवसेन सूरिकृत - 371 - 397 -605) . टीप -1 नियमसार गाथा नं. 144, 145 समयसार गाथा नं 152, 153, 274, 275 प्रवचनसार गाथा नं. 79.