Book Title: Nijdhruvshuddhatmanubhav
Author(s): Veersagar, Lilavati Jain
Publisher: Lilavati Jain

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Page 63
________________ देखो समयसार गाथा नं. 177 , 178 / 'राग दोसो मोहो य आसवा णत्थि समविट्ठिस्स / ' इत्यादि की टीका में श्री जयसेनाचार्य जी लिखते हैं - रागद्वेषमोहाः सम्यग्दृष्टेर्न भवन्ति, सम्यग्दृष्टित्वान्यथानुपपत्तेरिति हेतुः / तथाहि , अनंतानुबंधिक्रोधमानमायालोभमिथ्यात्वोदयजनिता रागद्वेषमोहाः सम्यग्दृष्टेर्न सन्तीति पक्षः / कस्मात् ? इति चेत् केवलज्ञानाद्यनंतगुणसहितपरमात्मोपादेयतत्वे सति वीतराग सर्वज्ञप्रणीत पद्व्यपंचास्तिकायसप्ततत्त्वनवपदार्थरूपस्य मूढत्रयादिपंचविशति दोषरहितस्य “संवेओ णिवेओ जिंदा गरुहा या उवसमो भत्ती / वच्छलं अणुकंपा गुणट्ठ सम्मत्तस्स / ' इति गाथाकथितलक्षणस्य चतुर्थगुणस्थानवर्तिसरागसम्यक्त्वस्य अन्यथानुपत्तेरिति हेतुः। अर्थ - चतुर्थादि गुणस्थान वाले सम्यग्दृष्टि जीव को राग - द्वेष - मोह नहीं होते हैं, क्यों कि राग-द्वेष, मोह भावों के होने पर सम्यग्दृष्टिपना प्राप्त नहीं होता। . ___इसको स्पष्ट कर बतला रहे हैं - चतुर्थ गुणस्थान वाले सम्यग्दृष्टि जीव के अनंतानुबंधी क्रोध-मान-माया लोभ और मिथ्यात्व के उदय में होने वाले राग-द्वेष-मोह भाव नहीं होते (यह पक्ष है।) क्यों कि - . . अध्यात्म भाषा से . आगम भाषा से केवलज्ञानादि अनंतगुणों सहित | वीतरागसर्वज्ञ , छह द्रव्य , पांच स्वस्वभावमय परमात्मा को ( याने / अस्तिकाय, सात तत्त्व, नव पदार्थ की अपने निजशुद्धात्मपारिणामिक भाव | रूचिरूप और मूढत्रयादि पच्चीस को ) उपादेय करके स्वानुभवसहित ही दोषरहित और संवेग, निर्वेद, निंदा, चतुर्थगुणस्थान वाले का सम्यक्त्व है। गर्हा, उपशम, भक्ति, वात्सल्य और स्वानुभूति से (शुद्धोपयोग) से रहित अनुकंपा - इन आठ गुणोंसहित ही चतुर्थ गुणस्थानवाले को सम्यक्त्व चतुर्थ गुणस्थान वाले का सम्यक्त्व है। नहीं रहता। यह कारण है। इनसे रहित चतुर्थ गुणस्थान वाले को सम्यक्त्व नहीं रहता; यह कारण है।

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