________________ (48) प्रकृतीनां अबंधकः / सप्ताधिकसप्तति प्रकृतीनां अल्पस्थित्यनुभागरूपाणां बंधकोऽपि संसारस्थितिच्छेदं करोतिः' ___ अर्थ - इस कारणसे सम्यग्दृष्टि ( चतुर्थादि गुणस्थानवाले ) जीव अबंधक कहे गये हैं। इसका विशेष कथन यह है कि - चतुर्थस्थानगुणवाले जीव अबंधक हैं, क्योंकि मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा से चतुर्थ गुणस्थान में अविरत सम्यग्दृष्टि 43 प्रकृतियों का अबंधक है। 77 प्रकृतियोंकी अल्प स्थिति, अनुभाग का बंधन है तो भी संसारस्थितिच्छेद करता है, इसलिये अबंधक है। ___ उसी टीका में आगे लिखते हैं कि - आगमभाषा ( व्यवहार ) अध्यात्मभाषा ( निश्चय ) 1) तत्र द्वादशांगश्रुतविषये १)निश्चयेन तु वीतराग अवगमोज्ञानं व्यवहारेण | स्वसंवेदनलक्षणं चेति। बहिर्विषयः। . निश्चयनय से वीतराग स्वसंवेदन .. वहाँ द्वादशांगश्रुतविषय का | लक्षणवाला ज्ञान ( याने अपने अवगम ज्ञान व्यवहारनय से | निजशुध्दात्म स्वभावकी पारिणामिकभाव बहिर्विषयका ज्ञान है ( याने | की अनुभूतिवाला ज्ञान ) अवगम है। .... जीवादि द्रव्य,तत्त्व, पदार्थ इत्यादि. का ज्ञान, अवगम है / ) . 2) भक्तिः पुनः सम्यक्त्वं भण्यते |2) निश्चयेन वीतरागसम्यग्दृष्टीनां व्यवहारेण सरागसम्यग्दृष्टिना | शुध्दात्मतत्त्वभावनारूपा चेति / पंचपरमेष्ठ्याराधनारूपा। | ( भक्ति को सम्यक्त्व कहते हैं उसी को भक्ति को सम्यक्त्व कहते हैं / | अध्यात्मभाषासे ) चतुर्थादि गुणस्थान में पंचपरमेष्ठि की आराधना करना | वीतराग सम्यक्त्व ( स्वानुभूति- निश्चय भक्ति है याने सम्यक्त्व है / यह | सम्यक्त्व ) वाले स्वशुध्दात्मस्वभाव की चतुर्थादि गुणस्थान में होनेवाली | भावना ( अपने पारिणामिक-भाव की श्रध्दा व्यवहारनय से सम्यक्त्व है। | अनुभूति ) कहते हैं, वह सम्यक्त्व है।