________________ (41) ..याने असंयत सम्यक्त्वी , देशसंयत सम्यक्त्वी , प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत तथा क्षपक और उपशमकवाले आठ से दस गुणस्थानवर्तियों को धर्मध्यान में प्रवृत्ति होती है, ऐसा जिनदेव का उपदेश है। . धवल पुस्तक 13 - पृष्ठ 74 पर वे लिखते हैं कि - '.... दोणं पि ज्झाणाणं विसयं पडि भेदाभावादो / ... ' एदेहि दोहि वि सरूवेहि दोण्णं ज्झाणाणं भेदाभावदो किंतु धम्मज्झाणमेयवत्थुम्हि थोवकालावट्ठाइ।' याने धर्मध्यान और शुक्लध्यान इन दोनों ही ध्यानों में विषय की अपेक्षा कोई भेद नहीं है / ... दोनों (धर्मध्यान और शुक्लध्यान इन दोनों में स्वरूप की अपेक्षा कोई भेद नहीं है, किन्तु इतनी विशेषता है कि धर्मध्यान एक वस्तु में अल्प काल तक रहता है / श्री वीरसेनाचार्यजी ने ऐसा कथन किया है कि अव्रती गृहस्थ को प्रथमोपशम सम्यक्त्व, क्षयोपशम सम्यक्त्व और क्षायिक सम्यक्त्व होता है - धवल पुस्तक 1, पृष्ठ 396 - त्रिष्वपि सम्यग्दर्शनेषु यः साधारण: अंशः तत्सामान्यम् / तत्र यथार्थश्रध्दानं प्रति . साम्योपलम्भात् / अर्थ - तीनों ( उपशम, क्षयोपशम, क्षययिक ) सम्यग्दर्शनों में जो साधारण धर्म है वह सामान्य है। - शंका - क्षायिक, क्षायोपशमिक, औपशमिक सम्यग्दर्शनों में परस्पर भिन्न-भिन्न होनेपर सदृशता कैसे ? उत्तर - उन तीनों में सदृश्यता नहीं, ऐसा नहीं है, क्योंकि उन तीनों में यथार्थ श्रध्दान के प्रति समानता पाई जाती है। . प्रथमोपशम सम्यक्त्ववाला अव्रती गृहस्थ भी 43 प्रकृतियों का बंध नहीं करता ( याने संवर करता ) है, ऐसा धवलाकार का कथन है / इसलिये एकदेश शुध्दि अविरत सम्यक्त्वी को है। 2) अव्रती गृहस्थ स्वभाव को ( ध्रुव को ) जानता नहीं है, यह कहना बाधित है, क्योंकि जिनागम का अभ्यास