Book Title: Nijdhruvshuddhatmanubhav
Author(s): Veersagar, Lilavati Jain
Publisher: Lilavati Jain

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Page 50
________________ (36) (शुद्धोपयोग से) संवरपूर्वक निर्जरा होती है / शुद्धात्मानुभूतिवाला अव्रती जीव भी आत्मानुभूति से रहित जिनलिंगधारी (द्रव्यलिंगी) मुनि से श्रेष्ठ है / देखो पृ.. नं 17. 17) शंका - तो यह निर्विकल्प आत्मानुभव (चिंतानिरोध) अव्रती गृहस्थ को कैसा होता है ? शुद्धात्मानुभूति में विषय कौनसा है ? उत्तर - देखो तत्त्वानुशासन श्लोक नं. 58,63,64,65,54 द्रव्यपयाययोर्मध्ये प्राधान्येन .. यदर्पितम् / तत्र चिंतानिरोधो यस्तद्ध्यानं बभणुर्जिनाः // 58 // द्रव्यार्थिकनयादेकः केवलो वा तथोदितः / अभावो वा निरोध : स्यात्स च चिंतांतरव्ययः। एकचिंतात्मको यद्वा स्वयंविच्चिंतयोज्झितः // 64 // अर्थ - द्रव्य और पर्याय में प्रधानता से (द्रव्य से-निश्चय से) जो अर्पित होता है उस निश्चय के विषय का जो ध्यान होता है वह चिंतानिरोध ध्यान (निर्विकल्प शुध्दात्मानुभव) है ऐसा जिनेंद्र भगवान कहते हैं / टीप - 1. समयसार तात्पर्यवृत्ति- पुण्यपापाधिकार की समुदाय पातनिका - अध्यात्मभाषया शुध्दात्मभावनां विना आगमभाषयां तु वीतराग सम्यक्त्वं विना व्रतदानादिकं पुण्यबन्धकारणमेव न च मुक्तिकारणं। टीप नं. 1 का अर्थ - अध्यात्मभाषा से शुध्दात्मभावना रहित व्रत दानादिक पुण्यबंध के ही कारण हैं, मुक्ति के कारण नहीं हैं; और आगमभाषा से वीतरागसम्यक्त्वरहित व्रत दानादिक पुण्यबंध के ही कारण हैं, मुक्ति के कारण नहीं हैं।

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