Book Title: Nijdhruvshuddhatmanubhav
Author(s): Veersagar, Lilavati Jain
Publisher: Lilavati Jain

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Page 46
________________ ... (32). . जो सादि मिथ्यादृष्टि अव्रती जीव है वह भी शुध्दात्मानुभूति से ही (शुध्दोपयोगसे ही) प्रथमोपशम सम्यक्त्व प्राप्त करता है। उसके बाद क्षयोपशम सम्यक्त्व प्राप्त करता है; और कोई सादि मिथ्यात्वी अव्रती जीव भी शुध्दात्मानुभूति से क्षयोपशम सम्यक्त्व.प्राप्त करता है। क्षयोपशम सम्यक्त्व प्राप्त करने के बाद अव्रती जीव भी क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करते हैं / उदाहरण. श्रेणिक ने नरकगति का बंध करने के बाद क्षयोपशम सम्यक्त्व प्राप्त किया। उसके बाद अव्रती रहते हुए क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त किया / इसलिये व्रत लेने के बाद ही शुध्दात्मानुभूति होती है ऐसा नहीं है और शुध्दात्मानुभूति से शुभाशुभावों का संवर होता है। देखो तत्वार्थ सूत्र अध्याय 6, सूत्र 1, 2, 3 . कायवाङ्मनःकर्म योगः // 1 // स आस्त्रवः // 2 // शुभः पुण्यस्याशुभः पापस्य // 3 // .. शुभभाव से और अशुभ भाव से आस्त्रव होता है / मोक्षमार्ग तो शुभाशुभ भावों के संवरपूर्वक होता है; और सम्यग्ददर्शन से मोक्षमार्ग शुरु होता है। शुध्दात्मानुभूति से (शुध्दोपयोग से) मोक्षमार्ग शुरु होता है / मिथ्यात्वगुणस्थान में संवरपूर्वक निर्जरा नहीं होती। 15) शंका - तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय 6, सूत्र नं. 21 सम्यक्त्वं च // 21 // सम्यक्त्व को देवगतिका कारण कहा है, यह कैसे कहा है ? .. उत्तर - सम्यक्त्व प्राप्त होते समय शुध्दोपयोग होता है, उसी समय शुध्दात्मानुभूति (निर्विकल्पता) होती है याने सम्यग्ज्ञान होता है / उसके बाद की टीका - टीप - 1 बृहद्रव्यसंग्रह गाथा 43 'मिथ्यादृष्टिगुणस्थाने तावत् संवरो नास्ति' /

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