Book Title: Nijdhruvshuddhatmanubhav
Author(s): Veersagar, Lilavati Jain
Publisher: Lilavati Jain

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Page 47
________________ श्रध्दा सम्यक् वैसी की वैसी रहती है, और वह सम्यग्ज्ञान सविकल्प होता है / चारित्र में अशुध्दोपयोग आता है तब सम्यक्त्व के साथ जो अप्रत्याख्यानादि कषायरूप शुभराग है वह शुभभाव देवगति के बंध का कारण है / सम्यग्दर्शनवाली शुध्दधारा अथवा शुध्दज्ञानधारा बंध का कारण नहीं है / अविरत सम्यक्त्वी को 43 प्रकृतियों के बंध का अभाव है याने अविरत सम्यक्त्वी को 43 प्रकृतियों का संवर है / देखो तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय 9, सूत्र नं. 1 आस्त्रवनिरोधः संवरः। आस्त्रव के निरोध को संवर कहते हैं / 16) शंका - तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय 9, सूत्र नं. 2 और 3 स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्रैः // 2 // तपसा निर्जरा च // 3 // वह संवर गुप्तिसमिती इत्यादि द्वारा होता है; और तप के द्वारा संवरपूर्वक निर्जरा होती है; और आपने आगमों के उध्दरणों के द्वारा यह सिध्द किया है कि अविरत सम्यक्त्वी को संवर होता है। तो तत्त्वार्थ सूत्र के कथनों के साथ इस का मिलान कैसे हो? ____ उत्तर - देखो बृहद्रव्य संग्रह गाथा नं. 35 की टीका में श्री ब्रम्हदेवजी लिखते हैं कि - . . ___ निश्चय व्यवहार - 1) निश्चयेन विशुध्दज्ञानदर्शन | १)व्यवहारेण तत्साधकं हिंसानृतस्वभावनिजात्मतत्त्वभावनोत्पन्नसुख | स्तेयाब्रम्हपरिग्रहाच्च यावज्जीवसुधास्वादबलेन समस्तशुभाशुभ | निवृत्तिलक्षणं पञ्चविधं व्रतम् / रागादिविकल्पनिवृत्तिव्रतम् / निश्चय से विशुध्दज्ञान दर्शन स्वभावी व्यवहार से साधक हिंसा, असत्य, निजात्मतत्त्व की भावना से उत्पन्न | चोरी,अब्रम्ह और परिग्रह के आजीवन

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