Book Title: Nijdhruvshuddhatmanubhav
Author(s): Veersagar, Lilavati Jain
Publisher: Lilavati Jain

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Page 26
________________ (12) .. 7) शंका - 1) बाह्य पूजा, भक्ति, प्रशमादि इन को देखकर अविरत को सम्यक्त्व है ऐसा मानेगे, 2) बाह्य पूजा, भक्ति, प्रशमादि और अणुव्रत का पालन देखकर देशव्रती को सम्यक्त्व है ऐसा मानेगे, और 3) बाह्य प्रशमादि भक्ति और महाव्रत का पालन देखकर महाव्रती को सम्यक्त्व है ऐसा मानेगे, इस तरह इन सब को मोक्षमार्गस्थ मानेंगे तो क्या बाधा आती है ? . समाधान - देखो धवल पुस्तकं 1 पृष्ठ 152 "प्रशमसंवेगानुकम्पास्तिक्याभिव्यक्तिलक्षणं सम्यक्त्वं / सति एवं असंयतसम्यग्दृष्टिगुणस्य अभावःस्यात् इति चेत्, सत्यं एतत्, शुद्धनये समाश्रियमाणे / अथवा तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् / अस्य गमनिका उच्यते-आतागमपदार्थाः तत्वार्थाः तेषु श्रद्धानं अनुरक्तता सम्यग्दर्शनं इति लक्ष्यनिर्देशः / कथं पौरस्त्येन लक्षणेन अस्य लक्षणस्य न विरोधः चेत्, न एष दोषः, शुद्धाशुद्धनयसमाश्रयणात् / अथवा तत्त्वरुचिः सम्यक्त्वं, अशुद्धतरनयसमाश्रयणात् / " अर्थ - प्रशम, संवेग, अनुकम्पा और आस्तिक्य इनकी बाह्य अभिव्यक्ति को सम्यक्त्व का लक्षण कहते हैं / शंकाकार-यदि प्रशमादिभावों को सम्यक्त्व का लक्षण माना जाय तो असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान का अभाव -होने का प्रसंग आयेगा ? (अर्थात् प्रशमादि की अभिव्यक्ति मिथ्यात्वी जीव में भी दिखाई देती है तब प्रशमादि की अभिव्यक्ति होना, यह लक्षण सम्यक्त्वी और मिथ्यात्वी दोनों जीवों में चला गया, इसलिये प्रशमादि यह लक्षण दोषयुक्त है / इसलिये असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान का अभाव होने का प्रसंग आयेगा (आपत्ति आयेगी)। ... समाधान - यह सत्य है (यह आपका कथन सत्य है) / प्रशमादि की अभिव्यक्ति यह लक्षण शुद्धनय (यहाँ यह शुद्धनय आमनभाषाका है याने शुद्धनय अर्थात् आगमभाषा का शुद्धसंग्रहनय है अर्थात् अध्यात्म भाषा का उपचार या व्यवहानय है, उस व्यवहारनय) के आश्रय से किया है / अर्थात्

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