________________ (21) और भी देखो श्री समंतभद्राचार्य रत्नकरंड श्रावकाचार में लिखते हैं कि गृहस्थ को सामायिक के समय शुद्धोपयोग है - "सामयिके सारम्भाः परिग्रहा नैव सन्ति सर्वेऽपि / चेलोपसृष्टमुनिरिव गृही तदा याति यतिभावम् // 102 // . अर्थ - यतः सामायिक काल में आरम्भसहित सभी परिग्रह नहीं होते हैं, अतः उस समय गृहस्थ वस्त्र से वेष्टित मुनि के समान मुनिपने को याने शुद्धात्मानुभूति को प्राप्त करता है / (शुद्धात्मानुभव लेता है ) / ". .. और भी देखिये प्रवचनसार गाथा नं. 248 - "दसणणाणुवदेसी सिस्सग्गहणं च पोसणं तेसिं / चरिया हि सरागाणां जिणिंदपूजोवदेसो य // 248 // " तात्पर्यवृत्ति में श्री जयसेनाचार्यजी लिखते हैं कि - " ननु शुभोपयोगिनामपि क्वापि काले शुद्धोपयोगभावना दृश्यते, शुद्धोपयोगिनामपि क्वापि काले शुभोपयोगभावना दृश्यते, श्रावकाणामपि सामायिकादिकाले शुद्धभावना दृश्यते, तेषां कथं विशेषो भेदो ज्ञायते इति / परिहारमाह-युक्तं उक्तं भवता, परं किंतु ये प्रचुरेण शुभोपयोगेन वर्तन्ते ते यद्यपि क्वापि काले शुद्धोपयोगभावनां कुर्वन्ति तथापि शुभोपयोगिन एव भण्यन्ते / येऽपि शुद्धोपयोगिनस्ते यद्यपि क्वापि काले शुभोपयोगेन वर्तन्ते तथापि शुद्धोपयोगिन एव / कस्मात् ? वहुपदस्य प्रधानत्वाद् आम्रवननिम्बवनवदिति // अर्थ - शंका- शुभोपयोगवालों को कभी-कभी शुद्धोपयोगभावना (शुद्धोत्मानुभूति) दिखाई देती है और शुद्धोपयोगवालों को कभी-कभी शुभोपयोगभावना (शुभोपयोग) दिखाई देती है, और श्रावकों को भी सामायिकादिकाल में शुद्धभावना (शुद्धात्मानुभूति) दिखाई देती है तो उन में क्या विशेष भेद है ? . .