________________ (27) उत्तर - चतुर्थ गुणस्थान में होनेवाली शुध्दात्मानुभूति और पंचम गुणस्थान, सप्तमगुणस्थान और अपूर्वकरण (आठवें) गुणस्थानादि और सिध्दभगवान इनको होनेवाली शुध्दात्मानुभूति जाति अपेक्षा से समान है। .. देखो 'ज्ञानार्णव' ग्रंथ में शुध्दोपयोग अधिकार (प्रकरण नं. 29) में श्री शुभचंद्राचार्यजी लिखते हैं कि - इति साधारणं ध्येयं ध्यानयोधर्मशुक्लयोः। विशुध्दिः स्वामिभेदेन भेदः सूत्रे निरूपित्त: // 104 / / 1) जीवराज ग्रंथमाला सोलापूर प्रकाशन 2) आगास प्रकाशन 32 अर्थ - इस प्रकार धर्मध्यान और शुक्लध्यान में साधारण ध्येय (समान ध्येय याने ध्यान के योग्य आत्मतत्व कारणपरमात्मा-निजस्वभाव शुध्द आत्मा अथवा शुध्दपारिणामिक भाव) समान ही है। उसमें स्वामियों के भेद से होनेवाली विशुध्दि विविध प्रकार की होती है / इस स्वामीभेद की प्ररूपणा आगम में की गयी है। धर्मध्यान में और शुक्लध्यान में इस प्रकार ध्यान किया जाता है कियः सिध्दात्मा परः सोऽहं योऽहं स परमेश्वरः / / मदन्यो न मयोपास्यो मदन्येन तु नाप्यहम् // 45 // . (ज्ञानार्णव, प्रकरण - 29) . आगास प्रकाशन 32 अर्थ - जो सिध्द परमात्मा है वह मैं हूँ, और जो मैं हूँ वह सिध्दपरमात्मा है / न मेरे द्वारा मुझसे भिन्न दूसरा कोई आराधनीय है और न मैं ही मुझसे भिन्न दूसरे के द्वारा आराधनीय हूँ / तात्पर्य यह है कि यथार्थ में (निश्चयनय से) मैं स्वयं परमात्मा हूँ / इसलिये निश्चयनय से मैं ही उपास्य (आराधनीय) और मैं ही उपासक (आराधक) हैं / उपास्य और उपासक में कोई भेद नहीं है। . इसलिये जैसे धर्मध्यान में अपने निजस्वभाव का (पारिणामिक भाव का) ध्यान किया जाता है वैसे ही शुक्लध्यान में भी अपने निजस्वभाव का (पारिणामिकभाव का) ध्यान किया जाता है / इस पारिणामिक भाव के