Book Title: Nijdhruvshuddhatmanubhav
Author(s): Veersagar, Lilavati Jain
Publisher: Lilavati Jain

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Page 34
________________ .. (20) .. . ... . तंदुलमत्स्य अशुभ परिणाम करने से सातवें नरक में गया / कोई अभव्य जीव जिनलिंग धारण कर के शुभभावों से नवग्रैवेयिक के स्वर्ग में जाता है। जीवंधरजी ने कुत्ते को णमोकार मंत्र दिया तो कुत्ता मिथ्यात्वी ही था, .. लेकिन शुभभाव होने से भवनत्रिक में देव हुआ / पार्श्वनाथजी ने गृहस्थ जीवन में सर्पयुगल को णमोकार मंत्र सुनाया, तो वह सर्पयुगल मिथ्यात्वसहित शुभ भाव रहने से भवनत्रिक में पैदा हुआ / इससे यह सिद्ध होता है कि मिथ्यात्व गुणस्थान में शुभ और अशुभ उपयोग होता है इसलिये श्री आचार्यजी ने "तरतमता" इस शब्दका प्रयोग किया है। 2) असंयत (अव्रती) सम्यग्दृष्टि, देशविरत सम्यक्त्वी, और प्रमत्तसंयत इन गुणस्थानों में तरतमता से शुभोपयोग है / यहाँ भी तरतमता शब्द महत्व का है। प्रमत्तसंयतगुणस्थान में शुभोपयोग होता है / कभी किसी.को आर्तध्यान (अशुभोपयोग) भी होता है / (देखो ज्ञानार्णव प्रकरण नं. 25, श्लोक नं. 38) गुणस्थान) होता है। प्रमत्तसंयत गुणस्थान में विकल्प हैं। ___ शुद्धोपयोग से ही असंयतसम्यक्त्वी (अव्रती सम्यक्त्वी) और शुद्धोपयोग से ही देशविरत सम्यक्त्वी का गुणस्थान प्रगट होता है, उसके बाद वह सविकल्प अवस्था में आता है (अशुद्धोपयोग याने शुभाशुभ भाव में आता है); उसके बाद कभी शुद्धोपयोग होता है, फिर शुभोपयोग होता है / अव्रती सम्यक्त्वी को अशुभोपयोग भी होता है / क्षायिकसम्यक्त्वी श्रेणिक ने आत्महत्या की; क्षायिक सम्यक्त्व होते हुए भी श्रेणिक का मरते समय अशुभोपयोग था / इसलिये तरतमता से कहने में यहाँ शुद्धोपयोग और अशुभोपयोग भी है यह दिखाया है। चतुर्थ गुणस्थानवर्ती जीव के शुभोपयोग से पंचम गुणस्थानवी जीव का शुभोपयोग उत्कृष्ट है, और पंचम गुणस्थानवी जीव के शुभोपयोग से छठे गुणस्थानवी जीव का अधिकतर उत्कृष्ट शुभोपयोग है। . .

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