________________ (22) ... उत्तर - आपका कहना सत्य है (याने शुभोपयोगवालोंको कभी-कभी शुद्धोपयोग (शुद्धात्मानुभव) होता है और शुद्धोपयोगवालों को कभी-कभी शुभोपयोग होता है और, श्रावकों को भी सामायिकादिकाल में शुद्धभावना (शुद्धात्माभूति) होती है यह सत्य है / लेकिन जो प्रचुरता से (बहुलता से) शुभोपयोग से प्रवर्तते हैं वे कभी कभी शुद्धोपयोगभावना (शुद्धात्मानुभव) करते हैं तथापि बहुलता की अपेक्षा से शुभोपयोगवाले हैं ऐसा कहते हैं; और जो शुद्धोपयोगवाले हैं वे यद्यपि कभी-कभी शुभोपयोग से प्रवर्तते हैं तथापि बहुलता की अपेक्षा से वे शुद्धोपयोगवाले हैं ऐसा कहने में आता है / जैसे किसी वन में आम्रवृक्ष अधिक हैं और नीम, अशोक इत्यादि वृक्ष थोडे हैं तो उस वन को आम्रवन कहते हैं, और किसी वन में नीम के वृक्ष बहुत हैं और आम्रादि वृक्ष कम हैं, तो उस वन को नीम का वन कहते हैं।" इससे यह सिद्ध होता है कि प्रवचनसार गाथा नं. 9 की टीका में अंसंयतसम्यक्त्वी और देशविरत सम्यक्त्वी को तरतमता से याने बहुलताकी अपेक्षा से शुभोपयोगवाले कहा है और उनको कभी कभी शुद्धोपयोग (शुद्धात्मानुभव) होता ही है / और प्रवचनसार गाथा नं. 80 की टीका का जो उद्धरण दिया है उससे स्पष्ट होता है कि शुद्धात्मानुभूति से (शुद्धोपयोग से ) ही सम्यग्दर्शन प्रगट होता है। 9) शंका - आपने जो प्रवचनसार. गाथा नं. 248 की श्री जयसेनाचार्यकी टीका उद्धृत की है उस में 'शुद्धभावना' शब्द पडा है तो शुद्धभावना का अर्थ शुद्धोपयोग अथवा शुद्धात्मानुभव हो सकता है / इसके लिये कुछ आगम प्रमाण दीजिये / ... उत्तर - देखो बृहत् द्रव्यसंग्रह की श्री ब्रम्हदेवसूरि विरचित संस्कृत टीका - उसकी द्वितीय अधिकार की गाथा 28 की पातनिका में लिखा है कि, शुद्धभावना याने निर्विकल्पसमाधि (शुद्धात्मानुभूति), शुद्धोपयोग- इत्यादि,