________________ उत्तर - 1) मिथ्यात्व, सासादान, मिश्र-इन तीन गुणस्थानों में तरतमता से अशुभोपयोग है / यहाँ तरतमता शब्द महत्वका है / मिथ्यात्व गुणस्थानवी जीव भी एक अंतर्मुहूर्त अशुभोपयोग करता है, उसके बाद एक अंतर्मुहूर्त शुभोपयोग करता है, फिर एक अंतर्मुहूर्त अशुभोपयोग करता है, फिर एक अंतर्मुहूर्त शुभोपयोग करता है / .. देखो - कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा नं. 470 . "अंतो मुहुत्त मेत्तं लीणं वत्थुम्मि माणसं गाणं / झाणं भण्णदि समए असुहं च सुहं (सुद्धं) च तं दुविहं // 470 // अर्थ - चेतनोपयोग वस्तु में एक अंतर्मुहूर्त तक रहता है उसे आगम में ध्यान कहते हैं, वह अशुभ और शुभ (अथवा पाठभेद से शुद्ध) ऐसे दो प्रकार का है। श्री समयसार में गाथा नं. 171 में कहा है क्षयोपशम ज्ञानी का उपयोग अंतर्मुहूर्त में बदलता है। .. और भी देखो महापुराण पर्व -21, श्लोक नं 38, 44 "अप्रशस्ततमं लेश्यात्रयमाश्रित्य जृम्भितम् / अन्तर्मुहूर्तकालं तदप्रशस्तावलम्बनम् // 38 // ___ अर्थ - अप्रशस्ततम लेश्याओं का आश्रय करके चार प्रकार का आर्तध्यान होता है और वह अंतर्मुहूर्त काल तक अप्रशस्त का अवलंबन लेने से होता है। प्रकृष्टतरदुर्लेश्यात्रयोपोबलबृंहितम् / अन्तर्मुहूर्तकालोत्थं पूर्ववद्भवमिष्यते // 44 // अर्थ - प्रकृष्टतर तीनों दुर्लेश्याओं के बल से रौद्र ध्यान वृद्धिंगत होता है, उसकी मर्यादा अन्तर्मुहूर्त है और आर्तध्यान के समान इस में क्षायोपशमिक भाव है।"