Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 7
________________ ( ३ ) उक्तिों को छोड़कर भागम के सुगम मार्गों को ही ग्रहण करो, क्योंकि इस संसार में अनेक (चौरासी लाख) योनियों में मनुष्य जन्म अत्यन्त दुर्लभ है, अतः हम प्रत्येक शरीर धारियों को चाहिये कि सर्वदा विचारशील होवे, क्योंकि मनुष्य वही है जो मननशील होकर सभी कार्यों को करता है ॥ ५॥ पुराणमित्येव न चास्ति मान्यं नवा नवीनं मतमित्यवद्यम् । सन्तो विविच्यान्तरद् भजन्ते मूढः परप्रत्ययनेय-बुद्धिः ॥ ६॥ भावार्थ:-तभी पुगनी बातें सच्ची हैं यह ठीक नहीं और सभी नई बातें कच्ची (बे ठीक ) हैं यह भी ठीक नहीं, वास्तविक अभिप्राय यह है कि अच्छे लोग अच्छी तरह विचार करके पुरानी या नई बातों में से किसी एक ही सच्ची बात को ग्रहण करते हैं और मूर्ख लोग विना विचारे ही दूसरों की कही हुई बात को मान लेते हैं ॥ ६॥ मूर्तिपूजा नवीनास्ति वृथा चेति वदन्ति ये। सदुक्तियुक्तिसंयुक्त प्रमाणैस्तन्निरस्यते ॥७॥ भावार्थ:-'मूर्ति पूजा' नई है अर्थात् पुरानी नहीं है तथा व्यर्थ (बेकार ) है इस तरह जो कोई (अविशेष दर्शी) कहते हैं, उसका खण्डन सुन्दर उक्तियों और तर्कों से युक्त प्रमाणों के द्वारा किया जाता है ॥ ७॥ मूर्ति-पूजन-तत्त्वार्थ-प्रकाशेऽस्मिन् विलोक्यताम् । मण्डनं मूर्ति पूजायाः खण्डनं दुर्धियां धियाम् ॥ ८ ॥ भावार्थ:-इस 'मूर्ति-पूजा-तत्त्व-प्रकाश' नाम के निबन्ध में मूर्ति पूजा के मण्डन को देखिये और दुर्बोधजनों के बुद्धि -(भ्रम) के खण्डन को देखिये ॥ ८ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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