Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 31
________________ ८] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं [ मूलपयडिसप्त्तामूलगाथा उरलदुगकम्मणणपुम कसायचउगदुअणाणअजएसु । अणयणति असुहलेसा-भवियेयरमिच्छअमणेसु ॥६६॥ आहारेऽणाहारे, य अणताऽङ्कण्ह संतकम्माऽत्थि । दुमणुय सब्वत्थेसु, आहारदुगम्मि गयवेए ||६७|| संजमसामइअच्छे असुहमेसु । अकसाये मणणाणे, परिहारे अहखाये, संखा केवलदुगे अघाईणं ||६८ || (गीतिः) अह असंखाऽण्णद, असंतकम्मा अवेअअकसाये । केवल दुगसम्मखइअ -ऽणाहारेसु अनंताऽत्थि ॥६९॥ दुमणवयणच उणाणति दंसणसण्णीसु अस्थि मोहस्स । संखेज्जा सेसासु, बावीसाअ चउघाईणं ॥ ७० ॥ अट्ठण्ह सव्वलोए - Sस्थि संतकम्मेयरा ऽस्थि घाईणं । केवलिखेत्ते लोगा ऽसंखियभागे अघाईणं ॥ ७१ ॥ सयलजगे तिरिसव्वे - गिंदिणिगोअवणसे ससुह मेसु । पुहवाईसु चउसु सिं, बायर वायर अपज्जेसु ||७२ || पत्ते अवणम्मि तहा तदपज्जत्तम्मि कायजोगे य । उरलदुगकम्मणणपुम- कसायचउगदु अणाणेसु अजए अचक्खुति असुह-लेसाभवियियरमिच्छ अमणेसु । तह आहारियरेसु, अदुहं संतकम्माऽत्थि ||७४ || लोगासंखियभागे, तिमण्यदुपणिदितसअवेएस । ( गीतिः ) अकसायसंजमेसु, अहखाये सुक्कसम्मखइएसु ॥७५॥ 112611

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