Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 41
________________ १८] मुनिश्रीवीरशेखविजयरचितं [ मूलपडिसत्तामूलगाथा सगठाणस्स अवेए, अडठाणस्स अकसायअहखाये । थोवा ताओ कमसो, संखगुणाऽण्णचउठाणाणं ॥१६६॥ सगठाणा मणणाणे, संखगुणा अणयणे अणंतगुणा । होअन्ति संतकम्मा, अडठाणस्स ण उ सेसासु ॥१६७॥ तइए भूओगारे, अहिगारम्मि हविरे दुआराई । तेरस संतपयं तह, सामी कालंतराई च ॥१६८॥ भंगविचयो य भागो, परिमाणं खेत्तफोसणाउ तहा। कालो अंतरभावा, अप्पाबहुगं जहाकमसो ॥१६९॥ मूलपयडीण सत्ता, अप्पयराऽट्टिआऽत्थि तिणरेसु। दुपणिदियतसपणमण-वयकायउरलयवेअअकसाये॥१७॥ णाणचउगर्दसणतिग-संजमअहखायसुक्कभविसम्मे।(गीतिः) खाइअसण्णाहारे, ओघव्व अवडिआ च्च सेसासु ॥१७॥ सामित्ताईसु तइअ-संतव्य अवट्ठिआअ होइ परं । (गीतिः) तइअम्मि कालदारे, ओहे मविए य साइसंतो वि ॥१७२।। भिन्नमुहुत्तं हस्सो, जेट्ठो देसूणपुव्वकोडी सो । दुविहो भिन्नमुहुत्तम-णयणे समयो लहू काये ॥१७३॥ तुरिए अंतरदारे, ओहे छत्तीसतिमणुयाईसु । जहि अप्पयरा तहि खल, भवे दुविहमंतरं समयो ॥१७४।। संखंसा गयवेए, अकसायम्मि अहखायगे जत्थ । (गीतिः) तेत्तीसाएऽप्पयरा-ऽण्णह अडठाणव्य तत्थ णऽण्णासु॥१७५।।

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