Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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२] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं [ हीरसौभाग्यभाष्यम् समजीव असंखंसो, एगक्खणिगोअछगुरल.दुगेम ।। कम्मकसायचउगतिअ-सुहलेसाहारगियरेसु॥२०६॥ (ही.भा.) पायरपज्जरहिअभू-दगऽग्गिवाउछगवणणिगोएमु । पत्तेए तदपज्जे, असंखलोगा मुणेयव्वा ॥२०७।। (ही.मा.) पल्लासखंसो पज्जबायरऽग्गितिदुणाणइयरेस । (ही.भा.) देसाजयोहिसम्मुव-समवेअगमीससाणमिच्छेसु।।२०८(गी) लोगासंखियभागो, बायरपज्जाणिले ण उ अभव्वे । णिअपढमवग्गमूलअ-संखगुआ-ऽण्णाम सेढीओ ॥२०६।।(ही.) एए गुरुओऽणंतअ-संखियलोगमिअरासिमंतामु (ही.मा.) लहुआ वि तत्तिा चिअ. किंवृणाऽह पुणो एगो।।२१०।। अस्थि पढमगुणठाणं, जहि तहि मग्गणपवेसणिग्गमगा । (गी.) गुणठाणेऽज्जे एवं,णवरि अणयणे भवे ण णिग्गमगा ॥२११॥ जहि अस्थि उ दुइअपहुडि-गुणेसु लहुआ उ एग तहि गुरुओ। पल्लासंखमो-ऽज्जे, चउगे सेसणवगे संख। ॥२१२॥(ही.भा.) तहअगुणे विण पणमण-वय उग्लविउवकमायच उगाणि । अजयछलेसा मिम्स, पवेसगा जिग्गमा जन्थि ॥१३॥ (ही) ण पवेसगा-ऽखिलणिस्य-दुपणिदितमणयणेयरमवीसु (ही.मा.) सण्णिम्मि य दुइअगुण, ण णिग्गमा ऽन्तणिरयम्मि तहा॥२१॥ दुपणिदितसेसु तहा, उरालमीसे विउवमीसे य । दुअणाणेस अजए, चक्खुअचक्खुभविसणीस ॥२१॥(ही मा.)

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