Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 78
________________ स्वोपज्ञहीरसौमाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयडिसत्ता [५५ दुमणवयणजोगेसु, जयणेयरदरिसणेसु सण्णिम्मि । मिच्छादिट्ठीयाई,णायव्वा खीणमोहंता ॥४४॥ (ही.भा.) मिच्छत्ती सासाणा, सम्मादिट्ठी सजोगिकेवलिणो। ओगलमीमजोगे, कम्मणजोगे य होअन्ति ॥४५॥ (ही.भा.) विक्कियमीसे हुन्ते, मिच्छा सासायणा य सम्मत्ती। या पमत्तजइणो, आहाराहारमीसेसु ॥४६।। (ही.भा.) वेअकसायतिगे खल, मिच्छत्ताइअणियट्टिपज्जंता । अणियट्टिबायराई, सिद्धता अत्थि गयवेए ।॥४७॥ (ही.भा.) मिच्छाई सुहुमंता, हवन्ति लोहम्मि हुन्ति अकसाए । उवसंतखीणमोहा,य सजोगिअजोगिणो सिद्धा ॥४८॥(ही.भा.) णाणतिगे ओहिम्म य, सम्माई होन्ति खीणमोहंता । होअन्ति पमत्ताई, मणणाणे खीणमोहंता ।।४९॥ (ही.भा.) केवलदुगे सजोगी,अजोगिसिद्धा-ऽस्थिमिच्छसासाणा। (गीतिः) अण्णाणतिगे हुन्ति अजोगंता संजमे पमत्ताई ॥५०॥(ही.भा.) अणियट्टिबायरंता, समइअछेएसु अप्पमत्तता । परिहारे देसजई, देसे सुहमा उ सुहुमम्मि ॥५१।। (ही.मा.) उवसंतखीणमोहा, सहजोगअजोगिणो अहक्खाए । तेउपउमासु णेया, मिच्छाई अप्पमत्तंता ॥५२॥ (ही.भा.) सम्माई सिद्धता, सम्मे खइए य अप्पमत्तंता । वेअगसम्मे णेया, उवसंतंता उवसमम्मि ॥५३॥ (ही.भा.)

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