Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 97
________________ ७४ ] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ एए जायव्वा, उक्कोसाओ जहण्णओ मणुए । पज्जतमणुस्ससमा, संखेज्जा खल मुणेयव्वा ॥१८२॥ (ही) एगो पुणो हवेज्जा, अपज्जमणुए विउव्वमीसे य । आहारदुगे सुहमे, उवसममीसेसु सासाणे ।। १८२ : (ही. मा.) छ उमत्थाऽऽसिज्जेगो, अवेअअकसाय गाहखायेसु । (गीतिः) ए परिहारे मय- मृणा गुरुओऽण्णहिं कहिं चि समा ।। १८३ ।। या जद्दण्णजेट्ठा, एए सामण्णओ विसेमा उ । अस्थि पढमगुणठाणं, जहि तहि सव्वत्थ एमेव || १८४ ॥ (ही) ओघव्य दुइअआइग- चउदम तगुणठाणगयमिद्धा | जत्थ ऽन्थि तत्थ गोया, कहिं चि उण किंचि मविसेमा ||१८५|| a तहि वितिणरेसु संखा दुइआइचउगुणठाणगा दुविहा सोधन्व सगुणठाणे. सव्वत्थाहारगदुगंसु || १८६ ॥ (ही. मा.) अहवेगिदियभूदग - तब्बायरपज्जवायरेसु वणे । (ही. मा.) पत्ते तपज्जे, विगलेस पज्ज विगलअमोस ॥ १८७॥ (गीतिः) लहुओ एगो दुइए, गुणठाणम्मि गुरुओ पुणो गया । पलिया संखियभागो उअ आवलिआअसंखंमो ॥ १८८ ॥ (ही) एगो जहण्णओ खलु अन्थि उरलमीसविउवमीसेस । तुरिअगुणठाणवती, गुरुओ संखा उरलमीसे || १८६ ॥ (ही.भा.) कम्माणाहारेसु लहुओ एगो ऽत्थि तुरियगुणठाणे । (गीतिः) लहूओ एगो तेरस - गुणठाणे ऽत्थि गुरुओ सयपुहुत्तं ॥ १६० ॥ !

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