Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 99
________________ ७६ ] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ मयदुर्गमेवं भवणे, वच्चामा छदुइआइणिरयेसु । (गीतिः) म अपज्जमए, असंखगुण सेढिपढममूलमिआ ॥ २०१ ॥ संखा - Sत्थि दुणर आणयं पहुडिसुराहारदुगअवेएस | अकसाए मणणाणे. केवलदुगसंजमेसु तहा ॥ २०२ ॥ (ही. भा) समअछे तहा, परिहारम्मि मुहमे अक्खाए । अणयण भविखडएस', गवरं णो निग्गमा हुन्ति ॥ २०३ ॥ ( ही ) केवल दुगखइएस पवेसगा णत्थि अणय मन्ये । " पदुगेऽज्जे अंगुल - विअम्ल असंखगुण सेढी ॥ २०४॥ | ( ही मा.) तड़ आई दुसु दसम - मूलअसंखगुण माइआ सेठी। (गीतिः) चउसुकमा कुछचउतिम - मुलअसंखगुण माहआ सेटी ॥ २०५ ॥ समजीव असंखंमो, एगक्खणिगोअगुरलदुगेसु । कम्मकसायचउगतिअ - गृहले माहार गियरेस ॥ २०६ ॥ (ही. मा.) बायरपज्जरहि अभू-दगऽरिगवाउगवणणि गोएस 1 पत्ते तदपज्जे, असंखलोगा मुणेयव्वा ॥ २०७ । (ही. मा.) पल्लासंखसो पज्जवायरऽग्नितिदुणाणइयरेसु । (ही .मा.) देसाजयोहिसम्मृवन्समवेअगमी मसाणमिच्छे | २०|(मी) लोगासंखियभागो, वायरपज्जाणिले ण उ अभव्वे | णि अमर मूल संखगुआ - Sणासु सेडीओ || २०६ । (ही) एए गुरुओऽणंत - संखिपलोग मिअर सिमंतासु (ही. मा.) लहुआ वितत्तिचिअ किंचूणाऽण्णह पुणो एगो ॥ २१० ||

Loading...

Page Navigation
1 ... 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132