Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ
मयदुर्गमेवं भवणे, वच्चामा छदुइआइणिरयेसु । (गीतिः) म अपज्जमए, असंखगुण सेढिपढममूलमिआ ॥ २०१ ॥ संखा - Sत्थि दुणर आणयं पहुडिसुराहारदुगअवेएस | अकसाए मणणाणे. केवलदुगसंजमेसु तहा ॥ २०२ ॥ (ही. भा) समअछे तहा, परिहारम्मि मुहमे अक्खाए ।
अणयण भविखडएस', गवरं णो निग्गमा हुन्ति ॥ २०३ ॥ ( ही ) केवल दुगखइएस पवेसगा णत्थि अणय मन्ये ।
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पदुगेऽज्जे अंगुल - विअम्ल असंखगुण सेढी ॥ २०४॥ | ( ही मा.) तड़ आई दुसु दसम - मूलअसंखगुण माइआ सेठी। (गीतिः) चउसुकमा कुछचउतिम - मुलअसंखगुण माहआ सेटी ॥ २०५ ॥ समजीव असंखंमो, एगक्खणिगोअगुरलदुगेसु । कम्मकसायचउगतिअ - गृहले माहार गियरेस ॥ २०६ ॥ (ही. मा.) बायरपज्जरहि अभू-दगऽरिगवाउगवणणि गोएस 1 पत्ते तदपज्जे, असंखलोगा मुणेयव्वा ॥ २०७ । (ही. मा.) पल्लासंखसो पज्जवायरऽग्नितिदुणाणइयरेसु । (ही .मा.) देसाजयोहिसम्मृवन्समवेअगमी मसाणमिच्छे | २०|(मी) लोगासंखियभागो, वायरपज्जाणिले ण उ अभव्वे | णि अमर मूल संखगुआ - Sणासु सेडीओ || २०६ । (ही) एए गुरुओऽणंत - संखिपलोग मिअर सिमंतासु (ही. मा.) लहुआ वितत्तिचिअ किंचूणाऽण्णह पुणो एगो ॥ २१० ||

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