Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मसाहित्ये निष्णाताः प्रेरका मार्गदर्शकाः संशोधकाश्च सिद्धान्तमहोदधय आचार्य भगवन्तः (ग्रन्थ ३२) श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वराः गणिवर्य श्रीवीरशेखरविजयरचित सत्ताविहाणं तत्र मूल प य डि सत्ता तथा तत्र स्वोपज्ञ-हीरसौभाग्यभाष्यम् तथा स्वोपज्ञहीरसौभाग्यभाष्यसंवलितां मूलपयडिसत्ता परिशिष्टद्वयोपेता || जामा तित्थरस भारतीय प्राच्यतत्व प्रकाशन समिति पिंडवाडा Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्रीशङ्केश्वरपार्श्वनाथाय नमः। ।' श्री प्रात्म-कमल-वीर-दान-प्रेम-हीरसूरीश्वरसद्गुरुभ्यो नमः । भारतीय प्राच्य तत्त्व प्रकाशन समिति पिंडवाडा संचालिताया प्राचार्यदेवश्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरकर्मसाहित्यजनग्रन्थमालाया द्वात्रिंशो (३२) ग्रन्थः कर्मसाहित्ये निष्णाताः प्रेरका मार्गदर्शकाः संशोधकाश्च सिद्धान्तमहोदधय आचार्यभगवन्तः श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वराः गणिवर्यश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहारा तत्र मूलपयडिसत्ता तथा तत्र स्वोपज्ञ-हीरसौभाग्यभाष्यम् तथा स्वोपजहोरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयडिसत्ता परिशिडयोपेता । नमो तित्थरस यालयावहीर प्रकाशिका-भारतीय-प्राच्य-तत्त्व-प्रकाशन-समितिः पिण्डवाडा। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम आवृत्तिः प्रति yo.. वीर संवत् २५१३ राजसस्करण-१५) २०, विक्रम संवत २०४३ * प्राप्तिस्थान * भारतीय-प्राच्यतत्व-प्रकाशन-समिति 10 रमणलाल लालचंद शाह १३५/२३७ झवेरी बाजार, बम्बई २ भारतीय-प्राच्यतत्व-प्रकाशन-समिति C/o शा. समरथमल रायचंदजी पिंडवाड़ा (राज.) स्टे. सिरोही रोड (W.R.) भारतीय-प्राच्यतत्व-प्रकाशन-समिति शा. रमणलाल वजेचन्द, C/o दिलीपकुमार रमणलाल मस्कती मार्केट, अहमदाबाद २. मुद्रकज्ञानोदय प्रिंटिंग प्रेस, पिंडवाडा स्टे.-सिरोहीरोड (W. R.) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलग्रन्थकृदू भाष्यग्रन्थकृत् सम्पादकश्च 5 प्रवचन कौशल्याधार - सिद्धान्तमहोदधि - सुविशालगच्छाधिपतिपरमशासनप्रभावक कर्म साहित्य निष्णात- परमपूज्य -स्वर्गताssचार्यदेवेश श्रीमद्विजयप्रेम सूरीश्वर विनीताऽन्तेवासिनिःस्पृहशिरोमणि - गीतार्थ मूर्धन्य - परम पूज्या ss चार्यदेव - श्रीमद्विजयहीरसरीश्वरशिष्यगणिवर्य श्रीललित शेखर विज पशिष्यगणिवर्यश्री राजशेखर विजय शिष्यः गणिवर्य श्री वीरशेखर विजय: फ्र Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ First Edition A.D. DELUXE EDITION RS. 1987 copies 500 AVAILABLE FROM 1. Bharatiya Prachya Tattva Prakashana Samiti, C/o. Shah Ramanlal Lalchand, 135/137 Zaveri Bazzar BOMBAY - 400 002 (INDIA) 2. Bharatiya Prachya Tattva Prakashana Samiti C/o. Bhah Samarathmal Raychandji, PINDWARA, 307022 (Raj.) (INDIA) 3. Bharatiya Prachya Tattva Prakashana Samiti Bhalı Ramanlal Vajechand, C/o Dilipkumar Ramanlal, Maskati Market, AHMEDABAD-380002 (INDIA) Printed by :Gyanodaya Printing Press PINDWARA. (Raj.) 8t. Sirohi Road, (W.R.) (INDIA) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharyadeva-Shrimad-Vijaya-Premasurishwarji Karma-Sahitya-Granth mala GRANTH NO. 32 SATTA VIHANAM MOOL PAYADI SATTA AND HEER SOABHAGYA BHASHYA AND SATTA VIHANAM MOOL PAYADI SATTA Along With HEER SOABHAGYA BHASIIYA WITH TWO APPENDICES By GANIVARYA SHRI VEERSHEKHAR VIJAYA MAHARAJA 47 Inspired and Guided by His Holiness Acharya Shrimad Vijaya PREMASURISHWARJI MAHARAJA the leading authority of the day on Karma Philosophy. Published by - Bharatiya Prachya Tattva Prakashana Samiti, Pindwara (INDIA) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * प्रकाशकीय निवेदन . हमें यह निवेदन करते हुए अपरिमित हर्ष की अनुभूति हो रही है कि सन् १९६६ में अहमदाबाद में हमारी भारतीय प्राच्य-तत्त्व प्रकाशन समिति द्वारा सर्व प्रथम तत्प्रकाशित कर्म साहित्य के आद्य दो ग्रन्थरत्नों का विशाल कुकुमपत्रिका, अनेकविध पत्रिकाओं और पुस्तिकाओं आदि के द्वारा अत्यन्त विराटकाय एवं भव्य समारोह में विमोचन किया गया था । उस अवसर पर दोनों ग्रन्थरत्नों को गजराज पर विराजमान कर, विराट मानव समुदाय के साथ, अनेकानेक साजों से अलंकृत बडा भारी जुलूस निकाला गया था । सिद्धराज जयसिंह ने सिद्धहेम व्याकरण का भव्य जुलूस निकाला था,उसके बाद सम्भवतः यही सर्वप्रथम साहित्य-प्रकाशन का ऐसा भव्य जुलूस होना चाहिये । इन प्रकाशनों के उपलक्ष में प्रकाश हाई स्कूल में विशाल पैमाने पर प्राचीन तथा अर्वाचीन जैन साहित्य की विविध सामग्री की पृथक्-पृथक् विषयान्तर्गत एक भव्य एवं विराट प्रदर्शनिका भी आयोजित की गयी थी एवं प्रबल जनाग्रह के कारण प्रदर्शनिका की अवधि दो तीन दिनों के लिए बढानी पड़ी थी। जुलस के उपरान्त प्रकाश हाई स्कूल के विशाल प्रांगण में सुशोभित मंडप Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ L •] प्रकाशकीय निवेदन में चतुर्विध संघ की प्रचुर उपस्थिति में नानाविध कार्यक्रमों के साथ ग्रन्थरत्नों का विमोचन किया गया, जिससे सामान्य जनता एवं बुद्धिजीवी लोग प्रचुररूपेण जैन साहित्य की और आकृष्ट हुए, जैन साहित्य के दर्शन से भी लोग प्रभावित हुए तथा उक्त समिति के सदस्यों में भी अपूर्व उत्साह, ओज व उमंग का संचरण हुआ । अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप स्वर्गीय परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वर महाराज साहब से प्रेरित कर्मसाहित्य के २५ ग्रन्थ आज तक तैयार हो गये हैं तथा और भी तैयार हो रहे हैं । इनके अतिरिक्त अन्य भी अर्वाचीन एवं प्राचीन छोटे बडे लगभग २५ से ३० ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं । बन्धविधान महाशास्त्र के सभी भाग मुद्रित होने से सम्पूर्ण बन्धविधान सटीक मुद्रित हो चुका है एवं आज आपके कर कमलों में 'मूलप्रकृतिसत्ता' तथा 'होर सौभाग्यभाष्यम्' तथा 'हीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलप्रकृतिसत्ता' का मुद्रण समर्पित कर रहे हैं। इसके साथ ही सत्ताविधान महाग्रन्थ के 'भाष्यचूर्णि वृत्तियुता मूलप्रकृतिसत्ता' और उनका 'पूर्वार्धः', 'उत्तरार्घः' तथा भावतृतीयांश: "चूर्णियुता मूलप्रकृतिमत्ता' 'भाष्ययुता मूलप्रकृतिसत्ता' 'मूलप्रकृतिसत्ता' 'कर्मप्रकृतिकीर्तनम् ' 'मार्गणाः' 'जीव भेदप्रकरणम्' 'कायस्थितिभवस्थितिप्रकरणम्' 'द्रव्यपरिमाणम् (१)' 'द्रव्य Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ ] प्रकाशकीय निवेदन परिमाणम् (१) 'द्रव्यपरिमाणम् (२)' 'क्षेत्रस्पर्शनाप्रकरणम्' 'भवस्थितिः (१) 'भवस्थितिः (२) 'प्ररकणानि' आदि का भी मुद्रण हम आपके कर कमलों में प्रस्तुत कर रहे है। इससे पूर्व भी हमारी संस्था द्वारा 'प्राचीनाः चत्वारः कर्मग्रन्था 'सप्ततिका नामनो छट्टो कर्मग्रन्थ' '१ थी ५ कर्मग्रन्य' आदि छोटे बडे ग्रन्थ भी प्रकाशित हुए है। आज तक इस समिति द्वारा प्रकाशित किय गये समस्त ग्रन्थरत्नों की आधार शिला दिवंगत परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वर महाराज साहब हैं, जिनकी सतत सत्प्रेरणा, मार्गदर्शन, प्रस्तुत साहित्य का उद्धार करने की अदम्य उत्कंठा और कालोचित अथक परिश्रम से ही प्रस्तुत ग्रन्थरत्नों का जन्म हुआ हैं तथा इन्हीं महापुरुष के शुभाशीर्वाद से हम ग्रन्थरत्नों के प्रकाशन के महत्कार्य में उत्तरोत्तर साफल्य की ओर पदार्पण कर रहे हैं । इन्हीं महात्मा ने हमारी संस्था को कर्मसाहित्य के इन ग्रन्थरत्नों के प्रकाशन का लाभ देकर अनुगृहीत किया । अतः हम इनके ऋणी है और इस ऋण से कमी भी उऋण नहीं हो सकते । अतः ऐसे परमोपकारी महाविभूति आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वर महाराज साहब का हम नतमस्तक कोटि-कोटि वन्दन करते हुए, इनके प्रति अवयं आभार प्रदर्शित कर रहे हैं । Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकलागम रहस्यवेदि सूरिपुरन्दर बहुश्रुत गीतार्थ-परज्योतिर्विद परमगुरुदेव परम पूज्य आचार्य देवैश श्रीमद् विजयदानसूरीश्वरजी महाराजा Page #11 --------------------------------------------------------------------------  Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय निवेदन प्रस्तुत ग्रन्थरत्न के प्रणेता परम पूज्य गणिवर्य श्री. वीरशेखरविजय महाराज साहब का हम सवन्दन आभार मानते हैं। आपके अथक, अविरत, अविरल, एवं सतत परिश्रम के फलस्वरूप ही हम इस ग्रन्थरत्न को पाठकों के करकमलों में समर्पित करने में सक्षम रहे हैं । मुद्रण करने में संस्था के निजी ज्ञानोदय प्रिन्टिंग प्रेस के मेनेजर श्रीयुत शंकरदास एवं उनके अन्य कर्मचारी गण भी धन्यवाद के पात्र हैं। __ इसके अतिरिक्त जिस किसी ने भी जिस किसी भी तरह से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से ग्रन्थ-प्रकाशन में सहायता की हो, उन सभी महानुभावों के प्रति हम अपना हार्दिक आभार प्रदर्शित करते हैं । द्रव्यसहायक-शा. तेजमल जवेरचन्दजी सुपुत्र हरखचन्द (पिंडवाडा निवासी) ने श्रुतभक्ति से अनुप्रेरित एवं अनुप्राणित होकर इस ग्रन्थरत्न के मुद्रण में द्रव्यराशि के सम्यक सहयोग से यथोचित योगदान किया है, अतः हम इनके प्रति ऋणी एवं आभारी हैं। नजदीक भविष्य में और प्रकाशन की आशा में Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० ] प्रकाशकीय निवेदन भवदीय(i) पिंडवाडा स्टे. सिरोहीरोड (राजस्थान) शा. समरथमल रायचन्दजी (मंत्री) (ii) १३५/१३७ जौहरी बाजार बम्बई-२ शा. लालचन्द छगनलालजी (मंत्री) भारतीय-प्राच्य-तत्त्व प्रकाशन समिति ॐ समिति का ट्रस्टी मंडल (१) शेठ रमणलाल दलसुखभाई (प्रमुख) खंभात (२) शा. खूबचंद अचलदासजी पिंडवाडा (३) शा. समरथमल रायचन्दजी मंत्री पिंडवाडा (४) शा. लालचंद छगनलालजी मंत्री पिंडवाडा (५) शेठ रमणलाल वजेचन्द अहमदाबाद । (६) शा. हिम्मतमल रुगनाथजी बेडा (७) शेठ जेठालाल चुनीलाल घीवाले बम्बई (८) शा. जयचन्द भबुतमलजी पिंडवाडा Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रमणिका अथ मूलपयडिसत्ता १-२० ३-४ विषयाः . पृष्ठाङ्काः विषयाः पृष्ठाङ्काः मङ्गलाचरणम् . १ | परस्थानाल्पबहुत्वम् १२-१४ १ | २ स्थानाधिकारः १४-१८ अोघा-ऽऽदेशनिरूपणप्रतिज्ञा १ सत्पदद्वारम् १ २ स्वामित्वद्वारम् पञ्चाधिकाराः १.२० ३ साद्यादिद्वारम् १ प्रकृत्यधिकारः १.१४ ४ कालद्वारम् १ सत्पदद्वारम् ५ अन्तरद्वारम् २ स्वामित्वद्वारम ६ भङ्गविचयद्वारम् ३ साद्यादिद्वारम् ७ भागद्वारम् ४ कालद्वारम ५ अन्तरद्वारम् ४ परिमाणद्वारम् ६ सन्निकर्षद्वारम् १ क्षेत्रद्वारम् ७ भङ्गविचयद्वारम १० स्पर्शनाद्वारम् ८ भागद्वारम् ११ कालद्वारम ६ परिमाणद्वारम् ७-८ १२ अन्तरद्वारम १० क्षेत्रद्वारम् ८-१ १३ भावद्वारम ११ स्पर्शनाद्वारम ९-१० १२ कालद्वारम् १०-११ । १४ अल्पबहुत्वद्वारम १३ अन्तरद्वारम् ११-१२ ३ भूयस्काराधिकारः १८-१९ १४ भावद्वारम् _..१२ १२ । ४ पदनिक्षेपाधिकारः १६.२० १५ अल्पबहुत्वद्वारम् १२-१४ स्वस्थानाल्पबहुत्वम् १२ ५ वृद्धयधिकारः Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ हीरसौभाग्यभाष्यम् २१-४८ विषयाः पृष्ठाङ्काः विषयाः पृष्ठाङ्काः होरसौभाग्यभाष्यमङ्गला ३६-४४ चरणम. २१ भादेशतः सामान्यद्रव्य१ कर्मप्रकृतयः २१-२३ परिमाणम् ३६-३६ २ मार्गणाः २३-२५ आदेशतो गुणस्थानकस्य ३ जीवभेदाः २५-२६ द्रव्यपरिमाणम् ३६-४० ४ कायस्थितिः २६-३० आदेशतो गुणस्थानकादि प्रवेशक-निगमद्रव्यपरि. भङ्गानयनकरणगाथा ३० भङ्गानयनकरणान्तरगाथा ३१ माणम्. ४०-४१ ५ द्रव्यपरिमाणम्(१) ३१.३६ प्रादेशतो मार्गणाप्रवेशकओघतो परिमाणम् निर्गमद्रव्यपरिमाणम्४१-४२ ३१ ४१-४२ प्रोघतो.ऽल्पबहुत्वम ३९ आदेशतो गुणस्थानापेक्षया आदेशतः परिमाणम् ३२-३३ मार्गणाप्रवेशक-निर्गमकआदेशतोऽल्पबहुत्वम् ३३३६ द्रव्यपरिमाणम् ४२.४४ ६ द्रव्यपरिमाणम् (२) ३६-४६ ओघत उत्पद्यमान-म्रियमाणओघतो गुणस्थानकादि द्रव्यपरिमाणम् ४४ स्थित द्रव्यपरिमाणम् ३६ आदेशत उत्पद्यमान-म्रियमाणा भोघतो गुणस्थानकादि. द्रव्यपरिमाणम ४४-४६ प्रवेशक-निर्गमकद्रव्यपरिमाणम्३६, ७क्षेत्रम आदेशतो द्रव्यपरिमाणम् | ८ स्पर्शना ४६-४८ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ हौरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयडिसत्ता ४६-९५ ४९ विषयाः पष्ठाङ्का: | विषयाः पृष्ठाङ्का मूल ग्रन्थमङ्गलाचरणम् ॥ प्रादेशतो-ऽल्पबहुत्वम् ६७-७० सत्ताभेदाः ४६ ६ द्रव्यपरिमाणम् (२) ७०-८० हीरसौभाग्यमाष्यमङ्गलाचरणम् ओघतो गुणस्थानकादिस्थित. द्रव्यपरिमाणम्. ७० १ कर्मप्रकृतयः ४१-५२ ओघतो गुणस्थानकादिओघादेशप्ररूपणप्रतिज्ञा ५२ प्रवेशकनिर्गमकद्रव्य२ मार्गणाः ५२-५३ परिमाणम्, ७०-७१ पश्चाधिकाराः ५३ भादेशतो द्रव्यपरिमाणम७१-७६ १ प्रकृत्यधिकारः ५३.८९ आदेशतः सामान्यद्रव्य१ सत्पदद्वारम् ५३:५४ परिमाणम् ७१.७४ ३ जीवभेदाः ५४.५६ आदेशतो गुणस्थानकस्थ२ स्वामित्वद्वारम् द्रव्यपरिमाणम् ७४-७५ ३ साद्यादिद्वारम ५६-५७ आवेशतो गुणस्थानकादि ४ कायस्थिति: ५७-६१ प्रवेशक-निर्गमकद्रव्य. ४ कालद्वारम ६१.६२ परिमाणम् ७५ ५ अन्तरद्वारम ६२ आदेशतो मार्गणाप्रवेशक६ सन्निकर्षद्वारम् ६२-६३ निर्गमकद्रव्यपरिमाणम्'०५-७६ ७ भङ्गविचयद्वारम् ६३-६४ आदेशतो गुणस्थानापेक्षया भङ्गानयनकरणद्वयम् ६४ मार्गणाप्रवेशक-निगमक८ भागद्वारम् ६४-६५ द्रव्यपरिमाणम ७७-७४ ५ द्रव्यपरिमाणम् (१)६५-७० उत्पद्यमान म्रियमाणमोघतः परिमाणम् ६५ । द्रव्यपरिमाणम् ७७-७४ ओघतो-ऽपल्पबहुत्वम् ६५-६६ ओघत उत्पद्यमान-म्रियमाणमादेशतः परिमाणम् ६६-६७ | द्रव्यपरिमाणम् Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ] विषयानुक्रमणिका वषयाः पृष्ठाङ्काः विषयाः पृष्ठाड्राः आदेशत उत्पद्यमान-म्रियमाण ७ भागद्वारम् ९१ द्रव्यपरिमाणम् ७-८८ ८ परिमाणद्वारम् ९१ है परिमाणद्वारम ८०-८१ ९ क्षेत्रद्वारम ७ क्षेत्रम् १० स्पर्शनाद्वारम् १० क्षेत्रद्वारम् ११ कालद्वारम ९१-१२ ८ स्पर्शना ८२.८४ १२ अन्तरद्वारम ११ स्पर्शनाद्वारम् ८४-८५ ५३ भावद्वारम् १२ कालद्वारम् ८५-८६ १४ अल्पबहुत्वद्वारम ६२-६३ १३ अन्तरद्वारम् ८६-८७ ३ भूयस्काराधिकारः १४ भावद्वारम् ८७ ९३-१४ १५ अल्पबहुत्वद्वारम ८७.८९ ४ पदनिक्षेपाधिकारः स्वस्थानाल्पबहुत्वम ८७ ९४-१५ परस्थानाल्पहुत्वम् ८५-८६ २ स्थानाधिकार: ८९९३. ५ वृद्धयधिकारः १५ १ सत्पदद्वारम ८९ परिशिष्टद्वयम् १-१० २ स्वामित्वद्वारम ८९-80 प्रथमपरिशिष्टे मूलगाथाद्यांशाः ३ साद्यादिद्वारम् ४ कालद्वारम् ९० द्वितीयपरिशिष्टे भाष्यगाथा५ अन्तरद्वारम् ९० ___ऽऽद्यांशाः ५-१० ६ भङ्गविचयद्वारम् १०-६१ . शुद्धिपत्रकम् १-४ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गणिवर्यश्रीवीरशेखरविजयरचितं सरबहा (सत्ताविधान) तत्थ मुलपयडिसत्ता (मूलप्रकृतिसत्ता) तथा तत्र स्वोपज्ञहीरसौभाग्यभाष्यम तथा स्वोपज्ञहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयीडसत्ता (मूलप्रकृतिसत्ता) परिशिष्टद्वयम Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अध्यांजलि :जिन्होंने भवरूपी कूपसे संयमरूपी रज्जु द्वारा बाहर निकाला । और प्रव्रज्यादिन से लेकर बारह साल तक निजी निश्रा में रख कर ग्रहण शिक्षा और आसेवन शिक्षा के साथ साथ ही संस्कृत-प्राकृतव्याकरण न्याय दर्शन तर्क काव्य कोश छन्द अलङ्कार प्रकरण आगम छेदादि विविधविषयक शास्त्रों के परिशीलन द्वारा सुधारस पीलाया। जिन्होंकी सतत सत्प्रेरणा और कृपादृष्टिसे ही महागंभीर और अतिभगीरथ ऐसे कर्मसाहित्य के नव निर्माण में और सम्पादन में तथा प्राचीन कर्मसाहित्य के सम्पादन आदि में आज लगातार २७ साल तक प्रयत्नशील रहा हुँ । उन कर्मसाहित्य के सूत्रधार सिद्धान्तमहोदधि सच्चारित्र. चूडामणि परमशासनप्रभावक सुविशालगच्छाधि पति परमाराध्यपाद स्वर्गीय - श्राचार्य भगवंतश्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराजा को परम पवित्र स्मृति में भवदीय कृपैककाक्षी मुनिवीरशेखरविजय गणी Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्म साहित्य ग्रंथौना प्रेरक, मार्गदर्शक अने संशोधक सिध्धान्त महोदधि सुविशाल गच्छाधिपति कर्मशास्त्र रहस्यवेदी शासन शिरछत्र स्व. परम पूज्य आचार्य देव श्रीमद् विजय प्रेम सूरीश्वरजी महाराजा Page #21 --------------------------------------------------------------------------  Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ નિ:સ્પૃહ શિરોર્માણ ગીતાર્થ મૂર્ધન્ય ગહિત ચિંતક વૃદ્ધ પુજારા 213 સ્વઃ પરમ પૂજ્ય આચાર્યદેવ શ્રીમદ્ જય હાર સૂરીશ્વરજી મહારાજ Page #23 --------------------------------------------------------------------------  Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री शङ्खश्वरपार्श्वनाथाय नमः ॥ ।। श्री आत्म-कमल- वीर-दान- प्रेम - ही रसूरीश्वरसद्गुरुभ्यो नमः ॥ मुनिश्री वीरशेखरविजयरचितं सचावैहाणं (सत्ताविधानं) तत्थ मूलपय डिसत्ता (मूलप्रकृतिसत्ता) सत्ताविहाणमुक्कं, सिरिवीरं णमिअ सपरसेयत्थं । जहसुत्तं वोच्छं गुरु- किवाअ सत्ताविहाणमिणं ॥ १ ॥ तत्थ चउविहा सत्ता, रोया पयडिठिइरसपएसत्तो । एक्केका उण दुविहा, मृलुत्तरपयडिभेअत्तो ॥ २ ॥ इह खलु ओहेण तहा, आएसेण जहसंभवं सत्तं । वोच्छिहिमु मग्गणासु, चउसत्तरिउत्तरसयम्मि ॥ ३ ॥ मूलपय डिसत्ताए, णायव्वा पयडि-ठाण - भूगारा । पयणिक्खेवो वडी, पण अहिगारा जहाकमसो ||४|| तेसु पयडिआईसु, अहिगारेसु हवन्ति दाराणि । पणरस चउदस तेरस, तिण्ण य तेरस जहाकमसो ॥५॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं [ मूलपयडिसत्तामूलगाथा अह विण्णेयाणि पयडि अहिगारम्मि पढमम्मि संतपयं । सामित्तसाइआई, कालंतरसण्णियासा य ॥६॥ भंगविचयो उ भागो, परिमाणं खेत्तकोसणा कालो । अंतरभावप्पबहू, पणरस दाराणि जहकमसो ॥७॥ अट्ठण्ह वि कम्माणं, सत्ताऽसत्ताऽस्थि केवलदुगम्मि । सत्ताऽथि अघाईणं, सेसदुसत्तरिसयेऽढण्हं ॥८॥ तिणरदुपंचिंदियतम तिमणवयणकायुरालियदुगेसु । कम्मम्मि संजमे तह, अहखाये सुकभवियआहारे ।।६।।(गीतिः) घाईणऽत्थि असत्ता, दुमणवयण जोगणाणचउगेसु । णयणेयरोहिदंसण-सण्णीसु अस्थि मोहस्स ॥१०॥ गयवेए अकसाये, सम्मत्तम्मि खइए अणाहारे । अट्ठण्ह वि कम्माणं, केवलजुगले अघाईणं ॥११॥ मोहम्सुवसंतंता, सामी संतस्स खीणमोहंता । घाईण अजोगंता-ऽण्णेसिमसंतस्स सञ्चहिं सेसा ॥१२॥ (गीतिः) घाईणं ओघव्व ति-गरदुपणिदितसतिमणवयणेसु । कायोरालियसंजम-ऽहखायसुक्कभवियेसु आहारे ।।१३।।(गीतिः) सव्वे वि अघाईणं, दुमणवयणणाणचउगसण्णीसु। दसणतिगे य सव्वे, सत्तण्होघव्व मोहस्स ।।१४॥ सव्वे वि अघाईणं, चउण्ह ओरालमीसकम्मेसु । मिच्छो सासणसम्मा, चउण्ह घाईण विण्णेया ॥१५।। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलपयडिसत्ता मूळगाथा ] सत्ताविहाणं । अट्टहोघव्व भवे, अवेअअकसायसम्मखइए केवलदुगे सजोगिअ - जोगी णेया अघाईनं ॥ १६॥ घाईण मिच्छसासण-सम्मत्ती होइरे अणाहारे । सेमाण सिद्धवज्जा, अण्णह अट्ठण्ह सव्वे वि ॥१७॥ अण्ड वि कम्माणं, सत्ता या अणाइधुवअधुवा । साइधुवाऽत्थि असत्ता, अदृण्होघव्व अणय सत्ता || १८ || ( गी०) चउहा दुअणाणाजय- मिच्छेस अभविये अणाइधुवा । भविये अणाइअधुवा, सेसासु साइ अधुवाऽत्थि ॥ १६ ॥ साइधुवाऽत्थि असत्ता, अवेअ अकसाय केवल दुगेसु । सम्मत्तखाइए, सप्पा उग्गाण पडणं ॥ २० ॥ [ ३ घाईण अणाहारे, साइव अद्भुवा अघाईणं । साइधुवाऽत्थि असत्ता, सेसासु साइसंताऽत्थि ॥२१॥ सत्ता अस्थि दुविहो, अणाइतो अणाइसंतो य । कालो अ भवे, साइअणतो असत्ताए ||२२|| Tear अकसाये, अहखाये य समयोऽत्थि अट्टहं । कालो संतस्स लहू, घाईण गुरू मुहुत्तो ॥ २३ ॥ देसूण पुच्चकोडी, अघाइचउगस्स भिन्नमुहुत्त हस्सो, भवे गुरू सम्मत्तखाइए, अट्ठण्ह लहू भवे जेोत्थि कमाsन्महिया, उदही छासट्ठितेत्तीसा || २५ || केवल दुगे से | पुव्वकोडंतो ॥ २४ ॥ मुहुत्त्तो | Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं [ मूलपडिसत्तामूलगाथा अट्ठण्ह अणाहारे, लहू खणोऽण्णो तिखणअजोगिमितो । घाइहयराण कमसो-ऽण्णह दुविहो सलहुजेट्ठठिई ॥२६।। सव्वासु मग्गणासु, यो सत्ताअ घाइइयरेमि । लहुगुरुकालो लहुगुरु-छउमत्थभवत्थकायठिई ॥२७॥ तिमणुयदुपणिंदियतस-संजमअहखायसुक्कभवियेसु । आहारे घाईणं, भिन्नमुहुत्तं लहू असत्ताए ॥२८॥ (गीतिः) देसूणपुवकोडी, जेट्ठो तिमणवयकायउरलेस । घाईण लहू समयो, यो जेट्ठों मुहुत्तंतो ॥२९॥ मोहस्स लहू समयो, दुमणवयेसु गुरू मुहुत्तंतो । घाईण उरलमीसे, लहू खणो दुसमया जेट्टो ॥३०॥ घाईण कम्मणे खलु, समया तिणि दुविहो मुहुत्तंतो। णाणचउगदंसणतिग-सण्णीसु हवेज्ज मोहस्स ॥३१॥ अट्ठण्ह साइणंतो, अवेअअकसायसम्मखइएस । तहऽणाहारे णेयो, केवलजुगले अघाईणं ।।३२।। अट्ठण्ह वि कम्माणं, संतअसंताण अंतरं णस्थि । एमेव मुणेयव्वं, सप्पाउग्गाण सव्वासु ॥३३॥ छह णियमाऽज्जसंते, सत्ताऽत्थि सिआ चउत्थकम्मस्स । दुइअचरमाण एवं, णियमाऽण्णेसिं तुरिअसंते ॥३४।। णियमिगअघाइसंते, तिअघाईणं सिआऽण्णचउगस्स । (गीतिः) घाइतिगस्स असत्ता-उज्जअसंतम्मिणियमा सिआऽण्णेसिं ॥३५॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलपपडिसत्तामूलगाथा ) सत्ताविहाणं दुइअचरमाण एवं, तुरिअअसंते सिआऽण्णसत्तण्हं । एगअघाइअसंते, णियमा सेसाण सत्तण्हं ॥३६॥ संतस्स सण्णियासो, अट्ठण्होघव्व अत्थि तिणरेसु। दुपणिंदितसेसु तह, तिमणवयणकायजोगेसु ॥३७।। ओरालिये अवेए, अकसाये संजमे अहक्खाये । सुक्काए भविये तह, सम्मे खइअम्मि आहारे ॥३८॥ दुमणवयणचउणाणति-दंसणसण्णीसु मोहसत्ताए । अण्णेसि णियमाऽण्णिग-संते छह तुरिअस्स सिआ॥३९॥ णियमेगघाइते, सत्तण्हऽण्णाण उरलमीसम्मि । कम्माणाहारेसु', अघाइचउगस्स ओघव्व ॥४०॥ सेसासु एगसंते, णियमाऽण्णेसिं भवे असंतस्स । अट्टण्होघव्य भवे, अवेअअकसायसम्मखइएसु॥४१।। (गीतिः) तिमणुयदुपणिदियतस-तिमणवयणकायउरलजोगेसु । संजम अहखायेसु, सुक्काभवियेसु आहारे ॥४२॥ मोह असते तिण्हं, सिआ असत्ता हवेज्ज घाईणं । सेमिगघाइअसंते, सेसतिघाईण णियमाऽस्थि ॥४३॥ णियमिगघाइअसंते, घाइतिगम्सुरलमीसकम्मेसु । एमेव केवलदुगे, अघाइचउगस्सऽणाहारे ॥४४॥ णियमिगघाइअसंते-ऽण तिघाईणं सिआ अघाईणं । एगअघाइअसंते, णियमाऽण्णेसिं ण सेसासु ॥४॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६] मुनिश्रीवीरशेखर विजयरचितं [ मूलपडिसत्तामूलगाथा अट्टण्ह संतकम्मा, असंतकम्मा हवेज्ज नियमाओ। अट्ठण्ह संतकम्मा, अपज्जणरवि उवमीसेसु ॥४६॥ आहारदुगे छए, परिहारे सुहमउवसमेसु तहा । सासायणमीसेसु, भजणीआ खलु मुणेयव्वा ॥४७॥ गयवेए अकसाये, अहखायेऽस्थि णियमा अघाईणं । (गीतिः) अधुवाऽण्णेसिं केवल-दुगे चउण्ह णियमाऽण्णहऽढण्हं ।।४८॥ णियमा असंतकम्मा, अवेअअकसायसम्मखइएसु । तहऽणाहारेऽ?ण्हं, केवलजुगले अघाईणं ॥४९॥ तिमणयदुपणिदियतस-तिमणवयणकायउरलजोगेसु । संजमअहखायेसु, सुकावियेसु आहारे ॥५०॥ णियमा घाईण उरल-मीसे कम्मे हवन्ति भजणीआ । दुमणवयणचउणाणति-दसणसण्णीसु मोहस्स ॥५१॥ अट्ठण्ह संतकम्मा, अणंतभागा हवेज्ज अबसेसा । सव्वह असंतकम्मा, एवं णेया अणाहारे ॥५२॥ णरदुपणिंदितमतिमण-वयसुक्कासु हविरे असंखंसा । घाईण संतकम्मा, अघाइचउगस्स णो भागो ॥५३॥ घाईणं संखंसा, अस्थि दुणरसंजमेसु णण्णेसिं । मोहस्स संखभागा, मणणाणे णत्थि सेसाणं ॥५४॥ दुमणवयणजोगेम, तहा तिणाणोहिचक्खुसण्णीसु । मोहस्स असंखंसा, हवेज भागो ण सत्तण्डं ॥५५॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूळपयडिसत्तामूलगाथा ] सत्ताविहाणं काये ओरालदुगे, कम्मणजोगभवियेसु आहारे । घाईण अणंतंसा, भागो ण भवे अघाईणं ।।५।। अट्ठण्ह अणंतंसो, अवेअअकसायसम्मखइएसु । केवलदुगम्मि गेया, अणंतभागो अघाईणं ॥५७। घाईण अहक्खाये, संखंमो अणयणे अणंतंसा । मोहस्म ण अण्ण सिं, दोसु वि सेसासु णऽढण्हं ॥५८॥ इह मग्गणाऽहिकाउं, अट्ठण्हं संतकम्मइयरेसिं । उत्तो भागो वुच्चइ, पडुच्च उण सव्वजीवा मि ॥५६।। तिरिये तह एगिदिय-णिगोअवणकायनोगणपुमेसु । दुअणाणाजय अणयण-भविमिच्छेसु असणिम्मि ||६०॥ अट्ठण्ह संतकम्मा, अणंतभागा असंखभागोऽत्थि । बायरसवेगिदिय-णिगोअकम्मणअणाहारे ॥१॥ णेया असंखभागा, सुहुमेगिदियणिगोअआहारे । पज्जसुहुमएगिदिय-णिगोअउरलेसु संखंसा ॥६२।। सुहमापज्जेगिंदिय-णिगोउरलमीसगेसु संखंसो । तिकसायेसु हीणो, चउभागो साहिओ लोहे ॥६३॥ किण्हाएऽस्थि तिभागो-ऽभहियो ऊणो य णीलकाऊसु। (गीतिः) सेसासु अणतंसो,असंतकम्माऽत्थि जाण जहि तहि सिं ।।६४॥ अट्ठण्ह संतकम्मा, असंतकम्मा य होइरेऽणंता । तरिये सव्वेगिदिय-णिगोअवणकायजोगेसु ॥६॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं [ मूलपयडिसप्त्तामूलगाथा उरलदुगकम्मणणपुम कसायचउगदुअणाणअजएसु । अणयणति असुहलेसा-भवियेयरमिच्छअमणेसु ॥६६॥ आहारेऽणाहारे, य अणताऽङ्कण्ह संतकम्माऽत्थि । दुमणुय सब्वत्थेसु, आहारदुगम्मि गयवेए ||६७|| संजमसामइअच्छे असुहमेसु । अकसाये मणणाणे, परिहारे अहखाये, संखा केवलदुगे अघाईणं ||६८ || (गीतिः) अह असंखाऽण्णद, असंतकम्मा अवेअअकसाये । केवल दुगसम्मखइअ -ऽणाहारेसु अनंताऽत्थि ॥६९॥ दुमणवयणच उणाणति दंसणसण्णीसु अस्थि मोहस्स । संखेज्जा सेसासु, बावीसाअ चउघाईणं ॥ ७० ॥ अट्ठण्ह सव्वलोए - Sस्थि संतकम्मेयरा ऽस्थि घाईणं । केवलिखेत्ते लोगा ऽसंखियभागे अघाईणं ॥ ७१ ॥ सयलजगे तिरिसव्वे - गिंदिणिगोअवणसे ससुह मेसु । पुहवाईसु चउसु सिं, बायर वायर अपज्जेसु ||७२ || पत्ते अवणम्मि तहा तदपज्जत्तम्मि कायजोगे य । उरलदुगकम्मणणपुम- कसायचउगदु अणाणेसु अजए अचक्खुति असुह-लेसाभवियियरमिच्छ अमणेसु । तह आहारियरेसु, अदुहं संतकम्माऽत्थि ||७४ || लोगासंखियभागे, तिमण्यदुपणिदितसअवेएस । ( गीतिः ) अकसायसंजमेसु, अहखाये सुक्कसम्मखइएसु ॥७५॥ 112611 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलपयडिसत्तामूलगाथा ] सत्ताविहाणं घाईण अघाईणं, केवलिखेत्तम्मि केवलदुगे वि । अट्ठण्ह ऊणलोए, बायरपज्जत्तवाउम्मि ॥७॥ लोगासंखिय मागे, अण्णह घाईण जगअसंखसे । णेया असंतकम्मा, तिमणवयउरलदुगेसु आहारे।।७७॥ (गीतिः) दुमणवयणचउणाणति-दसणसण्णीसु मोहणीयस्स । लोगासंखियभागे, असंतकम्मा मुणेयव्वा ॥७८॥ लोगासंबंसेसु, समत्तलोए व कम्मणे णेया । घाईणोघव भवे, सप्पाउग्गाण सेसासु ॥७९॥ अट्टह सव्वलोगो, परिपुट्ठो होइ संतकम्मेहिं । इयरेहि वि घाईण अ-घाईणं जगअसंखंसो ॥८॥ णिरयचरमणिरयेसु, चउणयपहुडिदेवसुक्कासु । भागा छ अस्थि फुसिआ, अट्ठण्हं संतकम्मेहिं ॥४१॥ णवरि अघाईण सयल-लोगो सुक्काअ होइ परिपुट्ठो । लोगासंखियभागो-उज्जणिरयगेविज्जणवगेसु ॥२॥ पंचसु अणुत्तरेसु, आहारगदुगविउव्वमीसेसु । मणणाणसमइएसु, छेए परिहारसुहमेसु ॥८३॥ दुइआइणिरयपणगे, विउवे देसम्मि सासणे कमसो । इगदुतिचउपण तेरह, पण बारह फोसिआ भागा ॥८४॥ णव भागाऽत्थि फरिसिआ, सुरईसाणंततेउलेसासु। सेससुरतिणाणावहि-पम्हुवसममीसवेअगेसु अड ।।८५||(गीति:) Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं [ मूलपयडिसत्तामूलगाथा घाईणं गयवेए, अकसाये संजमे अहक्खाये । लोगासंखियभागो, अड भागा सम्मखइएसु ॥८६॥ छसु वि फुसिअमखिलजगं, अघाइचउगस्स केवलदुगे वि । सेसासु सव्वलोगो, अट्ठण्डं फोसिओ णेयो । ८७।। लोगासंखियभागो, तिमणवयउरलदुगेसु आहारे । छुहिओ भवे चउण्हं. घाईण असंतकम्मेहिं ।८८।। दुमणवयणचउगाणति-दसणसणीसु जगअसंखंसो । मोहस्सोपव्व भवे, सप्पाउग्गाण बीमाए ॥८९।। अट्ठण्ह भवे कालो, सम्वद्धा मंतकम्मइयरेमि । असमत्तणरम्मि लहू, खुड्ड भवो संतकम्माणं ॥९॥ मिनमुहु विक्किय मीसे मीसुवसमेसु समयोऽन्थि । सासाणे होइ पलिअ-असंखभागो उ पंचसु वि जेट्ठो । ९१।।। होइ लहू आहारे, सुहमे समयो गुरू मुहत्तंतो । आहारमीसजोगे, दुहा अवेअअकसायेसु ॥१२॥ अहखाये घाईणं, समयो हस्सो गुरू मुहुत्तो । होइ चउअघाईण, सव्वद्धा केवलदुगे वि ।।९३ । अद्धनामयवासा, छेए अट्ठण्ह होअइ जहण्णो । जेट्ठो हवेज अयरा, पण्णासं लक्खकोडीओ ॥९४॥ परिहारम्मि जहण्णो, वीसद्धपुहुत्तमस्थि उक्कोसं । ऊणा दुपुव्वकोडी, हवेज्ज सेसासु सव्वद्धा ॥९५।। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलपयडिसत्तामूलगाया ] ' सत्ताविहाणं मोहस्स लहू समयो, असंतकम्माण मणवयदुगे-ऽण्णो। भिन्नमुहुत्तं दुविहो, चउणाणतिदंसणेसु सण्णिम्मिा।९६॥ गीतिः) समयो घाईण उरल-मीसे हस्सोऽत्थि तिसमया कम्मे । (गीति:) दोसु गुरू संखखणा, सगकम्माण इयरासु सव्वधा ।।१७।। अट्ठण्ह अंतरं खलु, हवेज णो संतकम्मइयरेसिं । अट्ठण्ह अपज्जणरे, सासणमीसेसु संतकम्माणं ॥९८॥ (गीतिः) समयो हस्सं जेट्ट, असंखभागो हवेज पल्लस्स । समयो विउञ्चमीसे, लहु गुरु बारह मुहुत्ता ॥१६॥ आहारदुगे समयो, लहुं गुरु होइ हायणपुहुत्तं । घाईण लहुमवेए, अकसाये तह अहक्खाये ॥१०॥ समयो गुरु छमासा. परमद्धपुहुत्तमत्थि दोसु गुरुं। (गीति:) मोहम्स तासु तीसु वि, केवलजुगले य णो अघाईणं ॥१०॥ छए परिहारे लहु-मट्ठण्ड कमा सहस्सवासाणि । (गीतिः) तेवट्ठी चुलसीई, गुरुमयराऽट्ठार कोडिकोडीओ ॥१०२।। सुहमम्मि लहु समयो, गुरु छमासाऽत्थि उवसमे समयो। लहुमण्णं सत्त दिणा, ण सेसगुणसटिजुत्तसये ॥१.३॥ दुमणवयणचउणाणति-दंसणसण्णीसु लहु चउत्थस्स । (गीतिः) घाईण उरलमीसे, कम्मे समयो असंतकम्माणं ॥१०४॥ दुमणवयणाणदंसण-सण्णीसु गुरु हवेज्ज छम्मासा । वासपुहुत्तमुरालिय-मीसे कम्ममणणाणेसु ॥१०॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं [ मूलपयडिसत्ता मूळगाथा ओहिदुगे अहियसमा, होह परे चिंति हायणपुहुत्तं । सप्पा उग्गाण भवे, ण चेव सेससगवीसाए ।। १०६ ।। भावेणोदइएणं, सत्ताऽट्ठण्ह खइएण उ असत्ता । एवं सत्ता ऽसत्ता सप्पा उरगाण सव्वासु ॥ १०७॥ अgue अनंतगुणाऽस्थि संतकम्मा असंतकम्माओ । एमेव अणाहारे ऽहं मोहस्स य अणयणे । १०८ ।। काय उरलदुगकम्मण - भवियाहारेसु अस्थि घाईण । दुपणिदितसतिमण-वयसुक्कासु असंखगुणा ॥ १०६ ॥ एवं मोहस्स दुमण - वयणतिणाणोहि चक्खुमण्णी । (गीतिः) संखगुणाबाईण दु-णरविरईसु तुरिअस्स मणणाणे । ११० ।। गयवेए अकसाये, सम्मे खड़ए य अट्टपयडीणं । णेया असंतकम्माऽणंतगुणा संतकम्माओ ॥ १११ ॥ एमेव अघाईणं, हवेज्ज केवलदुगम्मि घाईणं । संखगुणाss+खाये सेमासु णत्थि अप्पबहू ।। ११२ ।। थोवा असंतकम्मा, अघाडचउगम्स तो विसेमहिया । तिन्हं घाईण तओ, मोहस्स तओ अनंतगुणा ।। ११३ || तस्स चिअ संतकम्मा, तत्तो णेया विसेसहिया । (उपगीतिः ) तिण्डं घाईण तओ, अस्थि चउन्हं अघाईणं ॥११४॥ दुपणिदितसतिमण वयसुकासु असंतकम्माऽप्पा | घाईण तिन्ह ताओ, विसेसअहियाऽत्थि मोहस्स ॥ ११५ ॥ • Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'एव । मूलपडिसत्तामूलगाया ] सत्ताविहाणं तो तम्स संतकम्मा, असंखियगुणा तओ विसेसहिया। तिण्हं घाईण तओ, अघाइचउगस्स विण्णेया ॥११६।। मायबाप्पाबहुगं, विण्णेयं दुणरसंजमेसु परं । मोहम्स संतकम्मा, संखेज्जगुणा मुणेयव्या ॥११७॥ काये ओराले तह, भविया-ऽऽहारेसु होइ मणयव्व । परमत्थि संतकम्मा, अणतगुणिआ चउत्थस्स ॥११॥ मोहस्म हवेज्ज दुमण-वयणतिणाणोहिचाखुसण्णीसु। थोवा असंतकम्मा, तत्तो णेया असंखगुणा ॥११९॥ तस्स चित्र संतकम्मा, तओ विसेसाहियाऽस्थि सत्तण्हं । मोहम्स संतकम्मा, अहखायेऽप्पा तओ गेया ॥१२०॥ घाईणं संखगुणा, तत्तो तेसिं असंतकम्मा तो । (गीतिः) मोहम्स विसेसहिया, तो अघाईण संतकम्माऽत्थि ।।१२१॥ थोवा असंतकम्मा, घाईणं उरलमीसकम्मेसु । तो ताण संतकम्मा-ऽणंतगुणा तो विसेसहिया ॥१२२॥ हुन्ति चउअघाईणं, एवमणाहारगम्मि होइ परं । . घाईण अघाईओ, असंतकम्मा विसेसहिया ॥१२॥ गयवेए अकसाये, थोवा मोहस्स संतकम्मा तो। घाईण विसेसहिया, तओ अघाईण संखगुणा ॥१२४॥ तत्तो असंतकम्मा, सिमणंतगुणा तओ विसेसहिया । थाईण तिण्ह तत्तो, विण्णेया मोहनीयस्स ॥१२५॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४] मुनिश्रीषीरशेखर बिजवरचितं [ मूलपय डिसत्ता मूलगाथा मणणाणाचक्खू, दुमणोजोगव्व णवरि णायव्वा I मोहस्स संतकम्मा, कमसो संखगुणऽणंतगुणा ॥ १२६॥ गय अन्य हवेज्जा, सम्मत्तम्मि खइअम्मि अप्पबहू । परमत्थि संतकम्मा, विसेस अहिया अघाईणं ॥ १२७॥ थोवाऽत्थि संतकम्मा, अघाइचउगस्स केवलदुर्गाम्मि । ताउ अनंतगुणा से, असंतकम्मा ण सेसासु ॥ १२८ ॥ बीए खलु अहिगारे, सत्ताठाणम्मि हुन्ति संतपयं । सामिसाइआई, कालंतर मेगजीवस्स ।। १२९ ।। भंगविचयो उ भागो, परिमाणं खेत्तफोसणा कालो । अंतरभावsप्पबहू, चउदस दाराणि जहकमसो ॥ १३० ॥ अस्थि अड सत्त चउरो, तिसंतठाणाणि मूलपयडीणं । एमेव खलु तिमणुयदु- पणिदितस तिमणवयणेसु ं ॥ १३१ ॥ कायुरल अवेएस अकसाये संजमे अहक्खाये । सुक्कभविय सम्मेसु ं खड़आहारेसु णेयाणि ॥ १३२॥ दुमणवयणच उणाणति-दंसणसण्णीसु अट्ठ सत्तत्थि । अड चउरो अत्थि उरल-मीसे कम्मे अणाहारे ||१३३|| चत्तारि केवल दुगे, अड सेसासु अडसंतठाणस्स । ( गीतिः) ओहेणाए सेण वि, सामित्ताईसु मोहसंतव्व ॥ १३४॥ णवरं भागदुआरे, संखंसो अट्ठसंतठाणस्स । ( गीतिः) गयवेए अकसाये, असंखभागाऽत्थि सम्मखइए ं ॥ १३५ ॥ , Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलपयडिसत्तामूलगाथा ] सत्ताविहाणं . [ १४ अस्थि सजोगिअजोगी, चउठाणस्सऽस्थि सत्तठाणस्स । खीणकमायो सव्वह, सगठाणस्मऽस्थि ओघव ॥१३६॥ तिमणवयकायुरलदुग-कम्मणसुक्कासु आहारे । (उपगीतिः) च उठाणस्स सजोगी, सत्तरमऽण्णासु ओघव ।।१३७।। साइअधुवाणि सग-चउ-सत्ताठाणाणि अस्थि एमेव ।। सव्वासु णेयाई, सप्पाउग्गाणि ठाणाणि ॥१३८॥ : कालो भिन्नाहुत्तं, सगठाणम्स दुविहो तह जहण्णो । चउठाणस्सुक्कोसो, देसूणा पुचकोडी उ ।।१३६॥ समयोऽत्थि लहू पणमण-घयकायुरलेसु मत्तठाणस्स । जेट्टो भिन्नमुहुत्तं, दुविहो सेसासु ओघव्व ॥१४०॥ चउठाणस्स जहण्णो, समयो तिमणवयकायउरलेसु । (गीतिः) कालो भिन्नमुहुत्तं, जेठो समयो लहू उरलमीसे ॥१४॥ जेठो दुखणा कम्मे, दुहा तिसमया लहू अणाहारे । जेट्टो भिन्नमुहुत्तं, दुविहो ओघव्व सेसासु ॥१४२।। अंतरमत्थि ण सगचउ-सत्ताठाणाण एवमेव भवे । सगचउठाणाण कमा, छत्तीसाअ गुणतीसाए ॥१४।। णियमाऽत्थि संतकम्मा, चउठाणस्स खलु सत्तठाणस्स। भजणीआ मजणीआ, छत्तीसाअ सगठाणस्स ॥१४४॥ भजणीआ ओरालिय-मीसे कम्मे तहा अणाहारे । चउठाणस्स हवेज्जा, णियमा-ऽण्णासु छवीसाए ॥१४॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६] मुनिश्रीवीरशेखर विजयरचितं [ मूलपयडिसत्तामूलगाया णेया अणंतमागो, सगचउठाणाण संतकम्मेवं । कायउरलदुगकम्मअ- चक्खुभवाहारइयरेसु ॥१४६।। सप्पाउग्गाण दुणर- मणपज्जवसंजमेसु संखंसो । गयवेए अकसाये, अहखाये सत्तठाणस्स ॥१४७॥ संखंसो संखंसा, चउठाणस्सऽस्थि केवलदुगे णो। या असंखभागो, सप्पाउग्गाण सेसासु ॥१४॥ संखाऽस्थि संतकम्मा, सगचउठाणाण एवमखिलासु । लोगासंबंसे सग-ठाणस्सेवं छतीसाए ॥१४९।। चउठाणस्स हवेज्जा, केवलिखेत्तम्मि संतकम्मा उ । तिमणवयुरलदुगेसु, आहारे जगअसंखंसे ॥१५॥ गेया लोगासंखिय-भागेसु अहव सवलोगम्मि । कम्माणाहारेसु, ओघव हवेज्ज सेसासु ॥१५१।। लोगासंखियभागो, सगठाणस्सऽस्थि संतकम्मेहिं । फसिमो एवं सव्वह, चउठाणस्स य सयललोगो।।१५२॥ लोगासंखियभागो, तिमणवयउरलदुगेसु आहारे । चउठाणस्स फरिसिओ, हवेज्ज अण्णह अखिललोगो ॥१५३॥ कालो भिन्नमुहुत्तं, दुविहो सत्तण्ह संतकम्माणं । एवं सव्वासु णवरि, लहू खणो बारजोगेसु॥१५॥ सव्वद्धा चउठाण-स्सेवं सत्रह परं उरलमीसे । कम्मे घाइअसंत-व्व दुहिगजीवव्व-ऽणाहारे ॥१५॥ (गीतिः) - Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलपयडिसत्तामूलगाथा ] सत्ताविहाण [ १७ सगठाणस्स उ समयो, लहुमंतरमत्थि संतकम्माणं । छम्मासा होइ गुरु', चउठाणस्संतरं णत्थि ॥१५६॥ सव्वासु लहु समयो, सगठाणस्सऽत्थि संतकम्माणं । जेड वासपुहुत्तं, माणुस्सी-तुरिअणाणेसु ॥१५७। ओहिदुगे बोद्धव्वं, वासपुहुत्तमहवा अहियवासो । छम्मासा सेसासु, बत्तीसाए मुणेयव्वं ॥१५८।। तीसु खणो चउठाणस्स लहुमुरलमीसकम्मणेसु गुरुं । वासपुहुत्तं मासा, छ अणाहारे ण सेसासु ॥१५९।। भावेणोदइएणं, सगचउठाणाण अस्थि सत्तेवं । सगचउठाणाण कमा, छत्तीसाअ गुणतीसाए ॥१६०॥ थोवाऽस्थि संतकम्मा, सगठाणस्स खलु ताउ संखगुणा । चउठाणस्सऽत्थि तओ, अडठाणस्स य अणंतगुणा । १६१॥ मणुयदुपणिदियतसति-मणवयसुक्कासु सम्मखइएसु। सगचउअडठाणाणं, कमाऽप्पसंखियअसंखगुणा ॥१६२॥ दुमणुस्ससंजमेसु, गरव्व परमत्थि अट्ठठाणस्स । संखगुणोघव्व भवे, कायुरलभवीसु आहारे ॥१६३॥ सगठाणस्स खलु दुमण-वयणतिणाणोहिचक्खुसण्णीसु। थोवा ताओ णेया, असंखियगुणाऽट्ठठाणस्स ॥१६४॥ चउठाणस्स उरालिय-मीसे कम्मे तहा अणाहारे । थोवा हवन्ति ताओ, अडठाणस्स य अणंतगुणा ।।१६५॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८] मुनिश्रीवीरशेखविजयरचितं [ मूलपडिसत्तामूलगाथा सगठाणस्स अवेए, अडठाणस्स अकसायअहखाये । थोवा ताओ कमसो, संखगुणाऽण्णचउठाणाणं ॥१६६॥ सगठाणा मणणाणे, संखगुणा अणयणे अणंतगुणा । होअन्ति संतकम्मा, अडठाणस्स ण उ सेसासु ॥१६७॥ तइए भूओगारे, अहिगारम्मि हविरे दुआराई । तेरस संतपयं तह, सामी कालंतराई च ॥१६८॥ भंगविचयो य भागो, परिमाणं खेत्तफोसणाउ तहा। कालो अंतरभावा, अप्पाबहुगं जहाकमसो ॥१६९॥ मूलपयडीण सत्ता, अप्पयराऽट्टिआऽत्थि तिणरेसु। दुपणिदियतसपणमण-वयकायउरलयवेअअकसाये॥१७॥ णाणचउगर्दसणतिग-संजमअहखायसुक्कभविसम्मे।(गीतिः) खाइअसण्णाहारे, ओघव्व अवडिआ च्च सेसासु ॥१७॥ सामित्ताईसु तइअ-संतव्य अवट्ठिआअ होइ परं । (गीतिः) तइअम्मि कालदारे, ओहे मविए य साइसंतो वि ॥१७२।। भिन्नमुहुत्तं हस्सो, जेट्ठो देसूणपुव्वकोडी सो । दुविहो भिन्नमुहुत्तम-णयणे समयो लहू काये ॥१७३॥ तुरिए अंतरदारे, ओहे छत्तीसतिमणुयाईसु । जहि अप्पयरा तहि खल, भवे दुविहमंतरं समयो ॥१७४।। संखंसा गयवेए, अकसायम्मि अहखायगे जत्थ । (गीतिः) तेत्तीसाएऽप्पयरा-ऽण्णह अडठाणव्य तत्थ णऽण्णासु॥१७५।। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलपडिसत्तामूलगाथा ] अत्ताविहाणं अप्पपराए खीणस-जोगी दुमणवयणाणचउगेसु । दंसणतिगसण्णीसु, खयमोहोघव्व सेसासु ॥१७६।। ओहेणाएसेण वि, अप्पयराअ दुविहो खणो कालो। दुविहमवि अंनरं खलु, भिन्नमुहुन्तं मुणेयव्वं ॥१७७।। पण मणवयकायउरल-च उणाणतिदसणेसु सण्णिम्मि । गंतरमोघव्वऽण्णह, मगठाणच पणदारेसु ॥१७॥ ओहाएसेहि लहू, कालो समयोऽस्थि संखसमयाऽण्णो। सगठाणव्व हवेज्जा, अंतरमावऽक्खदारदुगे ॥१७९॥ ओहेणाएसेण वि, छत्तीसाए अवडिआएऽस्थि । भागप्पमाणगुणिआ, अप्पयराओ " सेसासु ॥१८०॥ तुरिए पयणिक्खेवे, अहिगारे तिण्णि हुन्ति दाराई । संतपयं सामित्तं, अप्पाबहुगं ति जहकमसो ॥१८१॥ मूलपयडीण संते, दुविहा हाणी दुहा अवट्ठाणं । जासु छत्तीसाए, अप्पयरा तासु एमेव ॥१८२॥ पढमसमये सजोगी, गुरुहाणि कुणइ गुरुमवहाणं । दुइअसमये सजोगी, दुमणवयणणाणचउगेसु ॥१८३॥ दंसणतिगसण्णीसु, गुरुहाणिं खीणमोहपढमखणे । (गीतिः) तयणंतरमवठाणं, ओघव्व गुरुदुपयाण सेसासु ॥१८४॥ लहुहाणिमज्जसमये, खीणकसायो लह अवट्ठाणं । दुइअसमयम्मि सो चिअ, दुपयाणेमेव सव्वासु॥१८॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचित ] मूलपयडिस तामूलगाथा हाणि अवट्ठाणा, गुरूणि दोणि वि समाणि णेयाणि । तुल्लाणि दो लहूणि वि, एमेव भवे छतीसाए || १८६ ॥ बडीए णेयाई, अहिगारे पंचमे दुआराई | तेरस संतपयं तह, सामी कालंतराई च ॥ १८७॥ भंगविचयो य भागो, परिमाणं खेत्तफोसणाउ तहा । कालो अंतरभावा. अप्पाबहुगं जहाकमसो ॥ १८८॥ संखेज्जभागहाणी, अवटुआ तह कमाऽत्थि वड्डीए । भूगारे जहविहिअं, अप्पयगडबडिआ सत्ता ॥ १८९ ॥ ॥ इति सत्ताविधानग्रन्थे मूल प्रकृतिसत्ता समाप्ता ॥ इति मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं zanâgrói ( सत्ताविधानं ) तत्थ मूलपयडिसत्ता (मूलप्रकृतिसत्ता) समाता Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ নম্ব ॥ श्री शवेश्वरपार्श्वनाथाय नमः ॥ ।। श्रीआत्म-कमल-वीर-दान-प्रेम-हीरसूरीश्वरसद्गुरुभ्यो नमः ॥ मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ता (सत्ताविधानं) तत्थ मूलपयडिसत्ता (मूलप्रकृतिसत्ता) हीरसौभाग्यभाष्यम् पणमिय सिरिणवखण्डा-पासपहुं गुरुकिवाअ जहसुत्तं । भासेमि सुबोहत्थं. भामं विसयीकरणरूवं ॥१॥ (ही.भा.) णाणस्स दसणस्स य, आवरण वेअमोहआऊणि । णामं गोअं विग्धं, एआ मुलपयडी अट्ठ ॥२॥ (ही.भा.) तेसि उत्तरपयडी, कमसो पंच णव दोणि अडवीसं । (ही भा.) चउरो तिजुअमयं दो, पणऽस्थि सव्वा-ऽडवण्णसयं ॥३॥ महसुअऽवहिमणकेवल-णाणावरणं ति पंचहा पढमं । णयरेयरोहिकेवल-दंसणआवरणगं णेयं ॥४॥ (ही.भा.) णिद्दा णिहाणिद्दा, पयला पयलपयला य थीणद्धी । एवं नवहा बीअं, सायमसायं दुहा तइ ॥५।। (ही.भा.) Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२) मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं [ हीरसौभाग्वभाष्यम् होएज्ज मोहणीयं, दुविहं देसण चरित्तमेआओ । दंसणमोहो तिविहो, सम्म मीसं च मिच्छत्तं ।।६।। (ही.भा.) दुविहो चरित्तमोहो, सोलकसायणवणोकसायेहिं । तहि कोहमाणमाया-लोहक्खा चउविहकसाया ||७॥ (ही.मा.) चउहा पत्तेगमणअ-पञ्चक्खाणियरसंजलणमेआ। (गीतिः) हुन्ति णवणोकसाया, हस्सरई अरहसोगभयकुच्छा ॥८॥ (ही.मा.) थीपुरिसणपुमवेआ, इह होइ चउत्थमट्ठवीसविहं । गरयतिरिणरसुराउग-भेएहिं पंचमं चउहा ॥8॥ (ही.भा.) गइजाइतणुउवंगा, बंधणसंघायणाणि संघयणं । संठाणवण्णगंधरसफासअणुपुग्विविहयगई ॥१०॥ (ही.मा.) पिंडपयडित्ति चउदस, तह अगुरुलहूवधायपरघाया । उस्सासआयवुज्जोअनिमिणतित्थमड पत्तया ॥११॥ (ही.भा.) तसबायरपज्जत्तं, पत्तेअथिरं सुहं च सुभगं च । सुस्सरआइज्जाणि य, जसकित्ती होई तसदसगं ॥१२॥ थावरदसगं थावर-सुहमअपज्जत्तगाणि साहारं । (ही.मा.) अथिरअसुहृदुभगाणि य, दुस्सरऽणाइज्जअजसं ति ॥१३॥ पिंडपयडीण चउपण-पणत्तिगपणरसपंचछगछक्कं । पणदुपणऽहचउदुगं,पणसयरी उत्तरा भेआ ॥१४॥ (ही.मा.) णिरयतिरिणरसुरगई, इगविअतिगचउपणिदिजाईओ। उरलविउव्वाहारग-अगकम्मणसरीरा य ॥१॥ (ही.भा.) Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरसौभाग्यभाष्यम् ] सत्ताविहाणं तत्थ मूलपयडिसत्ता [ २३ पढमतितरगंगा, होजा उरलाइगाण सजुआण | पणबंधणाणि हुन्ते, कम्मणजुत्ताण चत्तारो ||१६|| (ही. भा. ) तिण्णय ते अजुआणं, तेअसकम्मणजुआण तिणि ति । पण्णरहबंधणाई, तणुब्व संघायणाणि पण ॥१७॥ (ही.मा.) संघयणं छद्धा वज्जरिसहणारा यरिसहणारायं । नारायणरायं, कीलियछेवट्ठगाणि ति ॥ १८ ॥ (ही. मा.) समचउरंसं णिग्गोसाइकुज्जाणि वामण हुडं । ठाणा वण्णा किण्हनीललोहिअहलिहसिआ ||१६|| (ही.भा.) सुरहिदुरही रसा पण, तित्तकडुकसायअंबिला महुरो । फासा गुरुलहु मिउखर- सीउण्ह सिणिद्धरुक्खट्टा ||२०|| (ही.भा.) रियतिरिक्ख माणूससुर अणुपुब्बी होज्ज सुह असुहखगई। छट्ट तिजुअसयविहं णीउच्चं सत्तमं दुविहं ॥ २१ ॥ (ही.भा.) दाणलाह भोगो-व भोगविरियंतरायगं चरमं । पंचवि इइ एआ, सव्वा अडवण्णजुत्तसयं ||२२|| (ही.भा.) सत्तं पड़च्च एआ णेया बंधम्मि वीसजुत्तसयं । उत्तरपयडी उदए, बावीसाहियसयं जम्हा ||२३|| (ही. भा. ) ससरीरन्तरभृया, बंधणसंघायणा उ बंधुदए । वण्णाचऊ गेज्झा, बंधे णो सम्ममीसाई || २४|| ( ही. भा. ) वह गहंदियाणि कायो, जोओ वेओ कसायणाणाणि । संजमदंसणलेसा, भवसम्मं सण्णिआहारा || २५ | ( ही. भा. ) Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C २४ ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं [ हीरसौभाग्यभाष्यम् इइ मूलमग्गणा सिं, भेआ हुन्ति सगचत्तगुणवीसा । बायालद्वारसचउ-पणअडऽडचउछदुसगदुदुर्ग ।।२६।। (ही.भा.) णिरयो भूभेआ सग-णिरया तिरियो पणिदितिरियो से। नोणिमई पज्जियरा, एमेव चउबिहा मणमा ॥२७॥ (ही.भा.) देवभवणवइवंतर-जोइसपढमाइबारकप्पभवा । पढमाई गेविज्जा, णव पंच अणुत्तरा णेया ।।२८॥ (ही.भा.) एगिदियो तहा से, सुहमियरा होंति ताण पन्जियरा। बितिचउपणिदिया सिं,पज्जत्ता तह अपज्जत्ता। २६ ।।(ही.भा.) एगिदियव्य पुढवी-दगग्गिवाऊ हवंति सत्तविहा । वणकाया होइ दुहा, पत्तेअणिगोअमेअत्तो ॥३०।। (ही.मा.) पत्तेअवणो तस्स य, पज्जत्तो तह भवे अपज्जत्तो । (गीतिः) सत्तविहोऽस्थि णिगोओ,पुहविव्व तसो पणिंदियव्व तिह।।।३१॥ मणवयणा सिं भेआ, चउगे मच्चियरमीसववहारा । कायो भेआ सगुरल-विउवाहारदुगकम्मा से ॥३२॥ (ही.भा.) थीपुमणपुमअवे आ, य कोहमयमायलोहअकसाया ।(गीतिः) महसुअवहिमणकेवल-णाणं भइसुअअणाणविन्भंगा ॥३३।। (ही.) संजमसामइआई, छेओ परिहारसुहुमअहखाया । देसअजयाणि णयणे-यरोहिकेवलदारसणाणि ॥३४॥ (ही.भा.) किण्हा नीला काऊ, असुहियरा तेउपम्हसुक्काओ। भविया-ऽभविया सम्म,खाइयवेअगउवसमा य॥३५॥(ही.भा.) Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरसौभाग्यमाष्यम् ] सत्ताविहाणं तत्थ मूलपयडिसत्ता [ २५ सासायणं च मीसं, मिच्छं सण्णी तह असण्णी । (ही.भा.) आहाराणाहारा, इइ उत्तरमग्गणा णेया ॥३६।। (उपगीतिः) जीवा णेया मिच्छा-दिट्ठी सासाणमीसदिट्ठी य । अविरयसम्मादिट्ठी, देसपमत्ताऽपमत्तजई ॥३७।। (ही.मा.) तहऽपुवकरणवत्ती, अणियट्टी सुहुमसंपराया य । उवसंतखीणमोहा,य सजोगिअजोगिणो सिद्धा ॥३८॥ (ही.मा.) सव्वणिरयभेएसु, सुरगेविज्जतदेवविउवेसु । अजयासुहलेसासु, मिच्छाई होन्ति सम्मंता । ३६।। (ही.भा.) मिच्छाई देमविरय-अंता तिरियतिपणिदितिरियेसु (गीतिः) मिच्छादिट्ठीया चिय, असमत्तपणिदितिरियमणुसेसु॥४०॥ (ही.भा.) सव्वेसु एगिदिय-विगलिंदियपंचकायभेएसु । असमत्तपणिंदियतस-अभवियमिच्छत्तअमणेसु॥४१॥ (ही.भा.) मिच्छाइअजोगंता, तिमणुसदुपणिदिदुतसभरियेसु । सम्मादिट्ठीया चिअ, पण-ऽणुत्तरदेवभेएसु ॥४२।। (ही.मा.) तिमणवयणकायेसु, ओरालम्मि सुइलाअ आहारे । मिच्छादिटिप्पभिई,होअन्ति सजोगिपज्जंता ॥४३॥ (ही.मा.) दुमणवयणजोगेसु, गयणेयरदरिमणेसु सण्णिम्मि । मिच्छादिट्ठीयाई,णायव्या खीणमोहंता ॥४४॥ (ही. भा.) मिच्छत्ती सासाणा,, सम्मादिट्ठी सजोगिकेवलिणो। ओरालमीसजोगे, कम्मणजोगे य होअन्ति ॥४५॥ (ही.मा.) Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६] मुनिश्रीषीरशेखर विजयरचितं [ हीरसौमाग्य माध्यम विकिकयमीसे हुन्ते, मिच्छा सासायणा य सम्मत्ती । णेया पमत्तजइणो, आहाराहारमीसेसु ||४६ | | ( ही. भा. ) वेअकसायतिगे खल, मिच्छत्ताइअणियद्विपज्जंता । अणियट्टिबायराई, सिद्धता अन्थि गयवेए || ४७ ।। (ही. भा. ) मिच्छाई सुमंता, हवन्ति लोहम्मि हुन्ति अकमाए । उबसंतखीण मोहा, य सजोगिअजोगिणी सिद्धा ॥ ४८ ॥ (ही. भा. ) जाणतिगे ओहिम्म य, सम्माई होन्ति खीणमोहंता । होअन्ति पमत्ताई, मणणाणे खीण मोहंता ||४९ ।। (ही. भा. ) केवलदुगे सजोगी. अजोगिमिद्धा ऽन्थि मिच्छासाणा | (गीतिः) अण्णाति हृन्ति जोगंता मंजमे पमत्ताई ॥ ५० ॥ (ही.मा.) अणियट्टिवा समइअछे पसु अप्पमत्तंता 1 परिहारे देसजई, देसे सुहमा उ सुमम्मि ॥५१॥ (ही. मा.) उबसंतखीणमोहा, सहजोगअजोगिणो अडक्खाए । उपमासु णेया, मिच्छाई अप्पमत्ता || ५२ ॥ (ही. मा.) सम्माई सिद्धता, सम्मे खडए य अप्पमतता | वे अगसम्मे णेया, उवमंनंता उवममम्मि ॥ ५३॥ (ही. मा.) ससाणे सासाणा, मीसे मीसा तहा अणाहारे । मिच्छा सासणसम्मा, सहजोगअजोगिणो सिद्धा || ५४ | ( ही ) कार्याठिई उक्कोसा, णिरयसुराणं विभंगणाणस्स | किosre सुकाए, तेसीसा सागरा णेया ॥ ९५५॥ (ही. मा.) Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरसौभाग्यभाष्यम् ) सत्ताविहाणं तत्थमूलपयडिसत्ता [ २७ पढमाइगणिरयाणं, कमसो एगो य तिण्णि सत्त दस । सत्तरह य बाबीसा, तेत्तीसा सागरा णेया ॥५६॥ (ही.मा.) णेया उ असंखेज्जा, परिअट्टा पुग्गलाण तिरियस्स । एनिदियहरियाणं, कायणपुसग असण्णीणं ।।५७॥ (ही.मा.) तिपणिदियतिरियाणं, तिणराणं च पलिओवमा तिण्णि । अमहिया पुव्वाणं, कोडिपुहुत्तेण णायव्वा ||५८॥(ही.भा.) सव्वापज्जत्ताणं, समत्तबायरणिगोअकायस्स । पज्जत्तगसुहुमाणं, पणमणवयउरलमीसाणं ।।५९।। (ही.मा.) वेउबदुगस्स तहा, आहाग्दुगस्स चउकसायाणं । सुहुमुवसममीमाणं, भिन्नमुहुत्तं मुणेयव्वा ॥३०॥ (ही.भा.) भवणस्स माहियुदही, पल्लं वंतरसुरस्स विण्णेया। पलिओवममभहियं, जोइसदेवस्स णायव्वा ॥६॥ ही.भा.) सोहम्माईण कमा, अयरा दो साहिया दुवे सत्त । अन्महि या सत्त य दस,चउदस सत्तरह णायव्वा ।।६२।(ही.) एत्तो एगेगहिया, णायव्या जाव एगतीसुदही। उपरिमगेविज्जस्म उ, तेत्तीसा-गुत्तराण भवे ॥६३ (ही.मा.) अगुल असंखभागो, बायरएगिदियस्स सुहमाणं । तह पुहवाइचउण्हं, णेया लोगा असंखेज्जा ॥६४॥ (ही.मा.) बायरपज्जेगिंदिय - भूदगपत्तेअबाउविगलाणं । (गीतिः) संखेज्जसहस्ससमा, समत्तबेइंदियस्स संखसमा।६५॥(ही.मा.) Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं [ हीरसौभाग्यभाष्यम् पज्जत्तगतेइंदिय-बायरतेऊण होइ संखेज्जा । दिवसा संखियमासा, समत्तचउई दियस्स भवे ॥६६॥(ही.मा.) पंचिंदियचक्खूणऽहि-युदहि-सहस्सं तसस्स तं दुगुणं । पज्जपणिदितसपुरिस सण्णीणायरसयपुहुत्तं ॥६७॥ (ही.भा.) अद्धतइअपरिअट्टा, भवे णिगोअस्स होइ कम्मठिई । बायरपुहवाइचउग णिगोअपत्ते प्रहरिआणं ॥६८॥ (ही.मा.) बावीससहस्सममा, देसूणोगलियस्म विण्णेया। कम्मस्स तिण्णि समया, पल्लमयपुहुत्तमिन्थीए ॥६६॥(ही.भा.) गयवेअकमायाणे, म इअणंता य स इयंता य । दुविहा हवेज्ज दुइआ, भिन्नमुहुत्तं भवे जेट्ठा ।।७०।।(ही.भा.) दुइआ चेव हवेज्जा, छ उमत्थस्स य तहा भवत्थम्म । णवरि भवत्थम्स गुरू, कोडी पुयाण देसूणा ॥७२॥ ही.भा.) साहियछसटिजलही, तिणाणओहीण वेअगस्म भवे । दुविहा अणाइर्णता, प्रणाइसंता अचक्खुम्स ॥७२॥ (ही भा.) मणणाणसंजमाण, समइअछे अपरिहारदेमाणं । देसूणा पुव्वाण, कोडो एगा मुणेयव्वा ।।७३।। (ही.भा.) केवलदुग-खहाणं, साइअणंता लहू भवत्थस्स । मिन्नमुहुत्तं केवल-दुगस्स जेठूणपुवकोडी उ ॥७४॥(ही.भा.) खइअरस भवत्थस्स य, उमस्थस्स य लहू मुहुर्ततो । तेचीससागराई, अमहियाई भवे जेद्दा ॥७५॥ (ही.भा.) Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरसौभाग्यभाष्यम् ] सत्ताविहाणं तत्थ मूल पयडिमत्ता [ २६ दुअणाणा-ऽजयमिच्छाणणाइगंता अणाइसंता य । माइमपज्जासाणा, तहआ हीणपरियट्टो ॥७६॥ (ही.भा.) देसूणपुचकोडी, अहखायस्स हवए भवत्थस्स । एमा गुरुकायठिई, छ उमत्थस्स उ मुहुत्तंतो ॥७७॥ (ही.भा.) णीलाइचउण्ह कमा, अयरा दस तिण्ण दोणि अट्ठार । भवियस्स-ऽणाइसंता, अणाइणंता अभवियस्स ॥७८॥ (ही.भा.) सम्माणाहाराणं, साइअणंता य माइसंता य । सम्मस्सुदहिछमट्टी,अहियाऽण्णस्स समया तिण्णि ॥७॥(ही.भा.) सम्मस्स भवत्थस्स उ, तह छउमत्थस्स साइसंता च । एवमणाहारे पर-मन्तमुहुत्तं गुरू भवत्थस्स।।८०॥(गीतिः)(ही.मा.) सासायणस्स णेया, आवलिआओ छ जेट्टकाठिई। आहारगस्स हवए, अंगुलभागो असंखयमो ॥८१॥ (ही.मा.) केइ उण बिति हवए, संखसहस्सरिसा समत्ताणं । घेइंदियतेइंदिय-चउइंदियवायरऽग्गीणं ॥८२॥ (ही.मा.) दो सागरा सहस्मा, समत्ततसचक्खुदंसणाण भवे । सत्तरह सत्त अयरा, होइ कमा नीलकाऊणं ॥३॥ (ही.मा.) काठिई णायव्वा, जहण्णगा दससहस्सवासाणि । णिरयपढमणिरयाणं, देवभवणवंतराणं च ॥८४॥ (ही.भा.) दुइआइगणिरयाणं, सा पढमाइणिरयाण जा जेट्ठा । खुड्डमवो तिरियतिरिय-पणिदिमणुयतदपज्जाणं ॥५॥ (ही.भा.) Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३.] मुनिश्री वीरशेखरविजयरचितं [ हीरसौभाग्यभाष्यम् पज्जत्तभेअवज्जिअ-सेसिदियकायभेअसण्णीणं । अमणस्स जाणियब्वा, आहारस्स तिसमयहीणो।८६॥(ही.भा.) भिन्नमुहत्तं तु सयल-पज्जत्तगजोणिणीण कायम्स । मीसदुजोगपुमाणं, तिकसायाणं मइसुआणं ॥८७॥ (ही.भा.) अण्णाणदुगस्स तहा, देसाजयचक्खुसव्वलेसाणं । सम्मत्तवेअगाणं, उसममीसाण मिच्छस्स ॥८८॥ (ही.भा.) पलियस्स अट्ठभागो, जोइसिअस्स पलिओवमं णेया । सोहम्मसुरस्स भवे, ईसागस्सऽभहियपल्लं ॥८६।। (ही.भा.) दोणि हवेज्जा जलही, सणंकुमारस्स दोणि अब्भहिया । माहेंदस्स हवेज्जा, सत्त भवे बम्भदेवस्स ॥१०॥ (ही.भा.) लंतगदेवाईणं, सा बम्हसुगइगाण जा जेट्ठा ।(गीतिः) सव्वत्थकेवलजुगल-अचक्खुभविअभविखाइआणं जो ॥११॥ (ही.भा.) समयोऽस्थि पणमणवयण उरलदुगाहारविउवकम्माणं । इत्थीणपुसगाणं, अवेअलोहाफसायाणं ॥१२। (ही.भा.) मण्णाणोहिदुगविभंगसंजमसमइअछे असुहुमाणं । परिहाराहक्खायग-सासणऽणाहारगाणं च ।।९३॥ (ही. भा.) अण्णे तिकसायाणं, समयो मणणाणओहिजुगलाणं । संजमपरिहाराणं, भिन्नमुहुन् ति कायठिई ॥१४। (ही.भा.) भयणीअपयस्स दुबे, भंगेगाणेगजीवभेआओ । ते चितिगुणा दुजुआ,पयपयवडीअ कायवा॥९५॥(ही.भा.) Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होरसौमाग्यभाष्यम् ] सत्ताविहाण तस्य मूलपयडिसत्ता [ ३१ णेया अधुवपयसमा, ठविअ तिसंखा परोप्परऽमत्था । भंगा धुवमहिआणं, ते धुवरहिआण एगूणा ॥६६॥ (ही.भा.) मजिमणंनाणंतग-माणा मिच्छेव मजयपमुहावि । पल्लासखंसी चउ सासाणाइगुणठाणगया ॥९॥ (ही.भा.) कोडि पहम्मपुहुत्तं, पमत्तइयरा हवन्ति उ सजोगी। कोडिपृहुत्तं सेसछ-गुणठाणगया सयपुहुत्तं ॥६८॥ (ही.मा.) मज्झिमजुत्ताणता-ऽजोगी सिद्धा पवेसगेगाई । जाव उनसामगा चउ-वण्णाऽडुत्तरसयं खवगा ।।६६॥ (ही.भा.) हुन्ति उवसामगा-ऽप्पा, पवेसगा ताउ दुगुणिआ खवगा। ताउ कमा संखगुणा, अजोगिचउउपसमगखबगा।॥१०॥ही.भा.) साउ कममो सजोगिअ-पमत्तहयरा तओ असंखगुणा । देसा तो सासाणा, तो मीसा संखियगुणा वा ॥१०१॥ (ही.मा.) ताउ असंखेज्जगुणा, अविरयसम्मा तओ अणंतगुणा । सिद्धा ताओ मिच्छा, तो अजयाई कमा-ऽभहिया ॥१०॥ही.मा.) अहवुवसंता-ऽप्पा तो, खीणा संखियगुणा तोऽभहिया । सुहमनियट्टिअपुया, तुल्लाऽण्णोण्णं तओ कमसो॥१०॥ही.भा.) जोगिअपमत्तइयरे, संखगुणा तो कमा असंखगुणा । देसतिदुइआइगुणा, णवरि व संखियगुणा मीसा ॥१०४॥ ही भा.) तोऽणतगुणा सिद्धा, ताउ विसेमाहिया अजोगीओ (ही.मा.) मिच्छाऽस्थि अणंतगुणा, तो अजयाई कमाऽभहिया॥१.५॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२] :- मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं [ हीरसौभाग्यभाष्यम् जीवा असंखसेढी, णिरय-उज्जणिरय-दुकप्प-भवणेसु। सेढिअसंखंसोऽण्णछ-णिरय-छकप्प-णर-तदसमत्तेसु ।।१०६।। (गीतिः) (ही.भा.) तिरिये सव्वेगिदिय-णिगोअवणकाउरालियदुगेसु । कम्मणपुमकोहाइग दुअणाणा-ऽजयअचक्खूसु ।।१०७॥(ही.मा.) तिकुलेसामिच्छ भविय-अमणाहारेसु तह अणाहारे। मज्झिमणंताणंतग-माणा ऽणंता मुणेयव्वा ॥१०८॥ (ही.मा.) सवपणिदितिरि विगल-पणिंदि-तस-देव-वंतरदुगेसु । बायरपज्जत्तेसु, भूदगपत्तेमकायेसु ॥१.६॥ (ही०मा०) पणमणवयण विउवदुग-थीपुरिसविभंगणाणणयणेसु । सुतिलेसासण्णीसु, पयरस्स असंखयमभागो॥११०॥(ही.मा) दुमणुयसव्वत्थेसु, संखेज्जा सेसमुरतिणाणेसु । देसोहीसु तहुवसम-वेअगसासाणमीसेसु॥१११।। (ही.भा.) पल्लासंखियमागो, बायरपज्जत्ततेउवाऊसु । हुन्ति कमा देसूणा, घणावली लोगसंखंसो॥११२।(ही.भा.) णेया असंखलोगा, सेसेसु छवीसकायभेएसु । हुन्ति सहस्सपुहुत्तं,आहारदुगम्मि परिहारे ॥११३।।(ही.भा.) सिद्धपमाणाऽणता, अवेअअकसायकेवलदुगेसु । सम्मखइएसु चउसु, कोडिपुहुत्तं तहि भवत्था ॥११४।।(ही.भा.) गयवेए अकसाए, छउमत्था उ हविरे सयपुहुत्तं ।(ही.भा.) पवासंखियभागो, दुविहा अवि सम्मखइएसु॥११५॥ (गीतिः) Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरसौमाग्यमाध्यम ] सत्ताविहाणं तत्थ मूलपयडिसत्ता [ ३३ कोडिसहस्सपुहुत्तं, मणणाणे संजमे समइए य । कोडिसयपुहुत्तं उण, छेए सुहमे सयपुहुत्तं ॥१६॥(ही.भा.) कोडिपुहुत्तं णेया, अहखाए तत्थ खलु सयपहुत्तं । छ उमत्था जीवा लहु-जुत्ताणंता अभवियम्मि॥११७॥(ही.भा.) 'सुहमे जीवा थोवा. 'तो छउमन्था समा व अकसाये । अहखाए हुन्ति 'तओ, विसेस अहिया अवेए तो ॥११८॥ संखगुणाऽऽहारदुगे, परिहारे 'ताउ केवलदुगम्मि । (ही.भा.) तणुधारी 'तोऽभहिया, अकसाये तह अहक्खाए ॥११९॥ *ताउ भवत्था-ऽवेए, 'तत्तो छेअम्मि संखियगुणा ."तो । मणणाणसमइएसु, कमा'तओ संजमे:ऽभहिया ॥१२०॥ (ही भा) "तो संखगुणा दुमणुय-सव्वत्थेसु" तो असंखगुणा । पज्जत् वायरऽणले,"ताउ चउअणुत्तरसुरेसु॥१२१॥(ही.भा.) ".२"ताउ कमा-ऽऽणयकप्पं, जा संखगुणा तओ अमंखगुणा। देसे तो सासाणे, ताउ उबसमम्मि संखगुणा॥१२२॥(ही.) 'तत्तो मीसे संखिय-गुणा अमंखियगुणा व विण्णेया । ताउ खइए भवत्था,अमंखियगुणा तओ णेया॥१२३॥(ही.) ओहिदुगवेअगेसु, तओ विसेसाहिया मुणेयच्या । महसुअणाणेसु तओ,हुन्ति भवत्था उ सम्मत्ते ॥१२४॥ही.भा.) ".४"ताउ असंखगुणा-ऽन्तिम णारगपमुहऽट्ठमाइकप्पाणं । दुदुएगेगेगेगे-गदुएगेसु कमेण कमा ॥१२५॥ (ही.भा.) Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं [ हीरसौभाग्यभाष्यम् "ताउ अपज्जत्तणरे,"तओ विसेसाहिया गरे ०.५'तत्तो। टुइअ-पढमकप्पेसु, कमा असंखगुण-संखियगुणा'२. तो॥ भवण पढमणिरयेसु, कमा असंखियगुणा"तओ णिरये । अन्भहिया अस्थि"तओ, सुक्काअ असंखियगुणा".तो ॥ कमसो पउम-तिरिक्खिी -वंतरपुमथीसु संखियगुणा''."तो । कमसोऽभहिया जोइस-तेउ-सुर-विभंग-सण्णीसु ॥१२८॥ "ता चउइंदियपज्जे,संखगुणा"."तो कमा विसेसहिया। (गी.) पज्जपणिदितिरिपणिदिणयणपज्जगवितिदियेसुतओ ॥१२९॥ पज्जतसे संखगुणा, ताउ अपज्जगपणिदितिरियम्मि । (ही.) हुन्ति असंखगुणा"तो-ऽम्भहिया ऽपज्जगपणिदिये" तत्तो। तिरियपणिदि-पणिंदि-अ-पज्जोघचउतिविइंदियेसु कमा । (ही.) ताउ अपज्जत्ततसे, संखगुणा तो तसेऽन्भहिया ॥१३१॥ ८५.८तो पत्ते अपुहविदग-ऽणिलपज्जेसुकमा असंखगुणा (ही.) ६६. ताउ अपज्जोहेसु, कमा असंखगुणअन्भहिया ॥१३२॥ कमसोऽत्थि बायरागणि-पत्तेअवणपुहवीदगऽणिलेसु (ही.भा.) "ताउ असंखेज्जगुणा, हुन्ति अपज्जसुहमग्गिम्मि ॥१३३॥ T००.ताउ अपज्जसुहम-भू-दग-वाऊसु कमा विसेसहिया । "तत्तो पज्जत्तसुहम-तेउम्मि हवेज्ज संखगुणा॥१३४॥(ही.भा.) ताउ विसेसहिया-ऽगणि-सुहमे ताउ अगणिम्मि ताउ कमा। हुन्ति सुहमपज्ज-सुहम-ओहेसु कमेण भू-दग-ऽणिलेसु॥१३५॥ १०४ १०५ १०३१४ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरसौभाग्यमाऽयम् ] सत्ताविहाणं तत्थ मूलपडिसत्ता [ ३५ 1१७ १२० १२७ ११७१२९ ताउ कमाऽणंतगुणा, अभविय केवलदुगेसु ताउ कमा । या विसेसअहिया,अकसायअवे अखइअसम्मेसु॥१३६॥ गीतिः) "ताउ अणं तगुणा खलु, णेया पज्जत्तबायरणिगीए । (ही) १२२ताओ हवेज्ज बायर-पज्जेगिदिम्मि अब्भहिया ॥१३७॥ ५२४ १२६ थलअपज्जणिगोए, तओ अमंखियगुणा तआऽभहिया । बायरअपज्जिगिदिय-णिगोअएगिदियेसु कमा ।।१३८॥ (ही.भा.) तो कम्मे-ऽणाहारे,कमा असंखियगुणा-ऽहिया तत्तो ।(गीतिः) सुहम अपज्जणिगोए,असंखियगुणा"3°तओ विसेसहिया॥१३९॥ सुहमापज्जेगवखे, 'तत्तो संखियगुणा बुग्लमीसे । (ही.भा.) ""तत्तो संखेज्जगुणा,माणे33.3ताओ विसेसहिया॥१४॥ कमसो कोहे माया-लोहेसु काउ-णील-किण्हासु । ताओ संखेज्जगुणा, उग्ले' तत्तो विसेसहिया॥१४१॥(ही.) पज्जगसुहमणि गाए,४'ताउ सुहमपन्जिगिदियम्मि"तओ। आहारे ३.१४ ताउ सुहम-णिगोअ एगिदियेसु कमा॥१४२॥ ताउ कमा भविय पणग-वणि-गिदिय-काय अमण-णपुमेसु । ताउ कमा तिरि-मिच्छ-दु-अण्णाणा-ऽजय अचक्खूसु॥१४३॥ मन्झम्मि सुकलेसा-पज्जगचउइंदियाण जहठाणं । बारसजोगप्पबहू, सयं सठाणे उणो एवं ॥१४४॥ (ही.भा.) थोवाऽस्थि विउवमीसे, ताओ संखियगुणा कमा णेया। सअसच्चगमीस-व्यवहारेसु मणजोगेसु ॥१४५॥ (ही.भा.) १५२ १५३ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ] मुनिवीरशेखरविजयरचितं .[ हीरसौभाग्यभाष्यम् ताउ मणेऽभहिया तो, कमसो सच्चियरमीसवयणेसु। (गीतिः) संखगुणा तो विउवे, तो ववहारे तओ वये-ऽन्भहिया ॥१४६॥ मज्झिमणताणंतग-माणा मिच्छेवमजयपमुहावि । पल्लासंखंसो चउ-सासाणाइगुणठाणगया ॥१४७॥ (ही.भा.) कोडि महस्सपुहुत्तं, पमतइयरा हवन्ति उ सजोगी । कोडिपुहुत्तं सेसछ-गुणठाणगया सयपुहुत्तं, ॥१४८॥ (ही.भा.) एए गुरुओ ऽत्थि पढम-तुरिआइचउक्कतेरसगुणत्था । (ही.भा.) लहुओ वि तत्तिआ खलु, एगो सेसगुणठाणगओ ॥१४९॥ मज्झिमजुत्ताणंताऽजोगी सिद्धा जहण्णउक्कोसा । (ही.भा.) सव्वह लहुओ एगो, पवेसगा णिग्गमाऽत्थि गुरुओ उ ॥१५॥ पल्लासंखंसो पण-पढमाइगुणेसु अण्णह उ संखा । (गीतिः) तहि वि उवसामगा चउ-वण्णा-ऽडुत्तरसयं खवगसिद्धा॥१५१॥(ही.) अणओगप्पण्णवणा-जीवसमासपमुहाहिपाएण । जीवा असंखसेढी, हवेज्ज णिरयज्जणिरयेसु॥१५२॥ (ही.भा.) अंगुलसूइदुइअवग्गमूलगुणिअ-उज्जवग्गमूलमिआ । (ही.भा.) अहवा अंगुलमई-सेढिदुइअवग्गमूलघणमाणा॥१५३॥ (गीतिः) • अह पंचसंगहाइसु, मूलगुणि असूइअंगुलपमाणा (ही.भा.) उअ सूइअंगुलपढम-मूलघणमिआ-ऽत्थि सेढीओ ॥१५४॥ णिअवारसदसमऽट्ठम-छट्टतइअदुइअवग्गमूलेहिं । (ही.भा.) भज्जा सेढी कमसो, अस्थि छदुइआइणिरयेसु ॥१५५॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरसौमाग्यभाष्यम् ] सत्ताविहाणं तत्थ मूलपडिसत्ता [ ३७ तिरिये सव्वेगिदिय-णिगोअवणकायुरालियदुगेसु । कम्मणपुमकोहाइग-दुअणाणाजयअचक्खूसु ॥१५६।। (ही.) तिकुलेमामिच्छ भविय-अमणाहारेसु तह अणाहारे । मज्झिमणंताणंतग माणा-ऽणंता मुणेयव्वा ॥१५७॥ (ही.भा.) समजीवणंतभागा, तिरिणिगिदिणिगोअकायेसु (ही.भा.) ण, मदुआग्णाणाजय-अचक्खुमविमिच्छ अमणेसु ॥१५॥ समजीव असंखंसा, सुहमगिदियणिगोअआहारेसु । (आर्यागीतिः) पज्जगसुहमेगिदिय णिगोअउरलेसु सयलजियसंखंसा।।१५६।।(ही) समजीवअसंखंमो, बारिगिदियणिगोअतिगे । (ही.भा.) कम्माणाहारेसु, दससु सयलजीवसंखंसो॥१६०|| (उपगीतिः) स वि लोहेऽभहिओ चउ-भागो ऊणो कसायतिगे। (उद्गीतिः) किण्हाएऽभहि ओऽत्थि ति-भागोहीणो अणीलकाउ.सु॥१६१।। जीवा पणि दियतिरिय-विगलपणिंदितसतदसमत्तेसु । पज्जत्तबायरेसु, भूदगपत्तेअहरिएसु ॥१६२।। (ही.भा.) भज्जं पयरं अंगुल-असंखभागेण भाइ पयरं । (गीतिः) संखेज्जजोयणसयग वग्गेण तिरिच्छिवंतरेसु च।।१६३ (ही.) पज्जत्तपणिदितिरिय-विगलपणिदितसदुवय चवखूसु। पयरं भाइअमस्थि उ, अंगुलसंखेज्जभागेणं ।। १६४॥ (ही.भा.) तइअगुणिअ-ऽज्जसूई-अंगुलमूलेण भाइआ सेढी । अस्थि गरे रूवणा, पज्जणरूणा अपज्जणरे ॥१६॥(ही.भा.) Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं [ हीरसौभाग्यभाष्यम् संखेन्ज कोडिकोडी, गुणतीसंका व तइअजमलोप्पिं । तुरिअजमलहेट्ठा व दु-णरेसु संखा य सव्वत्थे ॥१६६।। (ही.भा.) छप्पण्णदुमयमूहअ-अंगुलबग्गेण भाइ पयरं । जोइसिए पण्णवणा-अणुओगद्दारपमुहेसु ॥१६७:। (ही०मा०) वग्गो ण पंचसंगह-जीवसमासेसु देवसण्णीसु । (गीतिः) एमेव णवरिणेयो, किंचूणो भायगो मयदुगे वि ॥१६॥(ही.मा.) भवणे पण्णवणाए, सूअंगुलपढमवग्गमूलस्स । संखंसो अणुआगे. असंखभागो अमंख सेढीओ।। १६६।। (गीतिः) भवणेऽज्जवग्गमूला-हयसूइ अगुलप्पमिअसेढी । णेया जीवसमासे, गंथे उण पंचमंगहे भवणे ।।१७०।। (गीतिः) A सेढीओ दुइअगुणिअ-मुअंगुलपढमवग्गमूलमिआ । * सेढी तइअह यदुइ-अंगुल मूलमज्जकप्पदुगे॥१७१॥(गीतिः) तइअसुरदुगे सेगारवगामलेण भाइआ सेढी । वम्हाइसुरचउक्के, सणवसगपणचउवग्गमूलेहिं ।।१७२। (गीतिः) पल्लासंखियभागो. विण्णेया सेमसुरतिणाणेसु । देसोहीसु तहुवमम-वेअगसामाणमीसेसु ॥१७॥ (ही.भा.) ऊणा घणावली उण, वायरपज्जत्तते उकायम्मि । बायरपज्जत्ताणिल-काये उण लोखंभो ॥१७४।। (ही.भा.) णेया असंखलोगा, सेसेसु छवीसकायभेएसु । सुरसंखंसो पणमण-तिवयविउवमीसपुरिसेसु। १७५(ही.मा) Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरसौभाग्यमाष्यम् ] सत्ताविहाणं तत्थ मूलपडिसत्ता [३॥ मूला-ऽज्जाऽसंखगुणा, सेढी विउवथिविभंगलेसतिगे । अस्थि सहस्सपुहुत्तं, आहारदुगम्मि परिहारे ॥१७६॥ (ही.भा.) सिद्धपमाणाऽणंता, अवेअअकसायकेवलदुगेसु । सम्मखइएसु चउसु, कोडिपुरतं तहि भवत्था ॥१७७॥ गयवेए अकसाए, छउमत्था उ हविरे सयपुहुत्तं । पल्लासंखियभागो, दुविहा अवि सम्मखइएसु॥१७८|| (गीतिः) कोडिसहस्सपुहुत्तं, मणणाणे संजमे समइए य । कोडिसयपुहुत्तं उण, छेए सुहमे सयपुहुत्तं ।।२७९॥ (ही.भा.) कोडिपुहुत्तं णेया, अहखाए तत्थ खलु सयपुहुत्तं । छउमत्था जीवा लहु-जुत्ताणंता अभवियम्मि ॥१८०॥ (ही. एए जाणेयव्वा, उक्कोसाओ जहण्णओ मणुए । पज्जत्तमणुस्ससमा, संखेज्जा खलु मुणेयव्वा ॥११॥(ही.) एगो पुणो हवेज्जा, अपज्जमणुए विउव्यमीसे य । आहारदुगे सुहमे, उवसममीसेसु सासाणे ।। १८२।। (ही.भा.) छउमत्था-ऽऽमिज्जेगो, अवेअअकसायगाहखायेसु । (गीतिः) छेए परिहारे सय-मृणा गुरुओऽण्णहिं कहिं चि समा ।।१८३॥ णेया जहण्णजेट्ठा, एए सामण्णओ विसेमा उ । अत्थि पढमगुणठाणं, जहि तहि सव्वत्थ एमेव ॥१८४॥(ही.) ओघव दुइअाइग-चउदसतगुणठाणगयसिद्धा । जत्थऽस्थि तत्थ णेया, कहिं चि उण किंचि सविसेसा॥१८५॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० ] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं [ हीरसौभाग्यभाष्यम् तहि वितिणरेसु संखा, दुइआइचउगुणठाणगा दुविहा । सोघव्व सगुणठाणे, सव्वत्थाहारगदुगेसु || १८६ ॥ (ही. भा. ) अहवे गिंदियभूदग - तब्बायर पज्जवायरेसु वणे । (ही.भा.) पत्तेए तप्पज्जे, विगलेसु पज्जविगलअमसु ॥ १८७॥ (गीतिः) लहुओ एगो दुइए, गुणठाणम्मि गुरुओ पुणो रोया । पलियासंखियभागो, उअ आवलिआअसंखंसो ॥ १८८ ॥ ( ही ) एगो जहणओ खलु, अस्थि उरलमीसविवमीसेसु । तुरिअगुणठाणवत्ती गुरुओ संखा उरलमी से || १८६॥ (ही.भा.) कम्माणाहारे, लहुओ एगो - थि तुरियगुणठाणे । (गीतिः) लहुओ एगो तंग्स - गुणठाणे - ऽत्थि गुरुओ सयपुहुत्तं ॥ १६० ॥ सोधव्व दुहा छेए, परिहारे छट्टसत्तमगुणेसु 1 दुविहा या संखा, खइए पंचमगुणट्ठा ॥ १६९ ॥ (ही. मा.) लहुओ तुरिआचउग-गुण ठाणगयाऽत्थि उवसमे एगो | णत्थि खवगा पुणो गुण - ठाणेसु अट्टमाईसु ।।१९२।। (ही.) सव्वह गुणसिद्धे सु. पवेसगा णिग्गमात्थि ओघव्व । वरि तिणरेमु संखा, पण पढमाइगुणठा गया। १९३ ।। (ही) असमत्त पणि दितिरिय मणुयपणिदितस-ऽणुत्तरेसु तहा | सव्वेसु एगिदिय-विगलिंदियपंचकायेसु ॥ १९४ ॥ । (ही. भा) आहारदुगे सुहमे, देसाभविमीस सासणेसु तहा । मिच्छतासणीसु, पवेसगा णिग्गमा णत्थि || १९५ ।। (ही.) Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरस माग्यभाष्यम् ] सत्ताविहाणं तत्थ मूलपयडिंसत्ता [४१ तत्थ वि मयंतरेणं, पसगा-ऽज्जेऽत्थि णिग्गमा बीए । एगिदियभूगत-ब्वायरतप्पज्जभेएसु ॥१६६।। (ही.भा.) वणकाये पत्तेए, तप्पज्जे तह असण्णिम्मि । (उपगीतिः) सिद्धन्तमए उ विगल नप्पज्जेसु वि य एमेव ॥१९७। आइमपवेमगदुइअ-णि मुग्लमीसविउवमीसेसु । कम्मे अण्णाण तिगे.ऽणाहारे विण परे णस्थि ।।१९८॥ (ही.) केवलदुगे उ तेरस-गुणेऽस्थि ण पवेसगा खइए ।(ही.भा.) दुसु तुरिआइगुणेसु. पवेसगाणिग्गमा संखा ॥१९९।। (उपगीतिः) मग्गणपवेसगियरा, असंखमूअंगुलज्जमूलमिआ । (ही.भा.) सेढी असंखमूअंगुलमाणा व णिरयज्जणिग्यसु ॥२००। (गीतिः) मयदुगमेवं भवगण, बच्चामा छ।आणिग्येसु ।(ही.भा.) मणुए अपज्जमणुए, असंखगुणसेडिपढममूलमिआ ॥२०१॥ संखा-ऽस्थि दुणर आणय पहुडि मुराहाग्दुगअवेएसु । अकसाए मणणाणे. केवलदुगसंजमेसु तहा ॥२०२॥ (ही भा) समइअछेएस तहा, परिह गम्मि महमे अहक्खाए। अण यणभविखडएस, वरं णो गिग्गमा हुन्ति ॥२०॥ही.) केवलदुगखइएम, पवेसगा णस्थि अणयणं भवे । कप्पदुगे ऽज्जे अंगुल-बिअम्ल असंखगुण सेढी ॥२०४॥(ही मा) तइआईसु दुमु दसम-मूलअसंखगुण भाइमा सेढी । (गीतिः) चउसु कमा ऽदृछचउतिस-मूलअसंखगुणभाइआ सेढं॥२०५॥ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं [ हीरसौभाग्यभाष्यम् समजीव असंखंसो, एगक्खणिगोअछगुरल.दुगेम ।। कम्मकसायचउगतिअ-सुहलेसाहारगियरेसु॥२०६॥ (ही.भा.) पायरपज्जरहिअभू-दगऽग्गिवाउछगवणणिगोएमु । पत्तेए तदपज्जे, असंखलोगा मुणेयव्वा ॥२०७।। (ही.मा.) पल्लासखंसो पज्जबायरऽग्गितिदुणाणइयरेस । (ही.भा.) देसाजयोहिसम्मुव-समवेअगमीससाणमिच्छेसु।।२०८(गी) लोगासंखियभागो, बायरपज्जाणिले ण उ अभव्वे । णिअपढमवग्गमूलअ-संखगुआ-ऽण्णाम सेढीओ ॥२०६।।(ही.) एए गुरुओऽणंतअ-संखियलोगमिअरासिमंतामु (ही.मा.) लहुआ वि तत्तिा चिअ. किंवृणाऽह पुणो एगो।।२१०।। अस्थि पढमगुणठाणं, जहि तहि मग्गणपवेसणिग्गमगा । (गी.) गुणठाणेऽज्जे एवं,णवरि अणयणे भवे ण णिग्गमगा ॥२११॥ जहि अस्थि उ दुइअपहुडि-गुणेसु लहुआ उ एग तहि गुरुओ। पल्लासंखमो-ऽज्जे, चउगे सेसणवगे संख। ॥२१२॥(ही.भा.) तहअगुणे विण पणमण-वय उग्लविउवकमायच उगाणि । अजयछलेसा मिम्स, पवेसगा जिग्गमा जन्थि ॥१३॥ (ही) ण पवेसगा-ऽखिलणिस्य-दुपणिदितमणयणेयरमवीसु (ही.मा.) सण्णिम्मि य दुइअगुण, ण णिग्गमा ऽन्तणिरयम्मि तहा॥२१॥ दुपणिदितसेसु तहा, उरालमीसे विउवमीसे य । दुअणाणेस अजए, चक्खुअचक्खुभविसणीस ॥२१॥(ही मा.) Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरसौभाग्य माध्यम् ] सत्ताविहाणं तत्थ मूलपयडिसत्ता [ ४३ अहवे गिदियभूदगऽतब्बायरपज्जवायरेसु वणे (ही.भा.) पत्ते तप्पज्जे, विगलेसु पज्जविगलअमणेस ॥ २१६ ॥ (गीतिः) हुन्ते पवेसगियरा, दुपणिदितसेमु णयणसण्णी । पल्लासंखियभागो, उअ आवलिआ असंखंसो ॥ २१७॥ (ही.भा.) सयमुज्झा दुइअगुणे पवेसगा मग्गणाअ उ णपु से | पल्लासंखियभागो, उअ आवलिआ असंखंसो ॥२१८॥ (ही. मा.) तिणराणयाइगेम, दुइए संखा पवेसणिग्गमगा । (ही.भा.) तुरिए णिरयतिणिरयति णराणयाइसुरउरलमीसेरु ॥२१९॥ तिरिदुपणिं दितिरिणम - थीखइएस पवेसगा संखा । गीतिः) तुरिए दुइआइणिरथ भवण तिगेसुण व ण उ तिरिच्छीए ॥ २२० ॥ चरमणिरयदुपणिदिय-तमचक्खु अचक्खु भव्वसण्णीस' (ही.मा.) दुहा संखा ऽण्णणिग्य सुरेमु खलु णिग्गमा ण पुण खइए || २२१ ।। पंचमगुणठाणे चउतिरिक्खतिणरदुपणिदियतसेसु ं । वेअतिगे यणेयर भविसण्णीम तह आहारे ॥ २२२ ॥ (ही. पा . ) पवेसगा-त्थि खा, खइए तिणरेसु णिग्गमा संखा | ( ही ) उदुपणिदिवसणयण- इयरमवियखइअसण्णी ॥२२३॥ · ण पत्रमा णरतिगे, छट्टपण वगुणम् एत्थ तहा । संजम अहखायेमुळे, ण णिग्गमा बारसाइदुगे ॥ २२४ ॥ (ही. मा.) दुपणिदितसणयणियर - भविसणी पवेसगा णत्थि । • छट्ठाइससगुणेम ं णणिग्गमेवं विणा ससंतगुणं ॥ २२५ ॥ (ही.) Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ ] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं [ हीरसौमाग्यभाध्यम ण पवेसगा हवन्ते, वेअतिगे तीसु छट्टपमुहेस । (ही.भा.) पुरणणिग्गमावि, दुविहा विण अट्टमे कमायेमु ॥ २२६ ॥ गयवेए अकसाए, अहखाए विण ससज्जगुणठाणं । (ही.भा.) पवेसगा अवेए, अकसाए णिग्गमा ण खीणतिगे || २२७ || ण पवेसगा माग- गुणेस णाणतिगओहि वकासु । एमेव णिग्गमा वि य, णवरि विणा संतगुणठणं ॥ २२८ ॥ ( ही ) पवेगा-माइग गुणेमु मणणाणसंजमेसु च । केवल दुगे पवेसा, चरमे ण ण णिग्गमां तदुगे ।। २२६ ॥ (ही.) ण पवेसगा ऽट्टमगुणे, समइअछेएस अट्ठमाईस । सम्मख उवस मेसु, पवेसगा णिग्गमा णत्थि । २३० ।। (ही) खइए णणिग्गमा दुमु, छट्टाईमु ण पवेसगा - ऽऽहारे ( ( गीतिः ) सत्तसु बारसमे उण णणिग्गमा णंतिमे अणाहारे ||२३१|| ओहे गुणठाणेऽज्जे-णंता उववज्जमानमिज्जंता ( ( गीतिः) दुइअतुरिए पल्ला संखमा पंचमे मताच्च ।। १३२ ।। (ही.) मिज्जंता चिअ संखा, छट्टाइछगे गुणे चउसमे | एए गुरुओ या, दुइआईसु लहुओ एगो || २३३ || (ही. मा.) मग्गण पवेसणिग्गमगव्व कमुववज्जमानमिज्जंता । सव्वासु मग्गणासु, ओहसजोग्गगुणठाणे ॥ २३४ ।। (ही.) 'णवरं पण मणवयुरल - वेउव्वाहारद्गअवेएमु । ( गीतिः ) अकसाए मणणाणे, केवलदुगसंज मेसु सामइए || २३५ || (ही.) · - 6 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरसौमाग्यभाष्यम् ] सत्ताविहाण तस्य मूलपयडिसत्ता ४५ छेr परिहारे तह, सुहमे अहखायदेसमीसेमु । णत्थि उववज्जमाणा,ओहसजोग्गगुणठाणेसु ॥२३६॥ (ही.मा.) 'उववज्जंता - Soह त्रिय, णत्थि तहअपंचमाइमगुणेस (गी.) ओघव्व सव्वह वि उण, मिज्जंता तहअवारसदु गेम || २३७|| * मिज्जंता ण विउवमीसम्ममीसेमु ओहसगुणेसु । समाहारगमीसे, णेयं 'तुरिए गुरलमी से || २३८ || (ही. भा) हुन्ति अनंता जीवा, अणंतरासीसु अट्टतीसाए । ओहे ऽज्जे गुणठाणे, उबवज्जंता य मिज्जंता || २३६ ॥ (ही.) तत्थ वि यो तह, चउदसमे संखिया अणाहारे । मिज्जता णत्थि पढम दुइअ चउत्थगुणठाणे ॥ २४० ॥ (ही.) "दुपणिदितसणयणियर भविसण्णीसु दुइआइगगुणेसु ं । (ही.भा.) ओघवऽत्थि दुहा - 'म पहुडीस' सम्मखइएस ॥२४१ ॥ "विउवे तुरिए णेया; मिज्जंता संखिया गुणट्ठाणे | "उसमे गयवेए, अकसाए केवलदुगे य || २४२॥ ( ही ) "मिज्जंतोघन्य पुमे, छट्टपमुहगुणतिगे "कसाए । अट्टमगुणे तह ४ गुणे, बीए दुअणाणअजए || २४३ ।। (ही.) " ओघब्ध तिणाणावहि सुक्का चमु अट्टमाई | मिज्जता "संखेज्जा, चउतुरिआईसु उण खइए || २४४|| ११ ( i ) किन्हाए णीलाए, णप्पज्जताऽत्थि तुरिअगुणठाणे । (ii) काऊअ संखिया (iii) तिसु मिज्जंता (iv) तिसु ण पंचमा इदुगे ॥ ॥२४५॥ (गीतिः) Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचित [ होरसौभाग्यभाष्यम् 'सुक्काए तहुवसमे, संखा उत्रवज्जमाणमिज्जंता। ओहे तह जहजोग्गं, सप्पाउग्गगुणठाणणेस ॥२४६।। (ही.) कालं तु वट्टमाणं, पडुच्च खेत्ते परूवणा णेया । आसिज्ज अईअद्धं, परूवणा उण फरिसणाए ।।२४७॥ (ही.) केवलिआणं खेत्तं, असंखभागो हवेज्ज लोगस्स । लोगस्स असंखेज्जा, भागा वा सव्वलोगो वा ॥२४८ । (ही) ओहस्स तिविहमवि तह, तिरियेगक्खपणकायपणगाणं । सव्वमुहमकायउरल-दुगकम्मणपुंसचउकमायाणं ॥२४६।।(गी) दुअणाणाजयअणयण-अमुहतिलेसभविअभविमिच्छाणं । (गी.) अमणाहारियराणं, सठाणमासिज्ज खित्तमखिलजगं ॥२५०॥ ऊणजगमिगक्खपवण-तिगाण-सेमाण जगअसंखसो (गी.) उववायसमुग्वाया, पडुच्च खिचं तहेव जाणऽस्थि ॥२५॥ णवरि दुविहमखिलजगं, एगक्खणिगोअवायरतिगाणं । घायरपुहवाइचउग-पत्तेआण तयपज्जाणं ॥२५२॥ (ही भा.) तिणरदुपंचिंदियतस-अवेअअकसायकेवलदुगाणं । संजमअहखायाणं, सुक्काए सम्मखइअसण्णीणं।।२५३।। (गी.) केवलिखित्तपमाणं, अस्थि समुग्घायखित्तमासिज्ज । मरणसमुग्घायं पुण, पंचदसण्हऽत्थि जगअसंख सो ॥२५४॥ ओहस्सऽत्थि सठाणुव-वाअसमुग्घायखेत्तओ फुसणा। तिविहा वि सव्वलोगो, गमणागमणेण अड भागा॥२५॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' हीरसौभाग्य माध्यम् ] सशाविद्दाणं तस्य मूलपयहिसत्ता [ ४० सव्वत्थ एत्थ गंथे फुसणादारम्मि भागस देणं जाणेयन्वो भागो, तसण डीए चउद्दसमो। २५६ ।। (ही.भा.) अह सव्वमग्गणाणं, सठाणफुसणा सठाणखित्तन्व | | ( गीतिः ) छे गाई णिरयदुइअ - णिरयाई कमोववाए ।। २५७ || (ही.भा.) सुरणाणतिगो हिप उम-सम्मत्त गवेअगाण पण भागा । (गीतिः) दुदु एगे गिगिगपढम- कप्पा इगते उसासणाण कमा || २५८|| (ही) सद्धिगद्धगद्धति चउसद्धच उपास द्विगगार लोगा मंखियभागो, पढमणिरयसेस देवाणं । २५९॥ (ही. भा. ) उच्चियमीस सुइल -खइअउवसमाण अह विभंगस्स | एगारस बारस वा, भागा केसिं चि णेव भवे || २६०॥ ( ही ) णत्थि पण मणवय उरल- वेउव्वाहारदुगअवेआणं । अकसाय तुरिअणाणदु केवलसंजमसमइआणं ॥ २६१ ।। (ही. मा.) अगपरिहाराणं, मुहमा हक्खाय देसमीसाणं । उववारण फरिसणा - Soणपंचणवईअ सव्वजगं ॥ २६२ ॥ | ( ही ) अस्थि समुग्धारणं, फुसणा णिरय-दुइआइणिरयाणं । (ही.) छेगो दोण्णि यतिण्णि य, चउरो पंच छकमा भागा ॥ २६३ ॥ पढमणिरय गेविज्जय- पमुह सुराहारतुरिअणाणाणं समहअपरिहारमुहम-छेआणं जगअसंखंसो || २६४ ।। (ही.भा.) णव सुईसाणावहि- तेऊण छ आणयाइदेवाणं । (गीतिः) सेससुर तिणाणावहि पउम्रवसमवेअगाण अड भागा ॥ २६५ ॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ मुनिभीवीरशेखरविजयरचितं [हीरसौभाग्यमाष्यम् तेर पण बार भागा, वेउव्विय-देस-सासणाण कमा । ण दुमीसजोगमीसा-णियरेसिं होइ सव्वजगं ॥२६॥ लोगासंखंसो उ अ-वेअकसायविरयाहखायाणं । (गीतिः) मरणसमुग्धाएण, सक्काए छ अड सम्मखइआणं ॥२६७॥ गमणागमणेणं अड, सुर-ऽट्ठमंतदुपणिदियतसाणं । पणमणवयकायविउव थीपुरिसकसायचउगाणं । २६८ (ही.) णाणडयरतिगअजयति-दसणपणलेसभवियअभवीणं । (गीतिः) सम्मखडअवेअगउव-समसासणमीसमिच्छसण्णीणं ।।२६२।(ही.) तह आहारस्सऽस्थि छ, भागा चउआणयाइ-सुक्काणं । सेसाण ण अस्थि असह-लेसाण वि णत्ति विति परे ॥२७०॥(ही. इनि मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सतnaहाण (सत्ताविधानं) तत्थ मूलपयडिसत्ता (मूलप्रकृतिसत्ता) हीरसौभाग्यभाष्यं समाप्तम् तत्र Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। श्री शङ्खेश्वरपाश्वनाथाय नमः ।। ॥ श्री आत्म-कमल-वीर-दान-प्रेम-हीरसूरीश्वरसद्गुरुभ्यो नमः ॥ मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सहा (सत्ताविधानं) तत्थ स्वोपज्ञहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयडिसत्ता (मूलप्रकृतिसत्ता) सत्ताविहाणमुक्क, सिरिवीरं गमिअ सपरसेयत्थं । जहसुत्तं वोच्छं गुरु-किवाअ सत्ताविहाणमिणं ॥१॥ तत्थ चउविहा सत्ता, णेया पयडिठिहरसपएसत्तो । एक्केका उण दुविहा, मूलुत्तरपयडिभेअत्तो ॥२॥ पणमिय सिरिणवखण्डा-पासपहुं गुरुकिवाअ जहसुत्तं । भासेमि सुबोहत्थे, भासं विसयीकरणरूवं ।। १॥ (ही.भा.) गाणस्स देसणस्स य, आवरणं वेअमोहआऊणि । णामं गोअं विग्धं, एआ मूलपयडी अट्ठ ॥२॥ (ही.भा.) Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुमिश्रीवीरशेखरविजयरचित सत्ताविहाणं तत्व तेसिं उत्तरपयडी, कमसो पंच णव दोण्णि अडवीसं। (ही.भ.) चउरो तिजुअमयं दो, पणऽस्थि सव्वा-ऽडवण्णसयं ॥३॥ महसुअऽवहिमणकेवल-गाणावरणं ति पंचहा पढमं । णयरेयरोहिकेवल-दंसणआवरणगं णेयं ॥४॥ (ही.भा.) णिद्दा णिहाणिद्दा, पयला पयलपयला य थीणद्धी । एवं नवहा बीअं, सायमसायं दुहा तइ ॥५॥ (ही.भा.) होएज्ज मोहणीयं, दुविहं दंसण चरित्तमेाओ । दंसणमोहो तिविहो, सम्मं मीसं च मिच्छत्तं ।।६।। (ही.भा.) दुविहो चरित्तमोहो, सोलकसायणवणोकसायेहिं । तहि कोहमाणमाया-लोहक्खा चउविहकसाया ७ । (ही.भा.) चउहा पत्तेगमणअ-पच्चक्खाणियरसंजलणभेआ। (गीतिः) हुन्ति णवणोकसाया, हस्सरई अरइसोगभयकुच्छा ॥८॥ (ही.भा.) थीपुरिसणपुमवेआ, इह होइ चउत्थमट्ठवीसविहं । गरयतिरिणरसुराउग-भेएहिं पंचमं चउहा ॥६॥ (ही.भा.) गइजाइतणुउवंगा, बंधणसंघायणाणि संघयणं । संठाणवण्णगंधरसफासअणुपुग्विविहयगई ॥१०॥ (ही.भा.) पिंडपयडित्ति चउदस, तह अगुरुलहूवघायपरघाया । उस्सासआयवुज्जोअनिमिणतित्थमड पत्तेया ॥११॥ (ही.भा.) तसबायरपज्जत्तं, पत्तेअथिरं सुहं च सुभगं च । सुस्सरआइज्जाणि य, जसकित्ती होइ तसदसगं ॥१२॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपज्ञहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मुलपयडिसत्ता [५१ थावरदसगं थावर-सुहमअपज्जत्तगाणि साहारं । (ही.भा.) अथिर असुहदुभगाणि य, दुस्सरऽणाइज्जअजमं ति ।।१३।। पिंडपयडीण चउपण पणत्तिगपणग्सपंचछावकं । पणदपणऽटन उद्गं,पणसयरी उत्तग भेआ ।।१४। (ही.भा.) णिश्यतिरिणरसुरगई. इगबिअतिगचउपणिंदिजाओ । उग्लवि उव्याहारग-तेअगकम्मणमगेग य ॥१५॥ (ही.भा.) पढमतितरणूणुवंगा, होजा उग्लाइगाण सजुआण । पणवंधणाणि हुन्ते, कम्मणजुत्ताण चत्तारो ।।१६।। (ही भा.) तिणि य ते अजुआणं, तेअसकम्मणजुआण तिण्णि त्ति । पण्णरहबंधणाई, तणुव्य संघायणाणि पण ||७|| (ही.भा.) संघयणं छद्धा वज्जरिसहणारायरिमहणारायं । णारायद्धणरायं, कीलियछेवट्ठगाणि त्ति ।।१८।। (ही भा.) समचउग्स णिग्गोहसाइकुज्जाणि वामण हुडं । संठाणा वण्णा किण्हनीललोहि अहलिद्दसिआ ।।१६।। (ही.भा.) सुरहिदुरही रमा पण, तित्तकडुकसायअंबिला महुरो। फामा गुरुलहुमिउखर-सीउण्हसिणिद्धरुवस्वट्ठा ।।२० ।(ही.भा.) णिरयतिरिक्खमणुससुर अणुपुची होज्ज सुहअसुहखगई। छट्ठ तिजुअसयविहं, णीउच्चं सत्तमं दुविहं ॥२१॥ (ही.भा.) वह दाणलाहभोगो-वभोगविरियंतरायगं चरमं । पंचविहं इइ एआ, सव्वा अडवण्णजुत्तसयं ॥२२॥ (ही.भा.) Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ सत्तं पडुच्च एआ, णेया बंधम्मि वीसजुत्तसयं । उत्तरपयडी उदए, बावीसाहियसयं जम्हा ॥२३।। (ही.भा.) ससरीरन्तरभूया, बंधणसंघायणा उ चंधुदए । वण्णाइचऊ गेज्झा, बंधे णो सम्ममीसाइं ॥२४।। (ही.भा.) इह खलु ओहेण तहा, आएसेण जहसंभवं सत्तं । वोच्छिहिमु मग्गणासु. च उसत्तरिउत्तरसयम्मि ॥३॥ गईइंदियाणि कायो, जोओ वेओ कसायणाणाणि । संजमदंसणलेसा, भवसम्मं सण्णिआहारा ॥२५॥ (ही.भा.) इइ मूलमग्गणा सिं, मेआ हुन्ति सगचत्तगुणवीसा । बायालद्वारसचउ पणअडऽडचउछदुसगदुदुर्ग ।।२६।। (ही.भा.) णिरयो भूभेआ सग-णिरया तिरियो पणिदितिरियो से। जोणिमई पज्जियरा, एमेव चउब्धिहा मणुसा ॥२७॥(ही.भा.) देवभवणवइवंतर-जोइसपढमाइबारकप्पभवा । पढमाई गेविज्जा, णव पंच अणुत्तरा णेया ॥२८॥ (ही.भा.) एगिदियो तहा से, सुहमियरा होति ताण पन्जियरा । बितिचउपणिंदिया मि,पज्जत्ता तह अपज्जत्ता।।२६।।(ही.भा.) एगिदियव्व पुढवी-दगग्गिवाऊ हवंति सत्तविहा । वणकाया होइ दुहा, पत्तेअणिगोअभेअत्तो ॥३०॥ (ही.मा.) पत्तेअवणो तस्स य, पज्जत्तो तह भवे अपज्जत्तो । (गीतिः) सत्तविहोऽस्थि णिगोओ,पुहविव्य तसो पणिदियव्य तिहा।।३१॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपज्ञहीरसौभाग्यमाष्यसंवलिता मूलपर्याडसत्ता [५३ मणवयणा सिं भेआ, चउरो सच्चियरमीसववहारा । कायो भेआ सगुरल-विवाहारदुगकम्मा से ॥३२॥ (ही.भा.) थीपुमणपुमअवेआ, य कोहमयमायलोहअकसाया। (गीतिः) मइसुअवहिमणकेवल-णाणं मइसुअअणाणविभंगा ॥३३।। (ही.) संजमसामइआई, छेओ परिहारसुहुमअहखाया । देमअजयाणि णयणे-यरोहिकेवलदरिसणाणि ॥३४॥ (ही.भा.) किण्हा नीला काऊ, असुहियरा तेउपम्हसुक्काओ । भविया-ऽभविया सम्मं,खाइयवे अगउवसमा य॥३५॥(ही भा) मासायणं च मीम, मिच्छं सण्णी तह असण्णी । (ही भा.) आहाराणाहारा, इइ उत्तरमग्गणा णेया ॥३६॥ (उपगीतिः) मूलपडिसत्ताए, णायव्वा पयडि-ठाण-भूगाग। पयणिक्खेवो घड़ी, पण अहिगारा जहाकमसो ॥४॥ तेसु पयडिआईसु, अहिगारेसुहवन्ति दाराणि । पणग्स चउदस तेग्स, निण्ण य तेरस जहाकमसो ॥५॥ अह विण्णेयाणि पयडि अहिगारम्मि पढमम्मि संतपयं । सामित्तसाइआई, कालंतरसणियासा य ॥६॥ भंगविचयो उ भागो, परिमाणं खेत्तकोसणा कालो। अंतरभावप्पबहू, पणरस दाराणि जहकमसो ॥७॥ अट्टण्ह वि कम्माणं, सत्ताऽसत्ताऽस्थि केवलदुगम्मि । सत्ताऽथि अघाईणं, सेसदुसत्तरिसयेऽढण्हं ॥८॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तत्व तिणरदुपंचिंदियतस-तिमणवयणकायुरालियदुगेसु । कम्मम्मि संजमे तह, अहखाये सुक्कभवियआहारे ।।६।।(गीतिः) घाईणऽत्थि असत्ता, दुमणवयणजोगणाणचउगेसु । गयणेयरोहिदंसण-सण्णीसु अस्थि . मोहस्स ॥१०॥ गयवेए अकसाये, मम्मत्तम्मि खइए अणाहारे । अट्ठण्ह वि कम्माणं, केवलजुगले अघाईणं ।।११।। जीवा णेया मिच्छा- दिट्ठी सापाणमीसदिट्टी य । अविरयसम्मादिट्ठी, देमपमत्ताऽपमत्तजई ॥३७॥ (ही.मा.) तहऽपुव्यकरणवत्ती, अणि यट्टी सुहुमसंपगया य । उवसंतखीण मोहा,य सजोगिअजोगिणो सिद्धा ॥३८॥ (ही.भा.) सव्वणिग्यभेएसु, सुरगेविज्जतदेवविउवेसु । अजयासुहलेसासु, मिच्छाई हान्ति सम्मंता ॥३६।। (ही.भा.) मिच्छाई देसविरय-अता तिग्यितिपणिदितिरियेसु ।(गीतिः) मिच्छादिट्ठीया चिय,असमत्तपणिदितिरियमणुसेसु ॥४०॥ ही.) सम्वेसु एगिदिय-विगलिंदियपचकायभेएसु । अममत्तपणिदियतस-अभवियमिच्छत्तअमणेसु॥४१॥ (ही.भा.) मिच्छाइअजोगंता, तिमणुमदुपणिदिदुतसभवियेसु । सम्मादिट्ठीया चिअ, पण-ऽणुत्तरदेवभेएसु॥४२।। (ही.भा) तिमणवयणकायेसु, ओरालम्मि सुइलाअ आहारे । मिच्छादिटिप्पभिई,होअन्ति सजोगिपज्जंता ॥४३॥ (ही.भा.) Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपज्ञहीरसौमाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयडिसत्ता [५५ दुमणवयणजोगेसु, जयणेयरदरिसणेसु सण्णिम्मि । मिच्छादिट्ठीयाई,णायव्वा खीणमोहंता ॥४४॥ (ही.भा.) मिच्छत्ती सासाणा, सम्मादिट्ठी सजोगिकेवलिणो। ओगलमीमजोगे, कम्मणजोगे य होअन्ति ॥४५॥ (ही.भा.) विक्कियमीसे हुन्ते, मिच्छा सासायणा य सम्मत्ती। या पमत्तजइणो, आहाराहारमीसेसु ॥४६।। (ही.भा.) वेअकसायतिगे खल, मिच्छत्ताइअणियट्टिपज्जंता । अणियट्टिबायराई, सिद्धता अत्थि गयवेए ।॥४७॥ (ही.भा.) मिच्छाई सुहुमंता, हवन्ति लोहम्मि हुन्ति अकसाए । उवसंतखीणमोहा,य सजोगिअजोगिणो सिद्धा ॥४८॥(ही.भा.) णाणतिगे ओहिम्म य, सम्माई होन्ति खीणमोहंता । होअन्ति पमत्ताई, मणणाणे खीणमोहंता ।।४९॥ (ही.भा.) केवलदुगे सजोगी,अजोगिसिद्धा-ऽस्थिमिच्छसासाणा। (गीतिः) अण्णाणतिगे हुन्ति अजोगंता संजमे पमत्ताई ॥५०॥(ही.भा.) अणियट्टिबायरंता, समइअछेएसु अप्पमत्तता । परिहारे देसजई, देसे सुहमा उ सुहुमम्मि ॥५१।। (ही.मा.) उवसंतखीणमोहा, सहजोगअजोगिणो अहक्खाए । तेउपउमासु णेया, मिच्छाई अप्पमत्तंता ॥५२॥ (ही.भा.) सम्माई सिद्धता, सम्मे खइए य अप्पमत्तंता । वेअगसम्मे णेया, उवसंतंता उवसमम्मि ॥५३॥ (ही.भा.) Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ ] मुनिश्रीवीरशेखरयिजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ सासाणे सासाणा, मीसे मीमा तहा अणाहारे । मिच्छा सासणसम्मा, सहजोगअजोगिणो सिद्धा ॥५४॥(ही) मोहम्सुवसंतंता, सामी संतम्स खीणमोहंता । घाईण अजोगंता-ऽण्णेसिमसंतस्स सञ्चहिं सेसा ॥१२॥ (गीतिः) घाईणं ओघव्य ति-णरदुपणिदितमतिमणवयणेसु । कायोरालियसंजम-ऽहखायसुक्कमवियेसु आहारे ।।१३।।(गीतिः) सव्वे वि अघाईणं, दुमणवयणणाण च उगमण्णीसु। दंसणतिगे य सव्वे, सत्तण्होघव्व मोहम्स । १४॥ सव्वे वि अघाईणं, चउण्ड ओरालमीसकम्मेसु । मिच्छो सामण मम्मा, च रह घाईण विण्णेया ।।१५।। अट्टण्होघव्व भवे, अवेअअकसायसम्मखइएसु । केवलदुगे सजोगिअ-जोगी णेया अघाईणं । १६॥ घाईण मिच्छसासण-सम्मत्ती होइरे अणाहारे । सेसाण सिद्धवज्जा, अण्णह अट्टण्ह सव्वे वि ॥१७॥ अट्ठण्ह वि कम्माणं, सत्ता णेया अणाइधुवअधुवा । साइधुवाऽत्थि असत्ता, अट्ठण्होघव्व अणयणे सत्ता ॥१८॥(गी० चउहा दुअणाणाजय-मिच्छेसु अभविये अणाइधुवा । भविये अणाइअधुवा, सेमासुसाइअधुवाऽस्थि ।।१६।। साइधुवाऽत्थि असत्ता, अवेअअकसायकेवलदुगेसु। सम्मत्तखाइएसु, सप्पाउग्गाण पयडीणं ॥२०॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५७ स्वोपज्ञहीर सौ माग्यमाष्य संवलिता मूलपयडिसत्ता । घाईण अणाहारे, साइदुवअदुवा] अघाईणं साइधुवाऽत्थि असत्ता, सेसासु साइसंताऽत्थि ॥२१॥ कायठिई उक्कोमा, णिरयसुराणं विभंगणाणस्स । किण्हाए सुकाए, तेत्तीसा सागरा णेया ॥ १५५ ॥ । (ही. मा० ) पढमाइगणिरयाणं, कमसो एगो य तिणि मत्त दम | सत्तरह य बावीसा, तेत्तीसा सागरा णेया ॥ ५६ ॥ ( ही. मा . ) या उ अमखेज्जा, परिअट्टा पुग्गलाण तिरियस्स । एगिदियहरिणं, कायणपु सग असण्णीणं ॥ ५७॥ (ही.भा.) तिपणिदियतिरियाणं, तिणराणं च पलिओवमा तिण्णि । अमहिया पुव्वाणं, कोडिपुहुत्तेण णायच्चा || ५८ ॥ ( ही भा.) सव्वापज्जत्ताणं, समत्तबायरणिगोअकायस्स 1 पज्जत्तगसुहुमाणं, पणमणवयउरलमीसाणं ।। ५९ ।। (ही. भा. ) वेउव्वदुगस्स तहा, आहारदुगस्स चउकसायाणं । सुहुमुवसममीसाणं, भिन्नमुहुत्तं मुणेयव्वा ||३०|| (ही. मा.) भवणस्स साहियुदही, पल्लं वंतरसुरस्स विण्णेया । पलिओममन्महियं, जोइसदेवस्स णायव्वा ||६ १॥ ही.भा.) सोहम्माण कमा, अरा दो साहिया दुवे सत्त । अब्भहिया सत्त य दस, चउदस सत्तरह णायव्वा || ६२ ॥ (ही. ) एतो एगेगहिया, णायव्वा जाव एगतीसुदही । उवरिमगेविज्जस्स उ, तेत्तीसा - गुत्तराण भवे ॥ ६३ ॥ (ही.मा.) | Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ अगुलअसंखभागो, बायरएगिदियस्स सुहमाणं । तह पुहवाइचउण्हं, णेया लोगा असंखेज्जा ।।३४॥ (ही.मा.) बायरपज्जेगिदिय - भूदगपत्तेअबाउविगलाणं । (गीतिः) मंखेज्जसहस्ससमा, समत्तबेइंदियस्स संखसमा।।६५ (ही. भा.) पज्जत्तगतेइंदिय-बायरतेऊण होइ संखेज्जा । दिवसा संखियमासा, समत्तचउई दियम्स भवे ॥३६॥(ही.भा.) पंचिंदियचक्खूणऽहि-युदहि-सहस्सं तसस्स तं दुगुणं । पज्जपणिदितमपुरिस-सण्णीणायरसयपुहुत्तं ॥६७॥ (ही.भा.) अद्धतइअपरिअट्टा, भवे णिगो अम्म होइ कम्मठिई । बायरपुहवाइचउग-णिगोअपत्तेअहरिआणं ॥६८।। (ही.भा.) बावीससहस्सममा, देसूणोरालियस्स विण्णेया। कम्मरस तिणि समया, पल्लसयपुहुत्तमित्थीए ॥६६ ।।(ही.भा.) गय वे अकमायाण, साइअणंता य माइसंता य । दुविहा हवेज्ज दुइआ, भिन्नमुहुत्तं भवे जेट्टा ।।७०॥(ही.भा.) दुइआ चेव हवेज्जा, छउमन्थस्स य तहा भवत्थम्स । णवरि भवत्थस्स गुरू, कोडी पुव्वाण देसूणा ॥७१॥(ही. भा.) साहियछसटिजलही, तिणाणओहीण वेअगस्स भवे । दुविहा अणाइता, अणाइसंता अचखुस्स ॥७२॥ (ही.मा.) मणणाणसंजमाण, समइअछेअपरिहारदेसाणं । देसूणा पुव्वाणं, कोडी एगा मुणेयव्वा ||७३।। (ही.भा.) Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपज्ञहीरसौमाग्यभाष्यसंवलिता मूलपडिसत्ता [५६ केवलदुग-खइआणं, साइअणंता लहू भवत्थस्स । भिन्नमुहुत्तं केवल-दुगस्स जेठूणपुवकोडी उ ॥७४॥(ही.भा.) खइअस्स भवत्थस्स य, छउमत्थस्स य लहू मुहुत्तंतो । तेत्तीमसागराई, अब्भहियाई भवे जेट्ठा ॥७५॥ (ही.भा.) दुअणाणा-ऽजयमिच्छाणऽणाइणंता अणाइसंता य । साइमपज्जवसाणा, तहआ हीणद्धपरियट्टो ॥७६॥ (ही.भा.) देसूणपुरकोडी, अहखायस्स हवए भवत्थम्म । एमा गुरुकायठिई, छउमत्थस्स उ मुहुत्तंतो ॥७॥ (ही.भा.) णीलाइच उण्ह कमा, अयरा दस तिणि दोणि अट्ठार । भवियस्स-ऽणाइसंता, अणाइणंता अभवियस्स ॥७८॥ (ही.भा.) सम्माणाहाराणं, माइअणंता य साइसंता य । सम्मस्सुदहिछमट्टी, अहियाऽण्णस्स समया तिणि ॥१६॥(ही.भा.) सम्मस्म भवन्थम्म उ, तह छ उमत्थस्स साइसंता च । एवमणाहारे पर-मन्तमुहुत्तं गुरू भवत्थम्स॥८॥(गीतिः) (ही भा.) सामायणस्स ोया, आवलिआओ छ जेहकाठिई । आहारगम्म हवए, अंगुलभागो अगं खयमो ॥८१॥ (ही.भा.) केइ उण विति हवए, संखसहस्सवरिसा समत्ताणं । बेइंदियतेइंदिय-चउइंदियबायरऽग्गीणं ॥८२॥ (ही.भा.) दो सागरा सहस्सा, समत्ततसचक्खुदंसणाण भवे । सत्तरह सत्त अयरा, होइ कमा नीलकाऊण ॥८३।। (ही भा.) Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ कायठिई णायव्या, जहण्णगा दसमहस्सवासाणि । णिरयपढमणिरयाणं, देवभवणवंतराणं च ॥८४॥ (ही.भा.) दुइआइगणिरयाणं, सा पढमाइणिरयाण जा जेट्ठा । खुड्डभवो तिरियतिरिय पणिदिमणुयतदपज्जाणं ॥८५॥ (ही.भा.) पज्जत्तभेअवज्जिअ-सेमिंदियकायमेअसण्णीणं । अमणस्स जाणियव्वा, आहारस्स तिसमयहीणो।८६॥ (ही भा भिन्न हुत्तं तु सयल-पज्जत्तगजोणिणीण कायम्म । मीसदुजोगपुमाणं, तिकमायाणं महसुआणं ॥८७॥ (ही मा.) अण्णाणदुगम्स तहा, देमाजयचक्खुसव्वलेसाणं । सम्मत्तवेअगाणं, उवमममीसाण मिच्छम्स ॥८८॥ (ही भा.) पलियस्म अट्ठभागो, जोइमिअस्स पलिओवमं णेया। सोहम्मसुरस्स भवे, ईसाणस्सऽमहियपल्लं ।।८६ ।। (ही भा.) दोणि हवेज्जा जलही, सणंकुमारस्स दोणि अमहिया । माहेंदम्स हवेज्जा, सत्त भवे बम्भदेवस्स ॥९०॥ (ही.भा.) लंतगदेवाईणं, सा बम्हसुगइगाण जा जेट्ठा (गीतिः) सबस्थकेवलजुगल-अचक्खुभविअभविखाइआणं णो।११।।(ही.) समयोऽस्थि पणमणवयण-उग्लदुगाहारवि उवकम्माणं । इत्थीणपुसगाणं, अवेअलोहाकसायाणं ॥१२॥ (ही.भा.) मणणाणोहिदुगविभंगसंजमसमइअछे असुहुमाणं । परिहाराहक्खायग-सासणऽणाहारगाणं च ॥१३॥ (ही. भा.) Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपज्ञहीरसौमाष्यमाष्य संवलिंता मूलपयडिसत्ता अण्णे तिकमायाणं, समयो मणणाणओहिजुगलाणं । संजमपरिहाराणं, भिन्नमुहुनं ति कायठिई ॥१४। (ही.भा.) सता अस्थि दुविहो, अणाहणंतो अणाइमंतो य । कालो अट्ठण्ह भवे, साइअणंतो असत्ताए ॥२२॥ गयवेए अकसाये, अहखाये य समयोऽस्थि अट्ठण्हं । कालो संतस्स लहू, घाईण गुरू मुहुत्तंतो ॥२॥ देसूणपुचकोडी, अघाइचउगस्स केवलदुगे से। भिन्नमुहुत्त हस्सो, भवे गुरू पुवकोडंतो॥२४॥ 'सम्मत्तखाइएसु, अट्ठण्ह लहू भवे मुहुत्तो । जेट्ठोऽस्थि कमाऽभहिया, उदही छासहितेत्तीसा ॥२५i अट्टण्ह अणाहारे, लहू खणोऽण्णो तिखणअजोगिमितो। घाइइयराण कमसो-ऽण्णह दुविहो सलहुजेडठिई ॥२६॥ सन्यासु मग्गणासु, णेयो सत्ताअ घाइइयरेसिं । लहुगुरुकालो लहुगुरु-छउमत्थभवत्थकायठिई ॥२७॥ तिमणुयदुपणिंदियतस-संजमअहखायसुकभवियेस । आहारे घाईणं. भिन्नाहुत्तं लहू असत्ताए ॥२८॥ (गीतिः) देसूणपुव्वकोडी, जेट्ठो तिमणवयकायउरलेस । घाईण लहू समयो, णेयो जेठो मुहुत्तंतो ॥२९॥ मोहस्स लहू समयो, दुमणवयेसुगुरू मुहुत्तंतो । घाईण उरलमीसे, लहू खणो दुसमया जेहो ॥३०॥ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ घाईण कम्मणे खलु, समया तिण्णि दुविहो मुहुत्तंतो। णाणचउगर्दसणतिग-सण्णीसु हवेज्ज मोहस्स ॥३१॥ केवलदुगे चउण्हं, अवेअअकसायसम्मखइएसु । अट्ठण्हाघच अणा-हारे कम्मच वि चउण्हं ॥३२।। अट्टण्ह वि कम्माणं, संतअसंताण अंतरं णस्थि । एमेव मुणेयव्वं, सपा उग्गाण सव्वासु ॥३३॥ छह णियमाऽज्जसंते, सत्ताऽस्थि सिआ चउत्थकम्मस्स । दुइअचरमाण एवं, णियमाऽण्णसिं तुरिअसंते ॥३४।। णियमिगअघाइसंते, तिअघाईणं मिआऽण्णच उगस्स । गीतिः) घाइतिगस्स असत्ता-उज्जअसंतम्मिणियमा सिआऽण्णेसि ॥३५॥ दुइअचरमाण एवं, तुरिअअसंते सिआऽण्णमत्तण्हं । एगअघाइअसंते, णियमा सेसाण सत्तण्हं ॥३६॥ संतस्स सण्णियासो, अदृण्होधव्य अस्थि तिणरेसु। दुपणिंदितसेसु तह, तिमणवयणकायजोगेसु ॥३७।। ओरालिये अवेए, अकसाये संजमे अहक्खाये । सुक्काए भविये तह, सम्मे खइअम्मि आहारे ॥३८॥ दुमणवयणचउणाणति-दंसणसण्णीसु मोहसत्ताए । अण्णेसिं णियमाऽणिग-संते छण्ह तुरिअस्स सिआ।॥३९॥ णियमेगघाइसंते, सत्तण्हऽण्णाण उरलमीसम्मि । कम्माणाहारेसु, अघाइचउगस्स ओघव्व ॥४०॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपनहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपडिसत्ता सेसासु एगसंते, णियमाऽण्णेसिं भवे असंतस्स । अट्ठण्होघव्य भवे, अवेअअकसायसम्मखइएसु ॥४१॥ (गीतिः) तिमणुयदुपणिदियतस-तिमणवयणकायउरलजोगेसु । संजम अहखायेसु, सुक्कामवियेसु आहारे ॥४२॥ मोह असते तिण्हं, सिआ अमत्ता हवेज्ज घाईणं । सेमिगघाइअसंते, सेसतिघाईण णियमाऽस्थि ॥४३॥ णियमिगघाइअसंतेघाइतिगम्सुरलमीसकम्मेसु । एमेव केवलदुगे, अघाइचउगस्मऽणाहारे ॥४४॥ णियमिगघाइअसंते-Sण तिघाईणं सिआ अघाईणं । एगअघाइअसंते, णियमाऽण्णेसिं ण सेसासु ॥४॥ अढण्ह संतकम्मा, अमंतकम्मा हवेज्ज नियमाओ। अट्ठण्ह संतकम्मा, अपज्जणरविउवमीसेसु ॥४६॥ आहारदुगे छए, परिहारे सुहमउवसमेसु तहा । सासायणमीसेसु, भजणीआ खलु मुणेयव्वा ॥४७॥ गयवेए अकसाये, अहखायेऽस्थि णियमा अघाईणं । (गीतिः) अधुवाऽण्णेसिं केवल-दुगे चउण्ह णियमाऽण्णहऽढण्हं ।।४८॥ णियमा असंतकम्मा, अवेअअकसायसम्मखइएसु । तहऽणाहारेऽट्ठण्हं, केवलजुगले अघाईणं ॥४९॥ तिमणुयदुपणिदियतस-तिमणवयणकायउरलजोगेसु । संजमअहखायेसु, सुक्कामवियेसु आहारे ॥५०॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४) . मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तस्य णियमा घाईण उरल-मीसे कम्मे हवन्ति भजणीआ । दुमणवयणचउणाणति-दंसणसण्णीसु मोहस्स ॥५१॥ भयणीअपयस्स दुवे, भंगेगाणेगजीवभेआओ ! तेचिअ तिगुणा दुजुआ, पयपयवडीअ कायव्वा॥९५॥ (ही.मा.) णेया अधुवपयसमा, ठविअतिसंखा परोप्परऽभत्था । भंगा धुवसहिआणं, ते धुवरहिआण एगूणा ॥६६॥ (ही.मा.) अट्ठण्ह संतकम्मा, अणंतभागा हवेज्ज अवसेसा । सव्वह असंतकम्मा, एवं णेया अणाहारे ॥५२॥ गरदुपणिदितसतिमण-वयसुक्कासु हविरे असंखंसा । घाईण संतकम्मा, अघाइचउगस्स णो भागो ॥५३॥ घाईणं संखंसा, अस्थि दुणरसंजमेसु ऽण्णेसिं । मोहस्स संखभागा, मणणाणे णत्थि सेसाणं ॥५४॥ दुमणवयणजोगेसु, तहा तिणाणोहिचक्खुसण्णीसु। मोहस्स असंखंसा, हवेज भागो ण सत्तण्हं ॥५५॥ काये ओरालदुगे, कम्मणजोगमवियेसु आहारे । घाईण अणंतंसा, भागो ण भवे अघाईणं ॥५६॥ अट्ठण्ह अणंतंसो, अवेअअकसायसम्मखइएसु । केवलदुगम्मि णेया, अणंतभागो अघाईणं ॥५७।। घाईण अहक्खाये, संखंसो अणयणे अणंतंसा । मोहस्स अण्णेसिं, दोसु वि सेसासु णऽढण्हं ॥५८॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपज्ञहीरसौमाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयडीसत्ता [६५ इइ मग्गणाऽहिकाउं, अट्ठण्हं संतकम्मइयरेसिं । उत्तो भागो वुच्चइ, पडुच्च उण सम्बजीवा सिं ॥५६॥ तिरिये तह एगिदिय-णिगोअवणकायजोगणपुमेसु । दुअणाणाजयअणयण-भविमिच्छेसु असणिम्मि ।।६०॥ अट्ठण्ह संतकम्मा, अणंतभागा असंखभागोऽत्थि । बायरसवेगिदिय-णिगोअकम्मणअणाहारे ॥६॥ गंया असंख भागा, सुहमेगिदियणिगोअआहारे। पज्जसुहमएगिदिय-णिगोअउरलेसु संखंसा ॥२॥ सुहुमापज्जेगिंदिय-णिगोउरलमीसगेसु संखंसो । तिकसा येसु हीणो, चउभागो साहिओ लोहे ॥६३॥ किण्हाएऽस्थि तिभागो-ऽभहियो ऊणो यणीलकाऊसु। (गीतिः) सेसासु अणंतंसो,असंतकम्माऽत्थि जाण जहि तहि सिं ॥६४॥ मज्झिमणंताणंतग-माणा मिच्छेवमजयपमुहावि । पल्लासंखंसो चउ-सासाणाइगुणठाणगया ॥९७॥ (ही.भा.) कोडिसहस्सपुहुत्तं, पमत्तइयरा हवन्ति उ सजोगी । कोडिपुहुत्तं सेसछ-गुणठाणगया सयपुहुत्तं ॥१८॥ (ही.मा.) मझिमजुत्ताणंता-ऽजोगी सिद्धा पवेसगेगाई । जाव उत्रसामगा चउ-वण्णाऽडुत्तरसयं खवगा 188॥ (ही.भा.) हुन्ति उवसामगा-ऽप्पा, पवेसगा ताउ दुगुणिआ खवगा। ताउ कमा संखगुणा, अजोगिचउउवसमगखवगा॥१०॥(ही.भा.) Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तस्थ ताउ कमसो सजोगिअ-पमत्तइयरा तओ असंखगुणा । देसा तो सासाणा, तो मीसा संखियगुणा वा ॥१०१॥ (ही.मा.) ताउ असंखेज्जगुणा, अविरयसम्मा तओ अणंतगुणा । सिद्धा ताओ मिच्छा, तो अजयाई कमा-ऽभहिया।।१०२॥(ही.मा.) अहवुवसंता-ऽप्पा तो, खीणा संखियगुणा तोऽभहिया । सुहमनियट्टिअपुव्वा, तुल्लाऽण्णोण्णं तओ कमसो ॥१०३॥ ही भा.) जोगिअपमत्तइयरे, संखगुणा तो कमा असंखगुणा । देसतिदुइआइगुणा, णवरि व संखियगुणा मीसा ॥१०४॥(ही.भा.) तोऽणंतगुणा सिद्धा, ताउ विसेसाहिया अजोगीओ (ही.भा.) मिच्छाऽत्थि अणंतगुणा, तो अजयाई कमाऽभहिया ॥१०५॥ जीवा असंखसेढी, णिरय-ऽज्जगिरय- दुकप्प-भवणेसु । सेढिअसंखंसोऽण्णछ-णिरय-छकप्प-णर-तदसमत्तेसु ॥१०६॥ (गीतिः) (ही.भा.) तिरिये सव्वेगिदिय-णिगोअवणकाउरालियदुगेसु । कम्मणपुमकोहाइग-दुअणाणा-ऽजयअचक्खूसु।।१०७॥(ही.भा.) तिकुलेसामिच्छभविय अमणाहारेसु तह अणाहारे। मज्झिमणंताणंतग-माणा-ऽणंता मुणेयव्वा ॥१०८।। (ही.भा.) सव्वपणिंदितिरि-विगल-पणिंदि-तस-देव-वंतरदुगेसु । बायरपज्जत्तेसु, भृदगपत्तेअकायेसु ॥१०६॥ (ही०भा०) पणमणवयणविउवदुग-थीपुरिसविभंगणाणणयणेसु । सुतिलेसासण्णीसु, पयरस्स असंखयमभागो॥११०॥ (ही.भा.) Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपज्ञहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपडिसत्ता [६७ दुमणुयसव्वत्थेसु, संखेज्जा सेसमुरतिणाणेसु । देमोहीसु तहुवसम-वेअगसासाणमीसेसु ॥१११।। (ही.भा.) पल्लासंखियभागी, बापरपज्जनतेउवा र म । हुन्ति क.मा देमूणा, घणावली लोग रग ।।११२।।(ही.भा.) णेया असंखलोगा, सेसेसु छवीसकायभेएसु । हुन्ति सहस्सपृहुत्तं, आहारदुगम्मि परिहारे ॥११३।। (हो.भा.) मिद्धषमाणाऽणता, अवेअअकमायकेवलदुगेसु । सम्मखइए सु च उसु, कोडिपुहु तहि भवत्था ॥११४।। (ही.भा.) गयए अफसाए, छउपन्था उ हविरे सयपुदुत्तं । (ही.भा.) पल्लामंखियभागो, दुविहा अवि सम्मखइएसु॥११५॥ (गीतिः) कोडिसहामाहुत्तं. मणणाणे मंजमे समइए य । कोडिस यपुहुनं उण, छेए सुहमे सयपृहुत्तं ।।११६॥ ही.भा.) कोडिपुहुत्तं णेया, अहखाए तत्थ खलु सयपुहुत्तं । छउमत्था जीवा लहु-जुत्ताणंता अमवियम्मि॥११७॥ (ही.भा.) 'सुहमे जीवा थोवा, 'तो छ उमत्था समा व अकसाये। अहखाए हुन्ति 'तओ, विसेसअहिया अवेए तो ॥११८॥ संखगुणाऽऽहारदुगे, परिहारे 'ताउ केवलदुगम्मि ।(ही.भा.) तणुधारी 'तोऽभहिया, अकसाये तह अहक्खाए ॥११९॥ "ताउ भवत्था-ऽवेए, 'तत्तो छेअम्मि संखियगुणा'.''तो। मणणाणसमइएसु, कमा'तओ संजमे-ऽभहिया ॥१२०॥(ही.) Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८] मुनिश्रीवीरशखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ "तो संखगुणा दुमणुय-सव्वत्थेसुतओ असंखगुणा । पज्जत्तवायरऽणले,"ताउचउअणुत्तरसुरेसु॥१२॥ (ही.भा.) ५.२"ताउ कमा ऽऽणयकप्पं, जा संखगुणा तओ असंखगुणा। देसे तो सासाणे, ताउ उबसमम्मि संखगुणा॥१२२॥(ही.) 'तत्तो मीसे संखिय-गुणा अमंखियगुणा व विण्णेया । ३२ताउ खइए भवत्था,असंखियगुणातओ णेया॥१२३॥ ही.) ओहिदुगवेअगेसु, तो विसेसाहिया मुणेयच्या । मइसुअणासु"तओ,हुन्ति भवत्था उ सम्मत्ते॥१२४॥(ही.भा.) "."ताउ असंखगुणा-ऽन्तिम णारगपमुहऽट्ठमाइकप्पाणं । दुदुएगेगेगेगे-गदुए गेसु कमेण कमा ॥१२५॥ (ही.भा.) "ताउ अपज्जत्तणरे, "तओ विसेसाहिया गरे०.५'तत्तो। दुइ-पढमकप्पेसु, कमा असंखगुण-संखियगुणा २.७तो।। भवण-पढमणिरयेसु, कमा असंखियगुणा तओ णिरये । (ही.) अमहिया अन्थि"तओ, सुक्का अखियगुणा"."तो ॥ कमसो पउम तिरिक्खिी -वंतरपुमथीसु संखियगुणा''.तो । कमसोऽमहिया जोइस-तेउ-सुर-विभंग-सण्णीसु ॥१२८॥ 'ता चउइंदियपज्जे,संखगुणा"."तो कमा विसेसहिया(गी.) पज्जपणिदितिरिपणिदिणयणपज्जगवितिदियेसुतओ ॥१२९॥ पज्जतसे संखगुणा, ताउ अपज्जगपणिदितिरियम्मि । (ही.) हुन्ति असंखगुणा तो-उमहिया-ऽपज्जगपणिदिये".८२तत्तो। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ 0U १० ११४ स्वोपझहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपथडिसत्ता तिरियपणिदि-पणिदि-अ-पज्जोघचउतिबिइंदियेसु कमा । (ही.) "ताउ अपज्जत्ततसे, संखगुणा तो तसेऽम्भहिया ॥१३१॥ ३५.८८तो पत्तेअपुह विदग-ऽणिलपज्जेसुकमा असंखगुणा । ही.) ६६.ताउ अपज्जोहेसु, कमा असंखगुणअब्भहिया ॥१३२॥ कममोऽन्थि बायरागणि-पत्तेअवणपुहवीदगऽणिलेसु (ही.भा.) 'ताउ अमंखेज्जगुणा, हुन्ति अपज्जमुहमग्गिम्मि ॥१३॥ १००.१०२ताउ अपज्जसुहम-भू-दग-चाऊसुकमा विसेसहिया । "तत्तो पज्जत्तसुहम-तेउम्मि हवेज्ज संखगुणा॥१३४॥(ही.मा.) ताउ विसेमहिया-ऽगणि-सुहमे ताउ अगणिम्मि ताउ कमा ।(गी.) हुन्ति सुहमपज्ज-सुहम-आहेसु कमेण भू-दग-ऽणिलेसु॥१३५॥ ताउ कमाऽणंतगुणा, अमवियकेवलदुगेसु ताउ कमा । या विसेमअहिया,अकसायअवेअखइअसम्मेसु॥१३६॥ (गीतिः) "ताउ अणंतगुणा खलु, णेया पज्जत्तवायरणिगोए । (ही.) १२२ताओ हवेज्ज बायर-पज्जेगिदिम्मि अमहिया ॥१३॥ थूल अपज्जणिगोए, तओ असंखियगुणा तओऽभहिया । वायरअपज्जिगिदिय-णिगोअएगिदियेसु कमा ॥१३८॥ (ही. भा.) तो कम्मे-ऽणाहारे,कमा असंखियगुणा-ऽहिया तत्तो ।(गीतिः) सुहमअपज्जणिगोए,असंखियगुणा' तओ विसेसहिया॥१३९॥ सुहमापज्जेगक्वे.' 'तत्तो सांखयगुणा वुरलमीसे । (ही.मा.) ५७२तत्तो संखेज्जगुणा,माणे '33 १३८..ओ विसेसहिया॥१४॥ १२४ १२६ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ १५६ ७० ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ कमसो कोहे माया-लोहेसु काउ-गील-किण्हासु । "ताओ मंखेज्जगुणा, उर.' तत्तो विसेसहिया॥१४१॥ही.) पज्जगसुहमणिगोए,'४'ताउ सुहमपज्जिगिदियम्मि ४२तओ। आहार ४३.१४४ताउ सुहम-णिगो एगि दयगु कमा ॥१४॥ १४५ १५१ ताउ कमा भविय पणग-वणि-गिदिय-काय अमण-णपुमसु । ताउ कमा निरि-मिच्छ-दु-अण्णाणा-ऽजय अचक्खूसु॥१४३॥ मज्झम्मि सुकमा, पज्जगचउइंदियाण जहठाणं । वारसजोगापबह. मयं सटाणे उणो एवं ॥१४॥ (ही.मा) थोवाऽस्थि विउवमीसे, ताा मंखियगुणा कमा णेया । सच्च अमच्चगमीम-व्यवहारेर मणजोगेसु ॥१४५॥ (ही. भा.) तार मणेऽमहिया तो, कममा मचि यम्मीमययणसु। (गीतिः) संखगुणा तो विउवे, तो वव हारे तभी वये ऽब्भहिया ॥१४६॥ मज्झिमणंनाणंतग-माणा मिच्छेव मजयपमुहावि । पल्लासंखयो चउ-सामाणाहगुणठ गया ॥१४॥ (ही भा.) कोडिसहस्सपुहुनं, पप्रत्तयग हवन्ति उ सजागी । कोडिपुहुत्तं सेसछ-गुणठाणगया सयपुहुत्तं, ॥१४८॥ (ही भा.) एए गुरुओ ऽत्थि पढम-तुरिआइचउक्कतेरसगुणत्था । (ही मा.) लहुओ वि तत्तिा खलु, एगो सेसगुणठाणगओ ॥१४९॥ मज्झिमजुत्ताणंता-ऽजोगी सिद्धा जहण्णउक्कोसा । (गीतिः) सव्वह लहुओ एगो, पवेसगाणिग्गमाऽत्थि गुरुओउ ॥१५०॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपज्ञहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपय डिसत्ता [ ७१ । पल्लासंखंसो पण - पढमाइगुणेसु अण्णह उ संखा । ( गीतिः) तहि वि उवसामगा चउ-वण्णा ऽडुत्तर सयं खवगसिद्धा ॥ १५१ ॥ ( ही ) अणओगप्पण्णवणा-जीव समासमुहाहिपाएण 1 जीवा अमंख सेठी, हवेज्ज णिरयज्जणिर येसु ॥ १५२ ॥ (ही. भा. ) अंगुलसुइदुइ अवग्गमूलगुणि अ-ऽज्जवग्गमूल मिआ । (ही. भा. ) अहवा अंगुलसूई - सेढिदुइ अवग्गमूलघणमाणा ।।१५ ३ । । (गीतिः ) ● अह पंचसंगहाइसु, मूलगुणिअसू इअंगुलपमाणा । (ही. भा. ) उअ अ गुलपढम-मूलघणमिओ-ऽत्थि सेढीओ ।। १५४ ।। णि अवारमदसमऽट्टम छट्टत अदुइअवग्गमूलेडिं (ही. मा.) भज्जा सेढी कममो, अस्थि छदुइआइणिरयेसु । १५५॥ तिरिये सवेगिंदिय- णिगोअवणका युगलिय दुगेसु । कम्मणपुमको हाइग - दुअण || जय अचक्खूसु ॥ १५६ ।। (ही.) तिकुले सामिच्छ भविय अमणाहारेसु तह अणाहारे । मज्झिमणंताणंतग- माणा ऽणंता मुणेयव्वा ॥ १५७॥ (ही.भा.) समजीवणंतभागा, तिरिवणिगिंदियणगोअकायेसु । (ही. मा.) णपुमदुअण्णाणाजय- अचक्खु भविमिच्छ अमोसु ॥ १५८ ॥ समजीव असंखमा, सुह मे गिदिय णिगोअआह । रेसु । (आर्यागीतिः) पज्जगसुह मे गिंदिय. णिगोअउरलेसु सयलजियसंखंसा ।। १५६ ॥ (ही.) समजीव असंखंसो, चायरिगिंदियणि गोअतिगे । (ही.भा.) कम्माणाहारेसु, दससु सयलजीवसंखंसो ।। १६० ॥ (उपगीतिः ) · Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०२J मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ स वि लोहेऽभहिओ चउ-भागो ऊणो कसायतिगे। (उद्गीतिः) किण्हाएऽमहिओऽस्थि ति-भागो हीणो अणीलकाऊसु॥१६॥ जीवा पणि दियतिरिय-विगलपणिदितसतदसमत्तेसु ।। पज्जत्तवायरसु, भूदगपत्तेअहरिएसु ॥१६२॥ (ही.भा.) भज्जं पयरं अंगुल- असंखभागेण भाइ पयरं । (गीतिः) संखेज्जजोयणसयग-वग्गेण तिरिच्छिवंतरेसु च।।१६३॥(ही.) पज्जत्तपणिदितिरिय-विगलपणिदितसवयचवखूसु । पयरं भाइअमस्थि उ, अंगुलसंखेज्जभागेणं ।।१६४॥ (ही.भा.) तइअगुणि अ-ऽज्जसूई-अंगुलमूलेण भाइआ सेढी ।। अन्थि णरे रूवृणा, पज्जणरूणा अपज्जणरे ॥१६५।।(ही.भा.) संखेज्जकोडिकोडी, गुणतीसंका व तहअजमलोप्पिं । तुरिअजमलहेट्ठा व दु-णरेसु संखा य सव्वत्थे ॥१६६।। (ही.भा.) छप्पण्णदुमयमूहअ-अंगुलवग्गेण भाइ पयरं । जोइसिए पण्णवणा-अणुओगद्दारपमुहेसु ॥१६७।। (ही०मा०) वग्गो ण पंचसंगह-जीवममासेसु देवसण्णीसु । (गीतिः) एमेव णवरियो, किंचूणा भायगो मयदुगे वि ॥१६८॥(ही.भा.) भवणे पण्णवणाए, सूअंगुलपढमवग्गमूलस्स । संखंसो अणुओगे. असंखभागो असंखसेढीओ।। १६६।। (गीतिः) भवणेऽज्जवग्गमूला-हयसूइ अंगुलप्पमिअसेढी । ोया जीवसमासे, गंथे उण पंचसंगहे भवणे ।।१७०।। (गीतिः) Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपज्ञहीर सौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयडिसत्ता [ ७३ 4 सेढीओ दुइअगुणिअ- सूअ' गुलपढमवग्गमूलमिआ । ★ सेटी त अहय दुइअ -सूअं गुलमूलमज्जकप्पदुगे ॥ १७१ ॥ (गीतिः) त असुरदुगे सेगारामूलेण भाइआ सेढी 1 बम्हाइसुरच उक्के, सणवसगरण चउवग्गमूलेहिं ॥ १७२ (गीतिः) पल्लासंखियभागो, विण्णेया सेससुर तिणाणेसु । देसोही तहुवसम वेअगसासाणमीसेसु ॥१७३॥ (ही. भा. ) ऊणा घणावली उण, बायरपज्जत्ततेउकायम्मि | बायरपज्जत्ताणिल-काये उण लोगसंखंसो || १७४ ।। (ही.भा.) गोया असंखलोगा, सेसेसु छवीसकायभेएसु । सुरसंखंमो पण मण- तित्रयविवमीस पुरिसेसु । १७५ । । (ही. मा.) मूला -ऽज्जाऽखगुणा, सेढी विवथिविभंगले सतिगे । अस्थि सहसपुहुत्तं, आहारदुगम्मि परिहारे || १७६|| (ही. मा.) सिद्धपमाणाऽणंता, अवेअअक सायकेवल दुगेसु 1 सम्मखइएस चउसु, कोडिपुहुत्तं तहि भवत्था ||१७७ || गयवेए अकमाए, छउमत्था उ हविरे सयपुहुत्तं । पल्लासंखियभागी, दुविहा अवि सम्मखःएसु ॥१७८॥ । (गीति ) कोडि सहसपुहुत्तं, मणणाणे संजमे समइए य 1 कोडिसयपुहुत्तं उण, छेए सुहमे सयपृहुत्तं ॥ १७९॥ (ही. भा. ) कोडिपुहुत्तं या, अहखाए तत्थ खलु सयपुहुत्तं । छउमत्था जीवा लहु - जुत्ताणंता अभवियम्मि ॥ १८०॥ (ही.) Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ ] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ एए जायव्वा, उक्कोसाओ जहण्णओ मणुए । पज्जतमणुस्ससमा, संखेज्जा खल मुणेयव्वा ॥१८२॥ (ही) एगो पुणो हवेज्जा, अपज्जमणुए विउव्वमीसे य । आहारदुगे सुहमे, उवसममीसेसु सासाणे ।। १८२ : (ही. मा.) छ उमत्थाऽऽसिज्जेगो, अवेअअकसाय गाहखायेसु । (गीतिः) ए परिहारे मय- मृणा गुरुओऽण्णहिं कहिं चि समा ।। १८३ ।। या जद्दण्णजेट्ठा, एए सामण्णओ विसेमा उ । अस्थि पढमगुणठाणं, जहि तहि सव्वत्थ एमेव || १८४ ॥ (ही) ओघव्य दुइअआइग- चउदम तगुणठाणगयमिद्धा | जत्थ ऽन्थि तत्थ गोया, कहिं चि उण किंचि मविसेमा ||१८५|| a तहि वितिणरेसु संखा दुइआइचउगुणठाणगा दुविहा सोधन्व सगुणठाणे. सव्वत्थाहारगदुगंसु || १८६ ॥ (ही. मा.) अहवेगिदियभूदग - तब्बायरपज्जवायरेसु वणे । (ही. मा.) पत्ते तपज्जे, विगलेस पज्ज विगलअमोस ॥ १८७॥ (गीतिः) लहुओ एगो दुइए, गुणठाणम्मि गुरुओ पुणो गया । पलिया संखियभागो उअ आवलिआअसंखंमो ॥ १८८ ॥ (ही) एगो जहण्णओ खलु अन्थि उरलमीसविउवमीसेस । तुरिअगुणठाणवती, गुरुओ संखा उरलमीसे || १८६ ॥ (ही.भा.) कम्माणाहारेसु लहुओ एगो ऽत्थि तुरियगुणठाणे । (गीतिः) लहूओ एगो तेरस - गुणठाणे ऽत्थि गुरुओ सयपुहुत्तं ॥ १६० ॥ ! Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपज्ञहीर सौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयडिसत्ता [ ७५ सोधव्व दुहा छेए, परिहारे छट्टसत्तमगुणेसु ं । दुवा या संखा, खइए पंचमगुणट्ठाणे ॥ १६१ ॥ (ही. मा.) लहुओ तुरिआइचउग-गुणठाणगयाऽत्थि उवसमे एगो | णत्थि खवगा पुणो गुण-ठाणेसु अट्ठमाईसु ।।१९२।। (ही.) सव्वह गुणसिद्धे, पवेसगा जिग्गमा ऽत्थि ओघन्व । वरि तिरे संखा, पण पढमा गुण ठाणगया । १९३८. (ही.) असमत्त पणिदितिरिय मणुयपणिदितस-ऽणुत्तरेसु तहा । सव्वेसु एगिदिय विगलिदिय पंचकायेसु ॥ १९४ ।। (ही.भा.) आहारदुगे सुहमे. देसाभविमीससासणेसु तद्दा । मिच्छत्तासणीस, पवेसगा णिग्गमा णत्थि ।।१९५ | ( ही ) तत्थ वि मयंतरेणं, पवेसगा - ऽज्जेऽत्थि णिग्गमा बीए । एगिदियभूदगत-ब्बा यरतप्पज्जमेएसु ॥१६६॥ (ही. मा.) वणकाये पत्तेए, तप्पज्जे तह असण्णिम्मि (उपगीतिः) सिद्धन्तमए उ विंगल तप्पज्जेस दिय एमेव ॥ १९७॥ आइमपवेसगदुइअ - णिग्गमुरलमीसविजयमीसेसु 1 T कम्मे अजाण तिगेऽणाहारे विण परे णत्थि || १९८ || ( ही ) केवल दुगेउ तेरस - गुणेऽत्थि ण पवेसग खइए (ही.भा.) दुसु तुरिआइगुणेसु, पवेसगा णिग्गमा संखा ॥ १९९ ।। (उपगतिः) गणपवेसगियरा, असंखसूअं गुलज्जमूलमिआ । (ही. मा.) सेढी असंखसूअंगुलमाणा व णिरयज्जणिरयेसु ॥ २०० ॥ (गीतिः , Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ ] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ मयदुर्गमेवं भवणे, वच्चामा छदुइआइणिरयेसु । (गीतिः) म अपज्जमए, असंखगुण सेढिपढममूलमिआ ॥ २०१ ॥ संखा - Sत्थि दुणर आणयं पहुडिसुराहारदुगअवेएस | अकसाए मणणाणे. केवलदुगसंजमेसु तहा ॥ २०२ ॥ (ही. भा) समअछे तहा, परिहारम्मि मुहमे अक्खाए । अणयण भविखडएस', गवरं णो निग्गमा हुन्ति ॥ २०३ ॥ ( ही ) केवल दुगखइएस पवेसगा णत्थि अणय मन्ये । " पदुगेऽज्जे अंगुल - विअम्ल असंखगुण सेढी ॥ २०४॥ | ( ही मा.) तड़ आई दुसु दसम - मूलअसंखगुण माइआ सेठी। (गीतिः) चउसुकमा कुछचउतिम - मुलअसंखगुण माहआ सेटी ॥ २०५ ॥ समजीव असंखंमो, एगक्खणिगोअगुरलदुगेसु । कम्मकसायचउगतिअ - गृहले माहार गियरेस ॥ २०६ ॥ (ही. मा.) बायरपज्जरहि अभू-दगऽरिगवाउगवणणि गोएस 1 पत्ते तदपज्जे, असंखलोगा मुणेयव्वा ॥ २०७ । (ही. मा.) पल्लासंखसो पज्जवायरऽग्नितिदुणाणइयरेसु । (ही .मा.) देसाजयोहिसम्मृवन्समवेअगमी मसाणमिच्छे | २०|(मी) लोगासंखियभागो, वायरपज्जाणिले ण उ अभव्वे | णि अमर मूल संखगुआ - Sणासु सेडीओ || २०६ । (ही) एए गुरुओऽणंत - संखिपलोग मिअर सिमंतासु (ही. मा.) लहुआ वितत्तिचिअ किंचूणाऽण्णह पुणो एगो ॥ २१० || Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपज्ञहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयडिसत्ता [७७ अस्थि पढमगुणठाणं, जहि तहि मग्गणपवेसणिग्गमगा । (गी.) गुणठाणेऽज्जे एवं, णवरि अणयणे भवे ण णिग्गमगा ॥२१॥ अहि अस्थि उ दुइअपहुडि-गुणसु लहुओ उ एग तहि गुरुओ। पल्लासखंमो-ऽज्जे, चउगे सेमणवगे संखा ॥२१२॥(ही भा.) तइअगुणे विण पणमण-बयउरलविउवकमायचउगाणि । अजयछलेसा मिस्सं, पवेसगा णिग्गमा णस्थि ॥२१३॥ (ही) ण पवेमगा-ऽखिलणिग्य-दु पणिदितसणयणेयरभवीसुही .भा.) सणिम्मि य दुइअगुणे, ण णिग्गमा ऽन्तणिरयम्मितहा ॥२१॥ दुपणिदितसेसु तहा, उरालमीसे विउवमीसे य । दुअणाणेसु अजए, चक्खुअचखुभविसण्णीस ॥२१॥(ही भा.) अहवेगिदियभृदगाऽतब्बायरपज्जबायरेसु वणे (ही.भा.) पत्तए तप्पज्जे, विगलेसुपज्जविगलअभणेस ॥२१६॥ (गीतिः) हुन्ते पवेसगियरा, दुपणिदितसेम जयणसण्णीस । पल्लासंखियभागो,उअ आवलिआअसंखं सो॥२१७॥ (ही.भा.) सयमुज्झा दुइअगुणे, पवेसगा मग्गणाअ उ णपुसे। पल्लासंखियभागो, उअ आवलिआअसंखंसो॥२१८॥ (ही मा) तिणराणयाइगेम, दुइए संखा पवेसणिग्गमगा । (गीतिः) तुरिए णिरयतिणिरयति-णराणयाइसुरउरलमीसेसु ॥२१९॥ तिरिदुपणिदितिरिणपुम-थीखइएस पवेसगा संखा । (गीतिः) तुरिए दुइआइणिरय-भवणतिगेसु ण व उतिरिच्छीए ॥२२०॥ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिश्री श्री शेखर विजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ चरमणिरयदुपर्णिदिय-तसचक्खु अचक्खु भव्व सण्णीस (गीतिः) दु संखा - Sण्णणिरय सुरेसु खलु णिग्गमाण पुण खइए || २२१ ॥ पंचमगुणठाणे चउतिरिक्खतिणदुपर्णिदियतसेसु । बेअतिगेायणेयर भविसण्णीसु तह आहारे || २२२ || (ही.मा.) पगा-त्थि संखा, खइए तिणरेसु णिग्गमा संखा । (ही.) ण उ दुपणिदितसणयण - इयर भवियखइअसण्णीसु ॥ २२३ ॥ ण पवेसगा णरतिगे, छट्ठपमुहणवगुणम् एत्थ तहा । संजम खायेसु णणिग्गमा बारसाइदुगे || २२४ ॥ (ही. मा.) दुपणिदित सणर्याणियर - भविसण्णीम पवेसगा णत्थि । (गीतिः) छडाइससगुणेस ण णिग्गमेवं विणा मसंतगुणं ॥ २२५।। (डी.) ण पवेसगा हवन्ते, वेअतिगे तीसु छट्टपमुहेस । (नीतिः) पुरि णणिग्गमा विय, दुविहा विण अट्ठमे कमायेमु ॥ २२६ ॥ गयवेए अकसाए, अहखाए विण ससज्जगुणठाणं । (गीतिः) ण पवेसगा अवेए, अकसाए णिग्गमा ण खीणतिगे ॥ २२७॥ ण पवेसगा माइग-गुणेसु णाणतिगओहि सुक्कासु । एमेव णिग्गमा वि य, णवरि विणा संतगुणठाणं ॥ २२८ ॥ (ही.) ७८ ] " पवेसगा-माइग-गुणेसु मणणाणसंजमेसु च । केवलदुगे पवेसा, चरमे ण ण णिग्गम - तदुगे ।। २२६ ॥ ( ही ) ण पवेसगा - ऽट्ठमगुणे, समइअछेएस अट्टमाईसु । सम्मखइउवस मेसु पवेसगा णिग्गमा णत्थि || २३० ।। (ही.) 9 Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपझहीरसौभाग्यमाध्यसवलिता मूलपडिसत्ता खइए ण णिग्गमा दुसु, छट्ठाईसुण पवेसगा-ऽऽहारे (गीतिः) सत्तस वाग्ममे उण; ण णिग्गमा गंतिमे अणाहारे ॥२३॥ ओहे गुणठाणे-ऽज्जे-ऽणंता उववज्जमाणमिज्जंता । (गीतिः) दुइअतुरिएम पल्ला ऽसंखंसो पंचमे मरंता च्च ॥२३२ । (ही.) मिज्जंता चिअ संखा, छट्ठाइछगे गुणे चउद्दसमे। एए गुरुओ णेया, दुइआईसु लहुओ एगो ।।२३३।। (ही.मा.) मग्गणपवेसणिग्गमगव्य कमुववज्जमाणमिज्जंता । सब्बासु मग्गणाम, ओहसजाग्गगुणठाणेसु ॥२३४।। (ही.) 'णवरं पणमणवयुरल-वेउव्वाहारदुगअवेएमु । (गीतिः) अकसाए मणणाणे, केवलदुगसंजमेस सामइए ॥२३५।। (ही.) छए परिहारे तह, सुहमे अहखायदेसमीसेसु । गस्थि उववज्जमाणा,ओहसजोग्गगुणठाणेसु॥२३६॥(ही.मा.) 'उबवज्जंता-ऽण्णह वि य, गस्थि तडअपंचमाइसगुणेसु (गी) ओघव्व सव्वह वि उ ण, मिज्जंता तहअवारसदुगेसु॥२३७॥ "मिज्जंता ण विउवमीसकम्ममीसेमु ओहसगुणेसु। "सयमाहारगमीसे, णेयं 'तुरिए णुरलमीसे ॥२३८॥ (ही.मा.) 'हुन्ति अणंता जीवा, अणंतरासीसु अहतीसाए । ओहे-ऽज्जे गुणठाणे, उववज्जंता य मिज्जंता ॥२३६।। (ही) तत्थ वि णेयोहे तह, चउदसमे संखिया अणाहारे । मिज्जता णत्थि पढम-दुइअ-चउत्थगुणठाणेसु ॥२४०॥(ही) Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०) मुनिश्रीधीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तत्य "दुपणिदितसणयणियर भविसण्णीसु दुइआइगगुणेस (ही.भा.) ओघवऽत्थि दुहा- ऽट्ठम पहुडीसु सम्मखइएसू ॥२४१॥ ""विउवे तुरिए णेया, मिज्जंता संखिया गुणट्ठाणे । "चउदसमे गयवेए, अफसाए केवलदुगे य ।।२४२॥ (ही.) "मिज्जंतोघव्व पुमे, छटपमुहगुणतिगे "कसाए । अट्ठमगुणे तह ''गुणे, बीए दुअणाणअजएसु।।२४३।।(ही.) "ओघव्य तिणाणावहि-सुक्कासुचउसु अट्ठमाईसु । मिज्जता "संखेज्जा, चउतुरिआईमु उण खइए ।।२४४।। (i) किण्हाए णीलाए, णप्पज्जंताऽस्थि तुरिअगुणठाणे । (ii)काऊअ संखिया (iii तिसु, मिज्जंता(iv) तिसु ण पंचमाइदुगे॥ ॥२४५'। (गीतिः) सक्काएतहुवस में, संखा उत्रवज्जमाणमिज्जंता। ओहे तह जहजोग्गं, सप्पाउग्गगुणठाणेस ॥२४६।। (ही.) अट्ठण्ड संतकम्मा, असंतकम्मा य होइरेऽणंता । तिरिये सव्वेगिंदिय-णिगो अवणकायजोगेसु ॥६५॥ उरलदुगकम्मणणपुम कसायचउगदुअणाण अजएसु । अणयणतिअसुहलेमा-भवियेयरमिच्छअमणेसु ॥६६॥ आहारेऽणाहारे, य अणंताऽहण्ह संतकम्माऽत्थि । दुमणुयमव्वत्थेसु, आहारदुगम्मि गयवेए ॥६७॥ अकसाये मणणाणे, संजमसामइअछेअसुहमेसु । परिहारे अहखाये, संखा केवलदुगे अघाईणं ॥६८॥(गीतिः) Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्योपशहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयडिसत्ता [१ अट्ठण्ह असंखाऽण्णह, असंतकम्मा अवेअअकसाये । केवलदुगसम्मखइअ-ऽणाहारेसु अणंताऽस्थि ॥६९॥ दुमणवयणचउणाणति-दसणसण्णीसु अस्थि मोहस्स । संखेज्जा सेसासु, बावीसाअ चउघाईणं ॥७॥ कालं तु वट्टमाणं, पडुच्च खेत्ते परूवणा णेया । आसिज्ज अईअद्धं, परूवणा उण फरिसणाए ।।२४७॥ (ही.) केवलिआणं खेत्तं, असंखभागो हवेज्ज लोगस्स । लोगस्स असंखेज्जा, भागा वा सबलोगो वा ॥२४८ । (ही.) ओहस्स तिविहमवि तह, तिरियेगक्खपणकायपणगाणं । सव्वसुहमकायउरल-दुगकम्मणपुंसचउकसायाणं ॥२४६॥(गी.) दुअणाणाजयअणयण-असुहतिलेसभविअभविमिच्छाणं । (गी.) अमणाहारियराणं, सठाणमासिज्ज खित्तमखिलजगं ॥२५०॥ ऊणजगमिगक्खपवण-तिगाण सेसाण जगअसंखंसो (गी.) उववायसमुग्घाया, पडुच्च खिचं तहेव जाणऽत्थि ॥२५॥ वरि दुविहमखिलजगं, एगक्खणिगोअबायरतिगाणं । बायरपुहवाइचउग-पत्तेआण तयपज्जाणं ॥२५२॥ (ही.भा.) तिणरदुपंचिंदियतस-अवेअअकसायकेवलदुगाणं । संजमअहखायाणं, सुक्काए सम्मखहअसण्णीणं ॥२५३।। (गी.) केवलिखित्तपमाणं, अत्थि समुग्धायखित्तमासिज्ज । (गीतिः) मरणसमुग्घायं पुण, पंचदसण्हऽस्थि जगअसंखसो ॥२५४॥ - - - Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२J मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ अहण्ह सव्वलोए-त्थि संतकम्मेयरा-ऽस्थि घाईणं । केवलिखेते लोगा- संखियभागे अघाईणं ॥७॥ सयलजगे तिरिसव्वे-गिदिणिगोअवणसेससुहमेसु । पुहवाईसु चउसु सिं, बायर-बायरअपज्जेसु ॥७२।। पत्तेअवणम्मि तहा, तदपज्जत्तम्मि कायजोगे य । उरलदुगकम्मणणपुम-कसायचउगदुअणाणेसु ॥७३॥ अजए अचक्खुति असुह-लेसाभवियियरमिच्छ अमणेसु। तह आहारियरेसु, अट्टण्हं संतकम्माऽत्थि ॥७४।। लोगासंखियभागे, तिमणयदुपणिदितसअवेएसु । (गीतिः) अकसायसंजमेसु, अहखाये सुक्कसम्मखइएसु ।।७५॥ घाईण अघाईणं, केवलिखेत्तम्मि केवलदुगे वि । अट्ठण्ह ऊणलोए, बायरपज्जत्तवाउम्मि ॥७६॥ लोगासंखियमागे, अण्णह घाईण जगअसंखसे । णेया असंतकम्मा, तिमणवयउरलदुगेसु आहारे।।७७॥ (गीतिः) दुमणवयणचउणाणति-दसणसण्णीसु मोहणीयस्स । लोगासंखियभागे, असंतकम्मा मुणेयव्वा ॥७॥ लोगासंखंसेसु, समत्तलोए व कम्मणे णेया । घाईणोघव्व भवे, सप्पाउग्गाण सेसासु ॥७९॥ ओहस्सऽस्थि सठाणुव-वाअसमुग्घायखेत्तओ फुसणा । तिविहा वि सबलोगो, गमणागमणेण अड भागा ॥२५५॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपमहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयडिसत्ता [३ सव्वत्थ एत्थ गंथे, फुसणादारम्मि भागसद्देणं जाणेयव्यो भागो, तसणाडीए चउद्दसमो। २५६॥ (ही. भा.) अह सव्वमग्गणाणं, सठाणफुसणा सठाणखित्तव्य । ।(गीतिः) छेगाई णिरयदुइअ-णिरयाईणं कमोववाएणं ।।२५७। (ही भा.) सुरणाणतिगोहिपउम-सम्मत्तगवेअगाण पण भागा । (गीतिः) दुदुएगेगिगिगपढम-कप्पाइगतेउसासणाण कमा ॥२५८।।(ही.) सद्धिगसद्धदुसद्धति-चउसद्ध चउपणसद्धिगंगार । लोगासंखियभागो, पढमणिग्यसेसदेवाणं ॥२५९।। (ही.भा.) वेउब्वियमीससुइल-खइअउवसमाण अह विभंगम्स । एगारस बारस वा, भागा केसि चि णेव भवे ।।२६०॥ (ही.) णत्थि पणमणवयउरल वेउव्वाहारदुगअवेआणं । अकसायतुरिअणाणदु-केवलसंजमसमइआणं ॥२६१ ।(ही.भा.) छेअगपरिहाराण, सुहमाहक्खायदेसनीसाणं । उववाएण फरिसणा-ऽण्णपंचणवईअ सव्वजगं ॥२६२।। (ही.) अस्थि समुग्घाएणं, फुसणा णिरय-दुइआइणिरयाणं (ही.) छेगो दोण्णि य तिण्णि य, चउरो पंच छ कमा भागा॥२६३॥ पढमणिरयगेविज्जय-पमुहसुराहारतुरिअणाणाणं । समहअपरिहारसुहम-छेआणं जगअसंखंसो ॥२६४।। (ही.भा.) णव सुरईसाणावहि-तेऊण छ आणयाइदेवाणं । (गीतिः) सेससुरतिणाणावहि-पउमुवसमवेअगाण अड भागा ॥२६॥ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ] मुनिश्रीषीरशेखर विजयरचितं सत्ताविहाणं सस्थ तेर पण बार भागा, वेउव्विय - देस - सासणाण कमा । (ही.) ण दुमीसजोगमीसा-णियरेसिं होइ सवजगं ॥ २६६॥ लोगासंखंसो उ अ-वेअकसायविरयाहखायाणं । (गीतिः) मरणसमुग्धाएणं, सुक्काए छ अड सम्मखह आणं || २६७ || गमणागमणेणं अड, सुर- मंतदुपणिदियतसा । पणमणवय काय विजय थी पुरिसकसायचउगाणं | २६८ ।। (ही.) णाणडयर तिगअजयति - दंसणपण लेस भवियअभवीणं । ( गीतिः ) सम्म अवेअगर समसा सण मी समिच्छ सण्णीणं ।। २६२ ॥ (ही.) तह आहारस्सऽत्थि छ, भागा चउआणयाइ- सुक्काणं । सेसाण ण अस्थि असुह-लेसाण वि णत्ति बिंति परे ॥ २७० ॥ (ही.) अट्टह सव्वलोगो, परिपुट्ठो होड़ संतकम्मेहिं । इयरेहि विघाईण अ-घाईणं जगअसंखंसो ॥८०॥ णिरयचरमणिरयेसु चउआणय पहुडिदेवसुक्कासु । भागा छ अस्थि फुसिआ, अट्ठण्हं संतकम्मेहिं ॥ ८१ ॥ वरि अघाईण सयल- लोगो सुक्काअ होड़ परिपुट्ठो | लोगासंखियभागोऽज्जणिरय गेविज्जणव गेसु पंचसु अणुत्तरेसु, आहारगदुगवि उव्वमीसेसु । मणणाणसमएस, छेए परिहारसुहमेसु ॥८३॥ दुइआइणिरयपणगे, विउवे देसम्म सासणे कमसो । इगदुतिचउपण तेरह, पण बारह फोसिआ भागा ||८४|| ॥८२॥ 1 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपज्ञहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपडिसत्ता [९५ णव भागाऽत्थि फरिसिआ, सुरईसाणंततेउलेसासु। सेससुरतिणाणावहि-पम्हुवसममीसवेअगेसु अड।।८५||(गीतिः) घाईणं गयवेए, अकसाये संजमे अहक्खाये । लोगासंखियभागो, अड भागा सम्मखइएसु ॥८६॥ छसु वि फुसिअमखिलजगं, अघाइच उगम्स केवलदुगे वि । सेसासु सव्वलोगो, अट्ठण्हं फोसिओ णेयो ।.८७।। लोगासंखियभागो, तिमणवयाउरलदुगेसु आहारे । छुहिओ भवे चउण्हं, घाईण असंतकम्मेहिं । ८८॥ दमणवयणचउगाणति-दंसणसणीसु जगअसंखंसो । मोहस्सोपव्व भवे, सप्पाउग्गाण वीसाए ॥८९॥ अट्ठण्ह भवे कालो, सम्बद्धा संतकम्मइयरेसिं । असमत्तणरम्मि लहू, खुड्ड भवो संतकम्माणं ॥९॥ भिन्नमुहुत्तं विक्किय-मीसे मीसुवसमेसु समयोऽस्थि (गीतिः) सासाणे होइ पलिअ-असंख भागो उ पंचसु वि जेट्टो । ९१।। होइ लहू आहारे, सुहमे समयो गुरू मुहुत्तंतो । आहारमीसजोगे, दुहा अवेअअकसायेसु ॥९२।। अहखाये घाईणं, समयो हस्सो गुरू मुहुर्ततो । होइ चउअघाईणं, सव्वद्धा केवलदुगे वि ॥९३।। अद्धतइ असयवासा, छेए अट्टण्ह होअइ जहण्णो । जेट्ठो हवेज्ज अपरा, पण्णासं लक्खकोडीओ ॥१४॥ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ ] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं सत्ताविहाणं तरब परिहारम्मि जहण्णो, वीसद्धपुहुत्तमत्थि उक्कोसं । ऊणा दुपुन्वकोडी, हवेज्ज सेसासु सव्वद्धा ||१५|| मोहस्स लहू समयो, असंतकम्माण मणवयदुगे ऽण्णो । भिन्न मुहुत्तं दुविहो, चउणाणतिदंसणेसु सणिग्मिः | ९६ ॥ गीतिः) समयो वाईण उरल-मीसे हस्सोऽत्थि तिसमया कम्मे । (गीतिः ) दोसु गुरु संखखणा, सगकम्माण इयरासु सव्वद्धा || १७ || अट्ठह अंतरं खलु हवेज णो संतकम्मइयरेसिं । अण्ह अपज्जणरे, मासणीसेसु संतक्रम्माणं ॥ ९८ ॥ | ( गोतिः ) समयो हस्सं जेड, असंखभागो हवेज पल्लस्स । समयो विउञ्चमीसे, लहु गुरु बारह मुहुत्ता ||२६|| आहारदुगे समयो, लहुं गुरु होइ हायणपुहुत्तं । घाईण लहुमवेए, अकसाये तह अहक्खाये ॥१००॥ समयो गुरु छमासा, परमद्धपुहुत्तमत्थि दोसु गुरुं । (गीतिः) मोहस्स तासु तीसुवि, केवलजुगले य णो अवाहणं ॥ १०१ ॥ छेए परिहारे लहु- मट्टह कमा सहस्सवासाणि । ( गीतिः ) तेवडी चुलमीई, गुरुमयराद्वार कोडिकोडीओ ॥ १०२ ॥ सुमम्मिलहु समयो, गुरु छमासाऽत्थि उवसमे समयो । लहुमणं सत्त दिणा ण सेसगुणसट्टिजुत्तसये ॥ १०३॥ दुमणवयणच उणाणति-दंसणसण्णीसु लहु चउत्थस्स । (गीतिः) घाईण उरलमीसे, कम्मे समयो असंतकम्माण ||१०४ || 9 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपझहीरसौभाग्यभाष्यसंपतित मूलपयडिसत्ता दुमणवयणाणदंसण-सण्णीसु गुरु हवेज्ज छम्मासा । वासपुहुत्तमुरालिय-मीसे कम्ममणणाणे ॥१०॥ ओहिदुगे अहियसमा, होड परे बिंति हायणपुहत्तं । सप्पाउग्गाण भवे, ण चेव सेससगवीसाए ॥१०६।। मावेणोदइएणं, सत्ताऽढण्ह खइएण उ असत्ता । एवं सत्ता-ऽसत्ता, सप्पाउग्गाण सन्वासु ॥१०७॥ अट्ठण्ह अणंतगुणा ऽत्थि संतकम्मा असंतकम्माओ। एमेव अणाहारे-ऽढण्हं मोहस्स य अणयणे । १०८॥ कायउरलदुगकम्मण-भवियाहारेसु अस्थि घाईण । णरदुपणिदितसतिमण-वयसुक्कासु असंखगुणा ॥१०६।। एवं मोहस्स दुमण-वयणतिणाणोहिचक्खुसण्णीसु । (गीतिः) संखगुणाघाईण दु-णरविरईसु तुरि अस्स मणणाणे ।।११०॥ गयवेए अकसाये, सम्मे खइए य अट्टपयडीणं । जेगा असंतकम्मा-पंतगुणा संतकम्माओ ५१११५ . एमेव अघाईणं, हवेज्ज केवलदुगम्मि घाईणं । संखगुणाऽहक्खाये, सेमासु णथि अप्पबह ॥११२।। थोवा असंतकम्मा, अघाइचउगस्स तो विसेसहिया । तिण्हं घाईण तओ, मोहस्स तओ अणंतगुणा ॥११३।। तस्स चिअ संतकम्मा, तत्तो णेया विसेसहिया । (उपगीतिः) तिण्डं घाईण तओ, अस्थि चउण्हं अघाईणं ॥११४॥ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ दुपणिदितसतिमण-वयसुक्कासु असंतकम्माऽप्पा | घाईण तिन्ह ताओ, विसेस अहियाऽत्थि मोहस्स ॥ ११५ ॥ तो तस्स संतकम्मा, असंखियगुणा तओ विसेसहिया । तिन्हं घाईण तओ, अघाइचउगस्स विण्णेया ।। ११६ ।। मणुयव्वऽप्पा बहुगं, विष्णेयं दुणरसंजमेसु परं । मोहस्स संतकम्मा, संखेज्जगुणा मुणेयव्या ॥११७॥ काये ओराले तह, भविया - ऽऽहारेसु होइ मणुयच्च । परमत्थि संतकम्मा, अनंतगुणिआ चउत्थस्स ॥ ११८ ॥ मोहस्स हवेज्ज दुमण-वयणतिणाणो हिचक्खुसण्णीसु । थोवा असंतकम्मा, तत्तो णेया असंखगुणा ॥ ११९ ॥ तस्स चित्र संनकम्मा, तओ विसेसाहियाऽत्थि सत्तण्हं । मोहस्स संतकम्मा, अहखायेऽप्पा तओ णेया ॥ १२० ॥ थाईणं संखगुणा, तत्तो तेसिं असंतकम्मा तो । (गीतिः) मोहस्स विसेसहिया, तओ अघाईण संतकम्माऽत्थि ॥ १२१ ॥ थोवा असंतकम्मा, घाईणं उरलमीसकम्मेसु । तो ताण संतकम्माऽणंतगुणा तो विसेसहिया ॥ १२२ ॥ हुन्ति चउअघाईणं, एवमणाहारगम्मि होइ परं । घाईण अघाईओ, असंतकम्मा विसेसहिया ॥ १२३॥ गयवेए अकसाये, थोवा मोहस्स संतकम्मा तो । भाईण विसेसद्दिया, तओ अघाईण संखगुणा ॥ १२४ ॥ 55 ] Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपज्ञीर सौभाग्य माध्यसंवलिता मूलपर्याडसत्ता [ तत्तो असंतकम्मा, सिमणंतगुणा तओ विसेसहिया | घाईण तिन्ह तत्तो, विष्णेया मोहनीयस्स ॥१२५॥ मणणाणाचक्खू, दुमणोजोगव्व णवरि णायव्वा | मोहरून संनकम्मा, कमसो संखगुणऽणंतगुणा ॥ १२६ ॥ गयवे अन्य हवेज्जा, सम्मत्तम्मि खड़अम्मि अप्पबहू । परमस्थि संतकम्मा, विसेस अहिया अघाईणं ॥ १२७॥ थोवाऽस्थि संतकम्मा, अघाइचउगस्स केवलदुर्गाम्म | ताउ अनंतगुणा से, असंतकम्मा ण सेसासु ॥ १२८ ॥ बीए खलु अहिगारे, सत्ताठाणम्मि हुन्ति संतपयं । सामिचसाइआई, कालंतर मेगजीवस्स ।। १२९ ।। भंगविचयो उ भागो, परिमाणं खेत्तफोसणा कालो । अंतरभावऽप्पबहू, चउदस दाराणि जहकमसो ॥ १३० ॥ अस्थि अड सच चउरो, तिसंतठाणाणि मूलपयडीणं । एमेव खलु निमणुयदु-पणिदितस तिमणत्रयणेसु ॥ १३१ ॥ कायुरल अवेएस अकसाये संजमे अहक्खाये । सुक्क भविय सम्मेसु खआहारेसु णेयाणि ॥१३२॥ दुमणवयणच उणाणति दंसणसण्णीसु अट्ठ सत्तत्थि । as चउरो अस्थि उरल-मीसे कम्मे अणाहारे ॥ १३३ ॥ चत्तारि केवलदुगे, अड सेसासु अंडसंतठाणस्स । ( गीतिः ) ओहेणासेण वि, सामित्ताईसु मोहसंतव्व ॥ १३४॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तत्व गवरं भागदुआरे, संखंसो अट्ठसंतठाणस्म । (गीतिः) गयवेए अकसाये, असंखभागाऽत्थि सम्मखइएसु ॥१३५॥ अस्थि सजोगिअजोगी, चउठाणस्सऽथि सत्तठाणस्स । खीणकमायो सव्वह, सगठाणस्मऽत्थि ओघव ॥१३६॥ तिमणवयकायुरलदुग-कम्मणसुक्कासु आहारे। (उपगीतिः) चउठाणम्म सजोगी, सत्तरसऽण्णासु ओघव्व ।।१३७।। साइअधुवाणि सग-चउ-सत्ताठाणाणि अत्थि एमेव । सवासु णेयाई, सप्पाउग्गाणि ठाणाणि ॥१३८॥ कालो भिन्नमुहत्तं, सगठाणम्म दुविहो तह जहण्णो । चउठाणस्सुक्कोसो, देसूणा पुवकोडी उ ॥१३६॥ समयोऽस्थि लहू पणमण-चयकायुरलेसु सत्तठाणस्स । जेट्ठो भिन्न हुत्तं, दुविहो सेसासु ओघव्व ॥१४०॥ चउठाणस्स जहण्णो, समयो तिमणवयकायउग्लेसु । (गीतिः) कालो भिन्नमुहुत्तं, जेट्टो समयो लहू उरलमीसे ।।१४१।। जेहो दुखणा कम्मे, दुहा तिसमया लहू अणाहारे । जेट्ठो भिन्नमुहुत्तं, दुविहो ओघव्व सेसासु ॥१४२॥ अंतरमत्थि सगचउ-मत्ताठाणाण एवमेव भवे । सगचउठाणाण कमा, छत्तीसाअ गुणतीसाए ॥१४३।। णियमाऽस्थि संतकम्मा, चउठाणस्स खलु सत्तठाणस्स । भजणीमा भजणीआ, छत्तीसाअ सगठाणस्स ॥१४४॥ . . Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वोपज्ञहीर सोमाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयडिसत्ता [ et भजणीआ ओरालिय-मीसे कम्मे तहा अणाहारे । चउठाणस्स हवेज्जा, नियमा-ऽण्णासु छवीसाए || १४५ ॥ णेया अनंतभागो, सगचउठणाण संतकम्मेवं । ॥ १४६॥ काय उरलदुगकम्मअ- चक्खुभवा हारइयरेसु सप्पा उम्गाण दुणर मणपज्जवमंजमेसु संखंसो । गयवेए अकसाये, अहखाये सतठाणस्स ॥ १४७॥ संखसो संखमा, चउठा णस्सऽस्थि केवल दुगे णो । या असंखभागो, सप्पाउग्गाण सेसासु ॥१४८॥ संखास्थि संतकम्मा, मगच उठाणाण एवमखिलासु । लोगासंखसे मग ठाण सेवं छतीसाए || १४९ ॥ चउठणस्स हवेज्जा, केवलिखेत्तम्मि संतकम्मा उ । तिमणवयुरलदुगेसु', आहारे जग असंखंसे ॥ १५० ॥ या लोगासंखिय-भागेसु अहव सव्वलोगम्मि | कम्माणाहारेसु, ओघव्व हवेज्ज सेसासु ॥ १५१ ॥ लोगासंखियभागो, सगठाणस्सऽस्थि संतकम्मेहिं । फुसिओ एवं सव्वह, चउठाणस्स य मयललोगो ।। १५२ ॥ लोगासंखियभागी, तिमणवयउरलदुगेसु आहारे । चउठाणस्स फरिसिओ, हवेज्ज अण्णह अखिललोगो ॥१५३॥ कालो भिन्नमुहुत्तं, दुविहो सत्तण्ह संतकम्माणं । एवं सव्वासु णवरि, लहू खणो बारजोगेसु ं ॥। १ ५४ ।। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तस्थ सव्वद्धा चउठाण-म्सेवं सत्रह परं उरलमीसे । कम्मे पाइअसंत-व्व दुहिगजीवव्व-ऽणाहारे ॥१५॥ सगठाणस्स उ समयो, लहुमंतरमत्थि संतकम्माणं । छम्मासा होइ गुरु, चउठाणस्संतरं णस्थि ॥१५६॥ सव्वासु लहु समयो, सगठाणस्सऽस्थि संतकम्माणं । जेट्ठ वासपुहुत्तं, माणुस्मी-तुरिअणाणेसु ॥१५७।। ओहिदुगे बोद्धव्वं, वासपुहुत्तमहवा अहियवासो । छम्मासा सेसासु, बत्तीसाए मुणेयव्यं ॥१५८।। तीसु खणो चउठाणम्म लहुमुरल मीसकम्मणेसु गुरु । बासपुहुत्तं मासा, छ अणाहारे ण से मासु ।।१५९।। भावेणोदहएणं, सगचउठाणाण अस्थि सत्तेवं । सगन उठाणाण कमा, छत्तीसाअ गुणतीसाए ।।१६०॥ थोवाऽस्थि संतकम्मा, सगठाणस्स खलु ताउ संखगुणा । चउठाणस्सऽस्थि तओ, अडठाणस्स य अगंतगुणा ।। १६१॥ मणुयदुपणिदियतसति मणवयसुक्कासु सम्मखइएसु। सगच उघड ठाणाणं, कमाऽप्पसंखिय असंखगुणा ॥१३२॥ दुमणुरूतसं जमेसु, गरव्य परमत्थि अट्टठाणस्म । संखगुणोधव्य भवे, कायुरलभवीसु आहारे ॥१६३॥ सगठाणस खलु दुमण-वयणतिणाणोहिचक्खुमणासु। थोबा ताओ गेया, असंखियगुणाऽहठाणस्स ॥१६४॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थोपाहौरसौभाग्यभाव्यसंपलिता मूलपरिसत्ता ! चउठाणस्स उरालिय-मीसे कम्मे तहा अणाहारे । थोवा हवन्ति ताओ, अडठाणम्स य अणंतगुणा ॥१६५॥ सगठाणस्स अवेए, अडठाणम्स अकमायअहखाये । थोवा ताओ कमसो, संखगुणाऽण्णचउठाणाणं ॥१६६॥ सगठाणा मणणाणे, संखगुणा अणयणे अणंतगुणा । होअन्ति संतकम्मा, अडठाणस्स ण उ सेसासु॥१६७॥ तइए भूओगारे, अहिगाम्म हविरे दुआराई । तेरस संतपयं तह, सामी कालंतराइं च ॥१६८॥ भंगविचयो य भागो, परिमाणं खेत्तफोसणाउ तहा। कालो अंतरभावा, अप्पाबहुगं जहाकमसो ॥१६९॥ मूलपयडीण सत्ता, अप्पयराऽवहिआऽत्थि तिणरेसु । (गी.) दुपणिदियतसपणमण-वयकायउरलअवेअअकसाये॥१७॥ णाणचउगदंमणतिग-संजमअहखायसुक्कभविसम्मे। (गीतिः) खाइअसण्णाहारे, ओघव्य अवडिआ च्च सेसासु॥१७॥ सामित्ताईसु तइअ-संतव्य अवडिआअ होइ परं । (गीतिः) तहअम्मि कालदारे, ओहे भविए य साइसंतो वि ॥१७२॥ भिन्नमुहुत्तं हस्सो, जेहो देसूणपुचकोडी सो । दुविहो भिन्नमुहुत्तमःणयणे समयो लहू काये ॥१७३॥ तुरिए अंतरदारे, ओहे छत्तीसतिमणुयाईसु । जहि अप्पयरा तहि खल, भवे दुविहमंतरं समयो ॥१७॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तस्य संखंमा गयवेए, अकसायग्मि अहखायगे जत्थ । (गीतिः) तेत्तीसाएऽस्पयरा ऽण्णह अडठाणव्व तत्थ णऽण्णासु॥१७५।। अध्पपराए खीणस-जोगी दुमणवयणाणच उगेसु । दंमणतिगसण्णासु, खयमोहोघच सेमासु ॥१७६।। ओहेणाएसेण वि, अप्पयराअ दुविहो खणो कालो। दुविहमवि अंतरं खलु. भिन्नमुहुतं मुणेयव्वं ॥१७७।। पणमणवयकायउरल-च रणाणतिदंमणेसु सणिम्मि । जंतरमोघवाह, मगठाणच पणदारेसु ॥१७८।। ओहाएसेहि लह. कालो समयोऽस्थि संखसमयाऽण्णो। सगठाणच हवेज्जा, अंतरभावऽक्खदारदुगे ।।१७९॥ ओहेणाएसेण वि, छत्तीसाए अहिआएऽस्थि । भागप्पमाणगुणिआ, अप्पयराओ ण सेसासु ॥१८०॥ तुरिए पयणिक्खेवे, अहिगार तिण्णि हुन्ति दाराई । संतपयं सामित्तं, अप्पाबहुगं ति जहकमसो ॥१८१।। मूलपयडीण संते, दुविहा हाणी दुहा अवट्ठाणं । जासु छत्तीसाए. अप्पयरा तासु एमेव ॥१८२॥ पढमसमये सजोगी, गुरुहाणि कुणइ गुरुमवट्ठाणं । दुइअसमये सजोगी, दुमणवयणणाणचउगेसु ॥१८३।। दसणतिगसण्णीसु, गुरुहाणिं खीणमोहपढमखणे । (गीतिः) तयणंतरमवठाणं, ओघव गुरुदुपयाण सेसासु ॥१८४॥ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थोपाहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपडिसत्ता १५ लहुहाणिमज्जसमये, खीणकसायो लहुँ अवट्ठाणं । दुइअसमयम्मि सो चित्र, दुपयाणेमेव सव्वासु ॥१८॥ हाणि अबढाणाई, गुरूणि दोणि वि समाणि णेयाणि । तुल्लाणि दो लहूणि वि, एमेव भवे छतीसाए ॥१८६।। वडीए णेयाई, अहिगारे पंचमे दुआरा । तेरस संतपयं तह, सामी कालंतराई च ॥१८७॥ भंगविचयो य भागो, परिमाणं खेत्तफोसणाउ तहा । कालो अंतरभावा. अप्पाबगं जहाकमसो ॥१८॥ संखेज्जभागहाणी, अवाढआ तह कमाऽत्थि वडीए । भूगारे जहविहिरं, अप्पयराऽवट्टिा सत्ता ॥१८९॥ इति मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्तावहाणे (सत्ताविधानं) ... तत्थ स्वोपज्ञहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयडिसत्ता (मूलप्रकृतिसत्ता) समाधा Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सतबहाण सत्ताविधानं) तत्थ मूलपयडिसत्ता (मूलप्रकृतिसत्ता) तथा तत्र स्वोपज्ञहीरसौभाग्यभाष्यम् तथा स्वोपज्ञहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयाडिसत्ता (मूलप्रकृतिसत्ता) समाप्ता Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ प्रथमं परिशिष्टम् मूलगाथाद्यांशाः प्रकारादिक्रमेण मूलप्रकृतिसत्तामूलगाथाद्यांशाः अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः । अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः | २२ अद्धतइअसयवासा, १४ १ अंतरमत्थि सगचउ० १४३ । २३ अप्पयराए खीणस० १७६ २ अकसाये मणणाणे, ६८ २४ अहखाये घाईणं, ९३ ३ अजए अचखुतिअसुह०७४ २५ अह विण्णेयाणि पयडि०६ ४ मट्टण्ड अंतरं खलु, १८ प्रा ५ भट्टण्ह अणंतंसो, ५७ २६ आहारदुगे छेए, ४७ ६ अट्ठण्ड अणंतगुणा० । १०८ २७ आहारद्गे समयो, १०० ७ अट्टण्ह अणाहारे, २६ २८ आहारेऽणाहारे, ६७ ८ अट्टण्ह असंखाऽण्णह, ६ अटण्ड भवे कालो, २६ इइ मगगणाऽहिका ५६ १० अट्रह वि कम्माणं, ३० इह खलु ओहेण तहा, ३ ११ अट्ठण्ह वि कम्माणं, १२ अढण्ह वि कम्माणं, ३१ उरल दुगकम्मणणपुम० ६६ १३ अटुण्ह संतकम्मा, १४ अट्ठण्ह संतकम्मा, ३२ एमेव अघाईणं, ११२ १५ अट्ठण्ह संतकम्मा, ३३ एवं मोहस्स दुमण ११० १६ अट्ठण्ह संतकम्मा, प्रो १७ अट्रह सव्वलोए० ७१ ३४ ओरालिये अवेए, ३८ १८ अट्रण्ह सव्वलोगो, ८० ३५ ओहाएसेहि लहू, १७६ १६ अट्ठण्होघठव भवे, १६ ३६ ओहिदुगे अहियसमा, १०६ २० भत्थि अब सत्त चउरो, १३१ ३७ ओहिदुगे बोद्धव्वं, १५८ २१ अस्थि सजोगिअजोगी, १३६ , ३८ ओहेणाएसेण वि, १७७ ३ ८ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २) प्रथमं पर्शिशष्टम् [मूलगाथाद्याशा न अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः , अनु. गाथाद्यांशा गाथाङ्का ३६ आहेणाएसेण वि, १८० ६४ च उठाणस उरालिय०१६५ ४० काय उरलदुगकम्मण. १०१ ६५ चउठाणम्स जहण्णो, १४१ ४१ कायुरल अवेएसु, १३२ । ६६ च उठाणस्स हवेज्जा. १५० ४२ क ये ओराल दुगे, ५६ ६७ चउहा दुअणाणाजय० १६ ४३ काये ओराले तह, ११८ ६८ चत्तारि केवल दुगे, १३४ ४४ कालो भिन्नमुहनं, १५४ ४५ कालो मिन्नमुहुतं, १३९ ६९ छण्ह णियमाजसंते, ३४ ४६ किण्डाएऽस्थि तिभागो०६४ । ७०छसुवि फुसिअमखिल जगं,८७ ४७ केवलदगे चउण्हं ३२ ७१ छेए परिहारे लहु० १०२ ४८ गय वेअब्ध हवेज्जा, १२७ ७२ जेट्टो दुखणा कम्मे, १४२ ४६ गयवेए अकसाये, ४८ ५० गयवेए अकसाये, २३ ७३ भरदुपणिदितमतिमण.११५ ५१ गय वेए अफसाये, १२४ ७४ जादुपजिंदितसतिमण०५३ ५२ गयवेए अफसाये, ७५ णव भागाऽस्थि फरिसिआ,८५ ५३ गयवेए अकसाये, १११ ७६ वरं भागदुआरे, १३५ ५४ घाईण अघाईणं, ७७ णवरि अघाईण सयल० ८२ ५५ घाईण अणाहारे, ७८ णाणच उगदंसतिग० १७१ ५६ घाईण अहखाये, ७६ णियमा असंतकम्मा, ४६ ५७ घाईणं ओघव्य ति० १३ ८० णियमा घाईण उरल• ५१ ५८ घाईण गयवेए, ८६ ८१ णियमाऽस्थि संतकम्मा,१४४ ५६ घाईगं संखंसा, ५४ ८२ णियमिगअघारसंते, ६० घाईगं संखगुणा, १२१ ५३ णियमिगघाइभसंते, ४४ ६१ घाईण कम्मणे खलु, ३१ ८४ णियमिगघाइअसंते० ४५ ६२ घाईणऽस्थि असत्ता, १० ८५ णियमेगघाइसंते, ४० ६३ घाईण मिच्छसासण- १७ । ८६ णिरयचरमणिरयेसु, ८१ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगाबाद्यांशाः ] अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः ८७ या अणतभागी, १४६ प्रथमं परिशिष्टम् अनु. गाथाद्यांशाः ११५ दुइअचरमाण एवं, ८८ गोया असंखभागा, ८९ या लोगासंखिय० ६२ १५१ त १२५ ह ६० तइए भूओगारे, ९२ तत्तो असंतक्रम्मा, ९२ तत्थ चउविहा सत्ता, २ ९३ तस्स चिअ मंतकम्मा १२० ६४ तम्स चिअ संतकम्मा, ११४ ६५ तिर दुपंचिदियतस० ६६ तिमणत्रय कायुरलदुग. १३७ ६७ तिमणुयदुपदियतस = ४२ ९८ तिमणुयदुपर्णिदियतस. ५० ६६ तिमरणुयदुपनिदियतस- २८ १०० तिरिये तह एगिदिय० ६० १०१ ती खणो च उठाणम्स १५६ १०२ तुरिए अंतरदारे, १०३ तुरिए पर्याणिक् खे वे, १०४ तेसु पडिआईस, १०५ तो तस्स संत कम्मा, ११६ थ ११३ १०६ थोवा असंतकम्मा, १०७ थोत्रा असंत कम्मा, १२२ १०८ थांबाऽत्थि संतकम्मा १२८ १०९ थोवाऽत्थि संतकम्मा, १६१ द ११० दंसणतिगणीसु. १८४ १६८ १७४ १८१ [ ३ गाथाङ्काः ११२ दुइआइणिरयपणगे, ८४ ११३ दुमणत्रयणच उणाणति. १३३ ११४ दुमणत्रयणच उणाणति ७० ११५ दुमणत्रयणच उण णति ८६ ११६ दुमणत्रयणच उणाणति. ७८ ११७ दुमणत्रयणच उणानति ३६ ११८ दुमणत्रयणच उणाणति. १०४ ११६ दुमणवयण जोगेसृ ५५ १२० दुमणवयणाणदंसण- १०५ १२१ दुमणुस्म संज मे ं, १२२ देणपुञ्कोडा, १२३ देणपुष्कोडी, १६३ 1 प १२४ पंचसु अणुत्तरेसु १२५ पढमसमये सजोगी, · २४ २६ ८३ १८३ १२६ पणमणवयकायउरल- १७८ १२७ पत्ते अवणस्मि तहा, ७३ १२८ परिहारम्मि जहणो, ६५ ब १२६ बीए खलु प्रहिगारे, १२ε भ १३० भंगविचयो उ मागो, १३० १३१ भंगविचयो उ भागो, ७ १३२ भंगविचयो य भागो, १६६ १३३ भंगविचयो य भागो, १८८ १३४ भजणीया ओरालिय. १४५ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमं परिशिष्टम मूलगाथामाशा: अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्का: अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः १३५ भावेणोदइएण, १६० १६२ संतम् सणियासो, ३७ १३६ भ वेणोदइएण, १८७ | १६३ सगठाणम्स अवेए. १६६ १३७ भिन्न हुनं विक्किय० ६१ १६४ सगठाणम्स उ समयो,१५६ १३८ भिन्नमुहत्तं हस्सो, १७३ १६५ सगठाणस्स खलु दुमण.१६४ १६६ सगठाणा भणणणे, १६७ ५३९ मणणाणाचक्खूमु. १२६ १६७ मत्ताअ अस्थि दुविहो, २२ १४० मायदुपदियतमति,१६२ १६८ सत्ताविहाणमुक्क, १ १४१ भणुय३ऽप्पाबहुगं, १७ १६६ सप्पा उग्गा दुः० १४७ १४२ मूल पर्याडसत्ताए, ४ । १७० ममयो गुम्छमासा, १०१ १४३ मुलपय टीम सते. १८२ । १७१ समयो घाईण उरल० १७ १४४ मूलपयडीण सत्ता, १७, १७२ समयोऽस्थि लहू पणमण.१४० १५५ मोहअसं लिह, ४३ १७३ समयो हम्सं जेट्ट, ६६ १४६ मोहस्स लहू समयो, ६६ १७४ सम्मत्तखाइएV, २५ १४७ मोहम्म लहू समयो, ३० १७५ मयल जगे निरिसव्वे० ७२ १४८ मोहम्म हवेज्ज दुमण०११६ १७६ सव्वद्धा च उठाण १५५ १४६ मोहस्सुवसंतता, १२ १७७ सव्वासु मग्गणासु, २७ १५० लहहाणिज्ज समये, १८५ | १७८ सव्वासु लहुं समयो, १४७ १५१ लोगःसंखसेसु, १७६ सम्वे वि अघाईणं, १५ १५२ लोगासंग्वयभागे, ७७ १८० सव्वे वि अबाईणं, १४ १५३ लोगामंग्वियमागे, ७५ १८१ माइअधुवाणि सगच उ.१३८ १५४ लोसखियभागी, १.३ । १८२ साइधुवाऽस्थि असत्ता, २० १५५ लामावियभागो, १८३ सामित्ताईसु तइअ० १७२ १५६ लोगासंजियभागो, १८४ सुहमम्मि लहुँ समयो,१८३ १५७ वड्डीए णेयाई, १८७ १८५ सुहुमापज्जेगिंदिय० ६३ १८६ सेसासु एगसंते, ४१ १५८ संखंसा गयवेए, १७५ १५६ संखंसो संखंसा, १४८ १८७ हाणि-अवट्ठाण ई, १८६ १६० संखाऽस्थि संतकम्मा, १४९ १८८ हुन्ति चउअघाईणं, १२३ १६१ संखेज्जभागहाणी, १८६ १८९ होर लहूं आहारे, २९ ७६ स Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ द्वितीयं परिशिष्टम् भाष्यगाथाद्यांशाः अकारादिक्रमेण मूलप्रकृतिसत्तासत्कहीरसौभाग्यभाष्यगाथाद्यांशाः अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः । अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः अ १ अंगुल असंग्वभागो, ६४ १६ उववज्जंता-Sण्णह विय,२३७ २ अंगुल सूइदुइअवग० १५३ २० उवसंतखीणमोहा, ५२ ३ अणियट्टिवायरंता, ५१ ४ अशाओगप्पण्णवणा० १५२ २१ ऊणजगमिगत श्वणः२५१ ५ अण्णाणदुगम्स तहा. ८८ २२ ऊणा घणावली उण, १७४ ६ अण्ण तिकमायाणं, १४ ७ अस्थि पढमगुणठाणं, २५१ २३ एए गुरुओsगतम२१० ८ अस्थि ममुग्घाएणं, २६३ २४ एए गुरुओऽस्थि पढम.१४६ ९ अद्धत इअपरिअट्टा, ६८ २५ एए जाणेयठवा, १८१ १० अममत्त पणिदितिरिय.१६४ २६ एगिदियव्व पुढवी० ३० ११ अह पंचसंगहाइस. १५४ २७ एगिदियो तहा से, २६ १२ अहवुवसंता-ऽध्या तो, १०३ २८ एगो जहण्णओ खलु, १८९ १३ ग्रह वेगिदियभूदग० १८७ २६ एगो पुणो हवेज्जा, ५८२ १४ अहवेगिदियभूदग० २१६ ३० एत्तो एगेगहिया, ६३ १५ अह सस्वमग्गणाणं, २५७ मो ३१ ओघव तिणाणावहि०२४४ १६ आइमपवेसगदुइअ० १६८ ३२ ओघध दुइमआइग०१८५ १७ आहारदुगे सुहमे, १६५ ३३ मोहस्स तिविहमवि तह २४९ ३४ ओहस्सऽस्थि सठाणुव.२५५ १८ इइ मूलमग्गणा सिं, २६ । ३५ भोहिदुगवेअगेसु, १२४ आ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्विनीय परिशिष्टम [ भाष्यगाथाद्याशा: अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः | अनु. गाथाद्यांशा: गाथाङ्काः ३६ ओहे गुणठाणे-ऽज्जे, २३२ । ३० खइएणणिग्गमा दुसु,२३१ ग च ३७ कमलो कोहे माया• १४१ ६१ गइंदियाणि कायो, २५ ३५कम तोऽथि बायरामणि.१३३ ६२ गाजाइतणु ग्वंगा, १० ३६ कमसो परमतिरिक्खी.१२८ ६३ गमणागमगोणं अड, २६८ ४० कम्माणाहारेसु, १९० ६४ गयवेअकसायाणं, ७० ४१ काठिई उक्कोसा, ४५ ६५ गयए अकसाए, २२७ ४२ काठिई णायवा, ८४ ६६ गय वेए अकमाए, ११५ ४३ कालं तु वट्टमाणं, २४७ ६७ गयवेए अकमाए, १७८ ४४ किण्हाए णीलाए. २४५ चहा पत्तेगमणम०८ ४५ किण्हा नीला काऊ, ३५ ६६ चरमणिरयदुपणिदिय.२२१ ४६ कर उण विति हवए. ८२ ४७ केवल दुगखइआणं, ७५ ७० छ उमत्था-ऽऽसिज्जेगो,१८३ ४८ केवल दुगखइएसु, २४ ७१ छापण्णदुमयमूहअ० १६७ ४६ केवल दुगे तेरस० ११९ ७२ वेगपरिहाराणं, २६२ ५० केवलदुगे सजोगी, ५० ७३ छेप परिहारे तह, २३६ ५१ केवल आणं खेत्तं, २४८ ५० केवलिखिरापमाणं, २५४ ७४ जहि अस्थि उ दुइभपहुटि.२१२ ५३ कोरिपुत्त गया, १७ | ७५ जीवा असंखसेढी, ५०६ ५४ कोधिपुहुत्तं गया, १८० ७६ जीवा णेया मिच्छा० ३७ ५५ कोडिसहस्सहुत्तं, १८ ७७ जीवा पणिदियतिरिय. १६२ ५६ कोडिमहरमपुहुत्तं, १४८ ७८ जोगिअपमत्ताय रे, १०४ ५७ कोडिसहस्सपुहुतं, ११६ ५८ कोडिसहसपुहुत्त, १७६ ७९ स्थि पणमणवयउरल० २६१ ८०पवेसगा-ऽखिलणिरय.२१४ ५६ खरमास भवस्थस्सय, ७५ | ८१ण पवेसगा-ऽटुमगुणे, २३० Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माध्यगाथाद्याशा: ] २२९ अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः ८२ पण पवेसगा- दुमाइग० २२८ ८३ वा पत्रे सगा डट्टमाइग० ८४ ण पवेसगा णरनिगे ०२४ ८५ पवेसगा-त्थि संग्वा, २२३ ८६ ण पवेसगा इन्ते, २२६ २३५ ८७ वरं पगमणत्रयुरल० पावर दुविहम खिलजगं, २५२ पण सुरईमाणावहि० २६५ १० णाणइयरतिगअजयति० २६९ ६१ णातिगे ओहिम्मि य, ४९ १२ णाणम्स दंसणस्स य, २ ९३ निअवारसद समऽट्टम० १५५ ९४ निद्दा णिहाणिद्दा, ९५ णिरयतिरिक्खम गुससुर०२१ ६ णिरयतिरिणरसुरगई, ६७ रियो भूभेआ सग० २७ १८ णीलाइचउण्ड ५ १५ कमा, ७८ ६६ या अधुवपयसमा, १०० या असंखलोगा, १०१ या असं खलोगा, १०० या उ असंखेज्जा, १०३ या जण जेट्ठा, १८४ ५७ त ३६ १७५ ११३ १०४ त अगुणिभ ऽज्जसूई० १६५ १०५ अगुणे विणपणमण. २१३ द्वितीय परिशिष्टम् • }] गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः अनु. १०६ त असुरदुगे सेगार० १७२ १०७ तइआईसु दुसु दसम० २०५ १०८ नत्तो मीसे संखिय० १०३ १०६ तत्थ वि यो तह, २४० १६६ १२ ११० तत्थ वि मयंतरेणं, १११ तसब यर पज्जत्तं, ११२ तह आहारस्सऽत्थि छ, २७० ११३ तह दाणलाइ भोगो० २२ ११४ तह पुत्रकरणः ती, ३८ ११५ तहि त्रिति रेसु संखा, १८६ ११३६ ताउ अनंतगुणा खलु, १३७ ११७ ताउ अपज्जन्तण रे, १२६ ११६ ताउ अपज्जसुहमभू० १३४ ११९ नाउ असंखगुणाऽन्तिम. १२५ १२० ताड असंखेज्जगुणा, १०२ १२१ ताउ क्रमसो सजोगिम. १०१. १२२ ताउ कमा-ऽणंत गुण, १३६ १२३ ताउ कमा-SSणयकप्पं, १२२ १२४ ताडकमा भविय पणग. १४३ १२५ ताउ भवत्थाऽवेए, १२० १२६ ताउ मणेऽब्भहिया तो, १४६ १२७ ताउ विसेसहिया-गणि. १३५ १२८ ताउ चउइंदियपज्जे, १२९ १२३ तिकुलेसामिच्छविय. १०८ १३० तिकुलेसामिच्छभ विय. १५७ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयं परिशिष्टम् [ भाष्यगाथाद्यांशाः अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः | अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः १३१ तिणरदुपंचिंदियतस. २५३ १५६ दुपणिदितसणयणियर.२४१ १३२ तिणणयाइगेसु, २१६ | १५७ दुपणिदितस्सु तहा, २१५ १३३ तिणि य तेअजुभाणं, १७ १५८ दुमणवयणजोगेसु, ४४ १३४ तिपणिंदियतिरियाणं, ५८ १५६ दुमणुयसव्वत्थेसु, १११ १३५ तिमणवयणकायेसु, ४३ १६० दुविहो चरित्तमोहो, ७ १३६तिरिदुपणिदितिरिणपुम.२२० | ५६१ देवभवणवइवंतर० २८ १३७ तिरियपगिदि-पणिदि-अ१३१ १६२ देसूणपुवकोडी, ७७ ३३८ तिरिये सव्वेगिंदिय० १०७ | १६३ दोणि हवेजा जलही, १० १३६ तिरिये सवेगिंदिय० १५६ १६४ दो सागरा सहस्सा, ८३ १४० तेर पण बार भागा, २६६ १४१ तेसिं उत्तरपयडी, ३ | १६५ पंचमगुणठाणे चउ० २२२ १४२ तो कम्मे ऽणाहारे, १३९ १६६ पंचिदियचव खूणऽहि० ६. १४३ तोडणंतगुणा सिद्धा, १०५ १६७ पजगसुहमणिगोए, १४२ १४४ तो पत्तेअपुहविदग• १३२ १६८ पज्जतसे संखगुणा, १३० १४५ तो संखगुणा दुमणुय०१२१ १६९ पज्जत्तगतेइंदियः ६६ १७० पज्जत्तपणिदितिरिय० १६४ १४६ थावरदसगं थावर० १३ १७१ पज्जत्तभेअवज्जिम ८६ १४७ थीपुमणपुमअवेमा, ३३ १७२ पढमणिरयगेविज्जय० २६४ १४८ थीपुरिसणपुमवेमा, ९ १७३ पढमतितYणुवंगा, १६ १४९ थूलअपज्जणिगोए, १३८ १७४ पढमाइगणिरयाणं, ५६ १५० योवा-त्थि विउवमीसे,१४५ | १७५ पणमणवयणविउवदुग० ११० १७६ पणमिय सिरिणवखण्डा० १ १५१ दुअणाणाजयभणयण.२५० १७७ पत्तेअवणो तस्स या ३१ १५२ दुअणाणाजयमिच्छाण ७६ १७८ पलियस्स अट्ठभागो, ८६ १५३ दुइआइगणिरयाण, ८५ १७६ पल्लासंखंसो पज्ज० २०८ १५४ दुइआ चेव हवेज्जा, ७१ १८० पल्लासंखंसो पण. १५१ १५५ दुपणिदितसणयणियर.२२५ । १८१ पल्लासंखियभागो, ११२ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्यगाथाद्यांशाः ] द्वितीयं परिशिष्टम् अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः १८२ पहला संखियभागो, १७३ १८३ पिंडपयडित्ति चउदस, ११ १८४ पिंडपयडीण चपण० १४ ब १८५ बायरपज्जर हिअभू० १८६ बायर पज्जेगिंदिय० १८७ बावीस सहस्ससमा, भ २०७ ६५ ६६ १६३ ६५ १८८ भज्जं पयरं अंगुल • १८६ मणीभयरस दुवे, १६० भवण-पढमणिरयेसु, १२७ १६१ भवणस्स साहियुदही, ६१ १६२ भवणे ऽज्जवग्गमूला. १७० १६३ भवणे पण्णवणाए, १६६ १९४ भिन्नमुहुत्तं तु सयल० ८७ म [ ९ गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः अनु. २०४ मणणाणोहिदुगविभंग०६३ २०५ मणवयणा सिं भेआ, ३२ २०६ मयदुगमेवं भवणे, २०७ मिच्छती सासाणा, २०८ मिच्छा इअजोगंता, २०६ मिच्छाई देसविरय० ४० ४२ • १६५ महसुअडव हिमणकेवल ४ १९६ मग्गणपवेस गियरा, २०० २१० मिच्छाई सुमंता, ४८ २११ मिज्जता चिअ संखा, २३३ २१२ मिज्जता विवमीस०२३८ २१३ मिज्जतोघव पुमे, २४३ २१४ मूला-ज्जाऽसंखगुणा, १७६ ल २१५ लंगदेवाईणं, २१६ लहुओ एगो दुइए, २१७ लहुओ तुरिआइच उग० २१८ लोगासंखंसो उ अ० २१६ लोगासंखियभागो, व ११७ मग्गण वेसणिग्गमगठव२३४ | २२० वग्गो ण पंचसंगह ६९ ११ मज्झम्मि सुक्कले सा० १४४ १६६ मज्झिमजुत्ताणंना० २०० मज्झिमजुत्ताणंता० १५० २०१ मज्झिमणंताणंत ग० ९७ २०२ मन्झिमणंताणंतग० २२१ वणकाये पत्तेए, २२२ विवे तुरिए रोया, २२३ विक्किमी से हुते, २२४ वेअकसायतिगे खलु, १४७ २०३ मणणाणसंजमाणं, ७३ २०१ ४५ Q २२५ वे उब्वदुगस्स तड़ा, २२६ उब्वियमी० ९१ १८८ १६२ ૬ २०९ १६८ १९७ २४२ ४६ ४७ ६० २६० Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० ] द्वितीय परिशिष्टम् [ भाष्यगाथामांशाः अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः । अनु. गाथाद्यांशाः गाथाङ्काः स २४६. सव्वह गुणसिद्धेसु. १६३ २२७ खंखगुणाऽऽहारदगे. १५४ २५० सव्वापज्जत्ताणं, ५६ २२८ संखाऽस्थि दुणर-प्राणय.२०२ २५१ सव्वसु एगिदिय० ४१ २२९ संखेज्जकोडिकोडी, १६६ २५२ ससरीरन्तरभूया, २४ २३० संघयणं छद्धा वज्ज० ८२५३ मामाणे मामाणा, ५४ २३१ संजमसामइआई, ३४२५४ सासायणं च मीस, ३६ २३२ सत्तं पडुच्च एआ, २३ | २५५ सासायणस्स णेया, ८१ २३३ सद्धिगसद्धदुसद्धति० २५६ २५६ साहियछसटिजलही, ७२ २३४ समइमछेएसु तहा, २०३ | २५७ सिद्धपमाणाऽणता, ११४ २३५ समचररंसं णिग्गोह० १६ २५८ सिद्धपमाणाऽणंता, १७७ २३६ समजीवभसंखंसा, १५९ / २५६ सुक्काए तहुवसमे, २४६ २३७ समजीवमसंखंसो, २०६ / २६. सुरणाणतिगोहिपउम०२५८ २३८ समजीवअसंखंसो, १६० | २६१ सुरहिदुरही रसा पण, २० २३९ समजीवणंतभागा, १५८ | २६२ सुहमापज्जेगक्खे, १४० २४०समयोऽस्थि पणमणवयण.१२ | २६३ सुहमे जीवा थोवा, ११८ २४१ सम्मस्स भवत्थस्स उ, ८० २६४ सेढीमो दुइअगुणिअ० १७१ २४२ सम्माई सिद्धता ५३ २६५ सोघव्व दुहा छए, .... १९१. २४३ सम्माणाहाराणं, ७ २६६ सोहम्माईण कमा, ६२ २४४ सयमुज्झा दुइअगुणे, २१८ २४५ स वि लोहे-ऽभहियो १६१ २६७ हुन्ति अणंता जीवा, २३६ २४६ सम्वणिरयभेएसु, ३६ २६८ हुन्ति उवसामगाऽपा, १०० २४७ सम्वत्थ एत्थ गंथे, २५६ २६६ हुन्ते पवेसगियरा, २१७ २४८ सव्वपणिदितिरि-विगळ १०१/ २७० होएज्ज मोहणीयं, ६ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिः शुद्धिपत्रकम् पृष्ठम् पहिवत: अशुद्धिः विज ० .विजय० अट्टण्ह साइणंतो, केवलदुगे चउण्हं, तहऽणाहारे णेयो, अट्ठण्होघव्व अणा-हारे केवलजुगले अघाईण।। कम्मव्व वि चउण्हं ।। 15/१०८ /१३ इह। इइ/(गीतिः) ५६ .१ (गीतिः ) १६/२१ १०/१३ प्रावरण (गीतिः)/आवरणं २६/३० २१/१७ किम्हाए/मण्णागो० किण्हाए/मणणाणो० १ सत्ताविहाण सत्ताविहाणं ३२/३३/३३ १९/१५/२१ ऽणता/तओ/३६ ऽणंता/२८तओ/३६ ३/८/१७ टइअ०/३६/३६ दुइग्र०/६६/६६ १८/२०/२२ ०वाऊसु/१०६ वाऊसु/१०६/(गीति:) ८/१७/२१ तआ/१४९/१५६ तो/१४२/१५६ ३६/३८ ११/१९ बायरपज्जत्ता-गीति:)/पज्जत्तबायरा. ४१/४२/४२ १३/२/९ /दुगेसं/गुआ- (गीतः)/दुगेसु/गुणा४२/४३ २०१७ दुपणिदि० दुपणिदि० ४३ ९/१३/२१ (गीतिः ) ४४ (गीति:) ५०/५४/५७ १/१६/५ मुमि०/पच०/किण्ह्राए मुनि०/पंच०/किण्हाए ६४/६८ १५/४ मोह्र०/तओ मोह०/२८तओ ६८ बायरपज्जत्ता० पज्जत्तबायरा० गुमा गुणा८०/८७ १३/१ ०एतहु./संवतिा ०ए तहु०/संवलिता २५ ताउ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्तावहा (सत्ताविधानं) मूलपयडिसत्ता (मूलप्रकृतिसत्ता) तत्थ तथा तत्र स्वोपज्ञहीरसौभाग्यभाष्यम् तथा स्वोपज्ञहीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलपयडिसत्ता (मूलप्रकृतिसत्ता) परिशिष्टयोपेता सभाता Page #132 -------------------------------------------------------------------------- _