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________________ L •] प्रकाशकीय निवेदन में चतुर्विध संघ की प्रचुर उपस्थिति में नानाविध कार्यक्रमों के साथ ग्रन्थरत्नों का विमोचन किया गया, जिससे सामान्य जनता एवं बुद्धिजीवी लोग प्रचुररूपेण जैन साहित्य की और आकृष्ट हुए, जैन साहित्य के दर्शन से भी लोग प्रभावित हुए तथा उक्त समिति के सदस्यों में भी अपूर्व उत्साह, ओज व उमंग का संचरण हुआ । अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप स्वर्गीय परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वर महाराज साहब से प्रेरित कर्मसाहित्य के २५ ग्रन्थ आज तक तैयार हो गये हैं तथा और भी तैयार हो रहे हैं । इनके अतिरिक्त अन्य भी अर्वाचीन एवं प्राचीन छोटे बडे लगभग २५ से ३० ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं । बन्धविधान महाशास्त्र के सभी भाग मुद्रित होने से सम्पूर्ण बन्धविधान सटीक मुद्रित हो चुका है एवं आज आपके कर कमलों में 'मूलप्रकृतिसत्ता' तथा 'होर सौभाग्यभाष्यम्' तथा 'हीरसौभाग्यभाष्यसंवलिता मूलप्रकृतिसत्ता' का मुद्रण समर्पित कर रहे हैं। इसके साथ ही सत्ताविधान महाग्रन्थ के 'भाष्यचूर्णि वृत्तियुता मूलप्रकृतिसत्ता' और उनका 'पूर्वार्धः', 'उत्तरार्घः' तथा भावतृतीयांश: "चूर्णियुता मूलप्रकृतिमत्ता' 'भाष्ययुता मूलप्रकृतिसत्ता' 'मूलप्रकृतिसत्ता' 'कर्मप्रकृतिकीर्तनम् ' 'मार्गणाः' 'जीव भेदप्रकरणम्' 'कायस्थितिभवस्थितिप्रकरणम्' 'द्रव्यपरिमाणम् (१)' 'द्रव्य
SR No.022677
Book TitleMulpayadisatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirshekharvijay
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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