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________________ २० ] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचित ] मूलपयडिस तामूलगाथा हाणि अवट्ठाणा, गुरूणि दोणि वि समाणि णेयाणि । तुल्लाणि दो लहूणि वि, एमेव भवे छतीसाए || १८६ ॥ बडीए णेयाई, अहिगारे पंचमे दुआराई | तेरस संतपयं तह, सामी कालंतराई च ॥ १८७॥ भंगविचयो य भागो, परिमाणं खेत्तफोसणाउ तहा । कालो अंतरभावा. अप्पाबहुगं जहाकमसो ॥ १८८॥ संखेज्जभागहाणी, अवटुआ तह कमाऽत्थि वड्डीए । भूगारे जहविहिअं, अप्पयगडबडिआ सत्ता ॥ १८९ ॥ ॥ इति सत्ताविधानग्रन्थे मूल प्रकृतिसत्ता समाप्ता ॥ इति मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं zanâgrói ( सत्ताविधानं ) तत्थ मूलपयडिसत्ता (मूलप्रकृतिसत्ता) समाता
SR No.022677
Book TitleMulpayadisatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirshekharvijay
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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