Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 93
________________ १५२ १५६ ७० ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं सत्ताविहाणं तत्थ कमसो कोहे माया-लोहेसु काउ-गील-किण्हासु । "ताओ मंखेज्जगुणा, उर.' तत्तो विसेसहिया॥१४१॥ही.) पज्जगसुहमणिगोए,'४'ताउ सुहमपज्जिगिदियम्मि ४२तओ। आहार ४३.१४४ताउ सुहम-णिगो एगि दयगु कमा ॥१४॥ १४५ १५१ ताउ कमा भविय पणग-वणि-गिदिय-काय अमण-णपुमसु । ताउ कमा निरि-मिच्छ-दु-अण्णाणा-ऽजय अचक्खूसु॥१४३॥ मज्झम्मि सुकमा, पज्जगचउइंदियाण जहठाणं । वारसजोगापबह. मयं सटाणे उणो एवं ॥१४॥ (ही.मा) थोवाऽस्थि विउवमीसे, ताा मंखियगुणा कमा णेया । सच्च अमच्चगमीम-व्यवहारेर मणजोगेसु ॥१४५॥ (ही. भा.) तार मणेऽमहिया तो, कममा मचि यम्मीमययणसु। (गीतिः) संखगुणा तो विउवे, तो वव हारे तभी वये ऽब्भहिया ॥१४६॥ मज्झिमणंनाणंतग-माणा मिच्छेव मजयपमुहावि । पल्लासंखयो चउ-सामाणाहगुणठ गया ॥१४॥ (ही भा.) कोडिसहस्सपुहुनं, पप्रत्तयग हवन्ति उ सजागी । कोडिपुहुत्तं सेसछ-गुणठाणगया सयपुहुत्तं, ॥१४८॥ (ही भा.) एए गुरुओ ऽत्थि पढम-तुरिआइचउक्कतेरसगुणत्था । (ही मा.) लहुओ वि तत्तिा खलु, एगो सेसगुणठाणगओ ॥१४९॥ मज्झिमजुत्ताणंता-ऽजोगी सिद्धा जहण्णउक्कोसा । (गीतिः) सव्वह लहुओ एगो, पवेसगाणिग्गमाऽत्थि गुरुओउ ॥१५०॥

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