Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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स्वोपज्ञहीरसौभाग्यमाष्यसंवलिता मूलपर्याडसत्ता [५३ मणवयणा सिं भेआ, चउरो सच्चियरमीसववहारा । कायो भेआ सगुरल-विवाहारदुगकम्मा से ॥३२॥ (ही.भा.) थीपुमणपुमअवेआ, य कोहमयमायलोहअकसाया। (गीतिः) मइसुअवहिमणकेवल-णाणं मइसुअअणाणविभंगा ॥३३।। (ही.) संजमसामइआई, छेओ परिहारसुहुमअहखाया । देमअजयाणि णयणे-यरोहिकेवलदरिसणाणि ॥३४॥ (ही.भा.) किण्हा नीला काऊ, असुहियरा तेउपम्हसुक्काओ । भविया-ऽभविया सम्मं,खाइयवे अगउवसमा य॥३५॥(ही भा) मासायणं च मीम, मिच्छं सण्णी तह असण्णी । (ही भा.) आहाराणाहारा, इइ उत्तरमग्गणा णेया ॥३६॥ (उपगीतिः) मूलपडिसत्ताए, णायव्वा पयडि-ठाण-भूगाग। पयणिक्खेवो घड़ी, पण अहिगारा जहाकमसो ॥४॥ तेसु पयडिआईसु, अहिगारेसुहवन्ति दाराणि । पणग्स चउदस तेग्स, निण्ण य तेरस जहाकमसो ॥५॥ अह विण्णेयाणि पयडि अहिगारम्मि पढमम्मि संतपयं । सामित्तसाइआई, कालंतरसणियासा य ॥६॥ भंगविचयो उ भागो, परिमाणं खेत्तकोसणा कालो। अंतरभावप्पबहू, पणरस दाराणि जहकमसो ॥७॥ अट्टण्ह वि कम्माणं, सत्ताऽसत्ताऽस्थि केवलदुगम्मि । सत्ताऽथि अघाईणं, सेसदुसत्तरिसयेऽढण्हं ॥८॥

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