Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ ४० ] मुनिश्री वीरशेखर विजयरचितं [ हीरसौभाग्यभाष्यम् तहि वितिणरेसु संखा, दुइआइचउगुणठाणगा दुविहा । सोघव्व सगुणठाणे, सव्वत्थाहारगदुगेसु || १८६ ॥ (ही. भा. ) अहवे गिंदियभूदग - तब्बायर पज्जवायरेसु वणे । (ही.भा.) पत्तेए तप्पज्जे, विगलेसु पज्जविगलअमसु ॥ १८७॥ (गीतिः) लहुओ एगो दुइए, गुणठाणम्मि गुरुओ पुणो रोया । पलियासंखियभागो, उअ आवलिआअसंखंसो ॥ १८८ ॥ ( ही ) एगो जहणओ खलु, अस्थि उरलमीसविवमीसेसु । तुरिअगुणठाणवत्ती गुरुओ संखा उरलमी से || १८६॥ (ही.भा.) कम्माणाहारे, लहुओ एगो - थि तुरियगुणठाणे । (गीतिः) लहुओ एगो तंग्स - गुणठाणे - ऽत्थि गुरुओ सयपुहुत्तं ॥ १६० ॥ सोधव्व दुहा छेए, परिहारे छट्टसत्तमगुणेसु 1 दुविहा या संखा, खइए पंचमगुणट्ठा ॥ १६९ ॥ (ही. मा.) लहुओ तुरिआचउग-गुण ठाणगयाऽत्थि उवसमे एगो | णत्थि खवगा पुणो गुण - ठाणेसु अट्टमाईसु ।।१९२।। (ही.) सव्वह गुणसिद्धे सु. पवेसगा णिग्गमात्थि ओघव्व । वरि तिणरेमु संखा, पण पढमाइगुणठा गया। १९३ ।। (ही) असमत्त पणि दितिरिय मणुयपणिदितस-ऽणुत्तरेसु तहा | सव्वेसु एगिदिय-विगलिंदियपंचकायेसु ॥ १९४ ॥ । (ही. भा) आहारदुगे सुहमे, देसाभविमीस सासणेसु तहा । मिच्छतासणीसु, पवेसगा णिग्गमा णत्थि || १९५ ।। (ही.)

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132