Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 62
________________ हीरसौभाग्यमाष्यम् ] सत्ताविहाणं तत्थ मूलपडिसत्ता [३॥ मूला-ऽज्जाऽसंखगुणा, सेढी विउवथिविभंगलेसतिगे । अस्थि सहस्सपुहुत्तं, आहारदुगम्मि परिहारे ॥१७६॥ (ही.भा.) सिद्धपमाणाऽणंता, अवेअअकसायकेवलदुगेसु । सम्मखइएसु चउसु, कोडिपुरतं तहि भवत्था ॥१७७॥ गयवेए अकसाए, छउमत्था उ हविरे सयपुहुत्तं । पल्लासंखियभागो, दुविहा अवि सम्मखइएसु॥१७८|| (गीतिः) कोडिसहस्सपुहुत्तं, मणणाणे संजमे समइए य । कोडिसयपुहुत्तं उण, छेए सुहमे सयपुहुत्तं ।।२७९॥ (ही.भा.) कोडिपुहुत्तं णेया, अहखाए तत्थ खलु सयपुहुत्तं । छउमत्था जीवा लहु-जुत्ताणंता अभवियम्मि ॥१८०॥ (ही. एए जाणेयव्वा, उक्कोसाओ जहण्णओ मणुए । पज्जत्तमणुस्ससमा, संखेज्जा खलु मुणेयव्वा ॥११॥(ही.) एगो पुणो हवेज्जा, अपज्जमणुए विउव्यमीसे य । आहारदुगे सुहमे, उवसममीसेसु सासाणे ।। १८२।। (ही.भा.) छउमत्था-ऽऽमिज्जेगो, अवेअअकसायगाहखायेसु । (गीतिः) छेए परिहारे सय-मृणा गुरुओऽण्णहिं कहिं चि समा ।।१८३॥ णेया जहण्णजेट्ठा, एए सामण्णओ विसेमा उ । अत्थि पढमगुणठाणं, जहि तहि सव्वत्थ एमेव ॥१८४॥(ही.) ओघव दुइअाइग-चउदसतगुणठाणगयसिद्धा । जत्थऽस्थि तत्थ णेया, कहिं चि उण किंचि सविसेसा॥१८५॥

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