Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 55
________________ ३२] :- मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं [ हीरसौभाग्यभाष्यम् जीवा असंखसेढी, णिरय-उज्जणिरय-दुकप्प-भवणेसु। सेढिअसंखंसोऽण्णछ-णिरय-छकप्प-णर-तदसमत्तेसु ।।१०६।। (गीतिः) (ही.भा.) तिरिये सव्वेगिदिय-णिगोअवणकाउरालियदुगेसु । कम्मणपुमकोहाइग दुअणाणा-ऽजयअचक्खूसु ।।१०७॥(ही.मा.) तिकुलेसामिच्छ भविय-अमणाहारेसु तह अणाहारे। मज्झिमणंताणंतग-माणा ऽणंता मुणेयव्वा ॥१०८॥ (ही.मा.) सवपणिदितिरि विगल-पणिंदि-तस-देव-वंतरदुगेसु । बायरपज्जत्तेसु, भूदगपत्तेमकायेसु ॥१.६॥ (ही०मा०) पणमणवयण विउवदुग-थीपुरिसविभंगणाणणयणेसु । सुतिलेसासण्णीसु, पयरस्स असंखयमभागो॥११०॥(ही.मा) दुमणुयसव्वत्थेसु, संखेज्जा सेसमुरतिणाणेसु । देसोहीसु तहुवसम-वेअगसासाणमीसेसु॥१११।। (ही.भा.) पल्लासंखियमागो, बायरपज्जत्ततेउवाऊसु । हुन्ति कमा देसूणा, घणावली लोगसंखंसो॥११२।(ही.भा.) णेया असंखलोगा, सेसेसु छवीसकायभेएसु । हुन्ति सहस्सपुहुत्तं,आहारदुगम्मि परिहारे ॥११३।।(ही.भा.) सिद्धपमाणाऽणता, अवेअअकसायकेवलदुगेसु । सम्मखइएसु चउसु, कोडिपुहुत्तं तहि भवत्था ॥११४।।(ही.भा.) गयवेए अकसाए, छउमत्था उ हविरे सयपुहुत्तं ।(ही.भा.) पवासंखियभागो, दुविहा अवि सम्मखइएसु॥११५॥ (गीतिः)

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