Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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२] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचितं [ हीरसौभाग्यभाष्यम् पज्जत्तगतेइंदिय-बायरतेऊण होइ संखेज्जा । दिवसा संखियमासा, समत्तचउई दियस्स भवे ॥६६॥(ही.मा.) पंचिंदियचक्खूणऽहि-युदहि-सहस्सं तसस्स तं दुगुणं । पज्जपणिदितसपुरिस सण्णीणायरसयपुहुत्तं ॥६७॥ (ही.भा.) अद्धतइअपरिअट्टा, भवे णिगोअस्स होइ कम्मठिई । बायरपुहवाइचउग णिगोअपत्ते प्रहरिआणं ॥६८॥ (ही.मा.) बावीससहस्सममा, देसूणोगलियस्म विण्णेया। कम्मस्स तिण्णि समया, पल्लमयपुहुत्तमिन्थीए ॥६६॥(ही.भा.) गयवेअकमायाणे, म इअणंता य स इयंता य । दुविहा हवेज्ज दुइआ, भिन्नमुहुत्तं भवे जेट्ठा ।।७०।।(ही.भा.) दुइआ चेव हवेज्जा, छ उमत्थस्स य तहा भवत्थम्म । णवरि भवत्थम्स गुरू, कोडी पुयाण देसूणा ॥७२॥ ही.भा.) साहियछसटिजलही, तिणाणओहीण वेअगस्म भवे । दुविहा अणाइर्णता, प्रणाइसंता अचक्खुम्स ॥७२॥ (ही भा.) मणणाणसंजमाण, समइअछे अपरिहारदेमाणं । देसूणा पुव्वाण, कोडो एगा मुणेयव्वा ।।७३।। (ही.भा.) केवलदुग-खहाणं, साइअणंता लहू भवत्थस्स । मिन्नमुहुत्तं केवल-दुगस्स जेठूणपुवकोडी उ ॥७४॥(ही.भा.) खइअरस भवत्थस्स य, उमस्थस्स य लहू मुहुर्ततो । तेचीससागराई, अमहियाई भवे जेद्दा ॥७५॥ (ही.भा.)

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