Book Title: Mulpayadisatta
Author(s): Virshekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 42
________________ मूलपडिसत्तामूलगाथा ] अत्ताविहाणं अप्पपराए खीणस-जोगी दुमणवयणाणचउगेसु । दंसणतिगसण्णीसु, खयमोहोघव्व सेसासु ॥१७६।। ओहेणाएसेण वि, अप्पयराअ दुविहो खणो कालो। दुविहमवि अंनरं खलु, भिन्नमुहुन्तं मुणेयव्वं ॥१७७।। पण मणवयकायउरल-च उणाणतिदसणेसु सण्णिम्मि । गंतरमोघव्वऽण्णह, मगठाणच पणदारेसु ॥१७॥ ओहाएसेहि लहू, कालो समयोऽस्थि संखसमयाऽण्णो। सगठाणव्व हवेज्जा, अंतरमावऽक्खदारदुगे ॥१७९॥ ओहेणाएसेण वि, छत्तीसाए अवडिआएऽस्थि । भागप्पमाणगुणिआ, अप्पयराओ " सेसासु ॥१८०॥ तुरिए पयणिक्खेवे, अहिगारे तिण्णि हुन्ति दाराई । संतपयं सामित्तं, अप्पाबहुगं ति जहकमसो ॥१८१॥ मूलपयडीण संते, दुविहा हाणी दुहा अवट्ठाणं । जासु छत्तीसाए, अप्पयरा तासु एमेव ॥१८२॥ पढमसमये सजोगी, गुरुहाणि कुणइ गुरुमवहाणं । दुइअसमये सजोगी, दुमणवयणणाणचउगेसु ॥१८३॥ दंसणतिगसण्णीसु, गुरुहाणिं खीणमोहपढमखणे । (गीतिः) तयणंतरमवठाणं, ओघव्व गुरुदुपयाण सेसासु ॥१८४॥ लहुहाणिमज्जसमये, खीणकसायो लह अवट्ठाणं । दुइअसमयम्मि सो चिअ, दुपयाणेमेव सव्वासु॥१८॥

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