Book Title: Mahavira ka Antsthal
Author(s): Satyabhakta Swami
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 13
________________ ती पड़ी है सीमकार अन्धा है। महा धास्ताविक १- महामानव का जीवन - महात्मा महावीर सरीखे हजारों वर्ष पुराने महामानवा का चरित्र मिलना बहुत कठिन है। क्योंकि उस समय इतिहास को सुरक्षित रखने के तने साधन नहीं थे जितने आज हैं। फिर जो व्यक्ति हजारों लाखों व्यक्तियों का देव वनगया हो उसका जीवन भक्तिवश इतना अतिरञ्जित कर दिया जाता है कि घटनाएँ ज्ञात होने पर भी असम्भव कोटि में पहुँच कर, अविश्व. सनीय बनकर, व्यर्थ होजाती हैं। महात्मा महावीर की जीवन सामग्री भी इसीप्रकार अन्धश्रद्धाओं और विस्मृतियों के नीचे दबी पड़ी है। जो विस्मृतियों के नीचे दब गई है उसका तो कोई उपाय नहीं है परन्तु जिनपर अन्धश्रद्धा का आवरण पड़ा है उन्हे आवरण हटाकर देखना कष्टसाध्य होने पर भी सम्भव है। अन्धभक्त लोग भक्ति के आवेग में जो कह जाते हैं उससे वे समझते हैं कि इससे उनने उस महामानव के प्रति कृतज्ञता प्रगट की है, इसप्रकार उपकार का कुछ बदला चुका है जब कि वे अन्धश्रद्धाओं से अपकार ही करते हैं। महात्मा महावीर कितने अनुभवी थे, लोकसेवक थे, अन्हें भीतरी बाहरी कठिनाइयों का फैसा सामना करना पड़ा. वे किस प्रकार की क्रांति कर गये, अन्हें झुन्ही के आदमियों ने कितना सताया, पर उसमें वे किस प्रकार अचल रहे आदि बातों का पता अन्धश्रद्धालुओं के महावीर-जीवन से नहीं लगता। अन्धश्रद्धालुओं की दृष्टि से महावीर के जन्म समय देव आये, उनके साथ देव खले, दक्षिा के समय देवों ने पालकी झुठाई इन्द्रादि देवता मौके मौके पर हाजिर होते रहे, देवाङ्गनाएं उनके सामने नृत्य करती रहीं। ऐसे महावीर एक तीर्थंकर की तरह लोकसेवक नहीं रहते किन्तु पुदतनी बादशाह की तरह पुण्य

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