________________
महावीर हो सकता है किन्तु भाव निक्षेप से महावीर केवल वह ही कहला सकता है जिसमें महावीरत्व का गुण हो। द्रव्य निक्षेप से भू. पू. महावीर और होनेवाले महावीर भी महावीर कहला सकते हैं। जन्म के समय महावीर तीर्थंकर नहीं थे। भाव निक्षेप से तो वे तीर्थंकर तब हुए थे जब उन्होंने कैवल्य प्राप्ति के पश्चात् धर्म तीर्थ की प्रवर्तना की थी मगर द्रव्य निक्षेप से वे भविष्य में धर्मतीर्थ की प्रवर्तना करने वाले होने के कारण जन्म से ही तीर्थंकर कहलाते थे। स्थापना निक्षेप से महावीर की मूर्ति भी महावीर कहलाती है और तदनुरूप ही उनकी पूजा, उपासना, स्तुति, सम्मान प्रादि होता है। शब्दों के इस प्रयोगपरिपाटी के न समझने वालों के लिए इसमें लड़ाई का काफी मसाला मिल सकता है।
यह ही बात पालकारिक भाषा के सम्बन्ध में भी लागू होती है। किसी भी मोटे आदमी को देख कर उसे प्रायः हाथी कह दिया जाता है इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि वह वास्तव में ही हाथी है । नदी पर रहने का अर्थ यह नहीं होता कि अमुक मनुष्य नदी के बीच पानी पर रहता है अपितु यह है कि वह नदी के किनारे रहता है। शहर में आकाश को छूने वाले मकानों का अर्थ यह नहीं कि वे वास्तव में ही प्राकाश को छूते हैं अपितु यह है कि शहर में बहुत ऊचे ऊंचे मकान हैं । केवल वाक्य में प्रयुक्त शब्दों का ज्यों का त्यों अर्थ करने वालों के लिए यहां भी लड़ाई का काफी मसाला मिल सकता है मगर है वह प्रज्ञान की पराकाष्ठा ही।
इसी प्रकार शब्दों का अर्थ करते समय प्रसंग का भी ध्यान रखना पड़ता है। रोटी खाते समय सैधव का अर्थ नमक होगा और लड़ाई के मैदान में यह ही शब्द घोड़े का वाचक होगा। सैंधव का अर्थ करते समय यदि प्रसंग का ध्यान न रखा जाय और रोटी खाते समय खाने वाले द्वारा सैन्धव मांगने पर उसे नमक न परोस उसके सामने घोड़ा खड़ा कर दिया जाय तो सोचिये कैसी विचित्र स्थिति होगी। जैन शास्त्रों के अनुसार बलि प्रथा का प्रारम्भ 'अज' शब्द का अर्थ 'नहीं काम में या पुन: उत्पादन में अशक्य अनाज' न करके बकरा अर्थ करने के कारण हुवा। आपको एक सत्य किन्तु मजेदार घटना बताता हूं। मैं जब सरकारी सर्विस में था हमारे बॉस खेलों के बड़े शौकीन थे। वे नित्य क्लब में टेनिस खेलने जाया करते थे। साथ में उनका चपड़ासी भी जाता था। क्लब में बड़े-बड़े अफसर, जागीरदार आदि आते थे। एक बार स्मृति दोष से वे अपनी कार की चाबी कार में ही लगी छोड़ पाए। उन्होंने चपड़ासी से मोटर में से मोटर की चाबी लाने को कहा तो वह दौड़ा दौड़ा गया और मोटर में चाबी देने का हैण्डिल उठा ले गया क्योंकि वह उसे भी चाबी ही कहता था । दौड़ा दौड़ा जाकर जब उसने उस बड़े हैण्डिल को सम्मान पूर्वकहमारे बॉस को अन्य समुपस्थित सज्जनों के सामने दोनों हाथों में लेकर प्रस्तुत किया तो सब चौंके कि क्या बात है । फिर असल बात ज्ञात होने पर वह कहकहा लगा कि पाप अनुमान कर सकते हैं। सच है प्रसंगानुसार अर्थ न करने वाले इसी प्रकार हंसी के पात्र होते हैं ।
घड़ा निश्चय नय से मिट्टी का है किन्तु घी के संयोग से घी का घड़ा, दूध के संयोग से दूध का घड़ा, मिर्ची के संयोग से मिर्ची का घड़ा व्यवहार नय के द्वारा कहा जाता है । निश्चय नय से घड़े का अस्तित्व उतने ही प्रदेशों में है जितने कि उस मिट्टी में है किन्तु व्यवहार नय से घड़ा कमरे में है ऐसा भी कहा जाता है। ये परस्पर विरोधी दिखने वाली बातें एक नय से ठीक हैं तो दूसरी नय से ठीक नहीं भी हैं । शास्त्रकारो ने नय का एक लक्षण 'वक्तुरभिप्रायो नयः' ऐसा भी किया है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org