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महावीर : परिचय और वाणी जब महावीर मे कोय ही नहीं तो क्षमा कौन करेगा, किनको करेगा ? वे गग-विराग के बाहर थे, चुनाव के बाहर थे, अच्छे-बुरे के बाहर थे । यही वीतरागता उनकी परम उपलब्धि है । यह जीवन का अन्तिम विन्दु है, इसके ठीक बाद मुक्ति की यात्रा गुरु हो जाती है। वीतराग हुए बिना कोई मुक्त नहीं हो सकता। न तो रागी मुक्त होता है और न विरागी । रागी के मन में विरागी के प्रति आदर का भाव होता है, वह विरागी की पूजा करता है, वह भी विरानी होना चाहता है । विरागी के मन में रागी के प्रति ईर्ष्या होती है, वह नामने नो आत्मा-परमात्मा की बात करता है किन्तु एकान्त मे निपट सेक्स की । दूसरी बात उनके चित्त में होती ही नहीं । हो मकता है कि मधुशाला मे या वेश्या के घर बैठा हुना आदमी मन्यानी हो जाय और कहे कि सव वेकार है।
परस्पर विपरीत ध्रुव एक-दूसरे को माकृष्ट करते ही हैं। इसी कारण सगी वैराग्य लेता है और विरागी रागी हो जाता है। पूरव विज्ञान की ओर और पश्चिम अध्यात्म की ओर आकृष्ट हो जाता है। जो इस जन्म में रागी है, हो सकता है वह अगले जन्म मे विरागी हो जाय और जो इन जन्म मे विरागी है, वह अगले जन्म मे रागी हो जाय । आमतौर से लोग सोचते हैं कि इस जन्म मे जो मंन्यानी है, उसने पिछले जन्म मे संन्यासी होने का अर्जन किया होगा । वात ऐसी नही है। इन जन्म मे जो विरागी है, वह पिछले जन्म मे राग के चक्कर मे घूमता रहा है।
जाति-स्मरण का प्रयोग महावीर की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण देन है। यह एक ऐसी ध्यान-पद्धति है जिससे व्यक्ति अपने पिछले जन्मो ने उतरकर देख सकता है कि वह क्या था। पिछले जन्मो को जानते ही आदमी बदल जाता है । वह पाता है कि यह सब तो मैं वहृत वार कर चुका, इससे उलटा भी कर चुका, मगर मुझे कुछ भी न मिला । न तो मैंने राग मे कुछ पाया और न विराग ने। न तो राजमहलो मे और न दीन-हीनो की झोपडियो मे, न तो पूरव के अध्यात्म में और न पश्चिम के विज्ञान मे। जन्मो का ऐसा स्मरण हो जाय कि हम दोनो ओर घूम चुके हैं---राग को वैसी ही गहरी अनुभूति की है जैसी विराग की-तो तीसरा उपाय दीख पड़ सकता है। यह तीसरा उपाय महावीर की वीतरागता का उपाय है। अगर भोग नही, योग नही तो तीसरा रास्ता क्या है ? तीसरा रास्ता सिर्फ यह है कि हम दोनो के प्रति जाग जायें । महावीर कहते है कि दोनो 'अतियो' मे बहुत घूम चुके । क्या कभी हम जागेगे और उस जगह खडे हो सकेगे जहाँ कोई 'अति' नहीं है, कोई विरोव या द्वन्द्व नही है ? वे कहते है कि सभी द्वन्द्व दूसरे से बांधते है, इसलिए द्वन्द्व के प्रति जागने से वीतरागता उपलब्ध होती है। न काम और न ब्रह्मचर्य-तभी सच्चा ब्रह्मचर्य उपलब्ध होता है। न हिंसा और न अहिंसा-तभी सच्ची अहिंसा फलित होती है। महावीर की अहिंसा को समझना मुश्किल हो जाता है, क्योकि वह हिंसा